सिविल सेवा मुख्य परीक्षा विषयवार अध्ययन/औद्योगिक नीति में परिवर्तन तथा उसका प्रभाव
दिवालिया और शोधन अक्षमता कोड Insolvency and Bankruptcy Code वर्ष 2016 में पारित इस कोड का उद्देश्य कॉर्पोरेट और फर्मों तथा व्यक्तियों के दिवालिया होने पर समाधान, परिसमापन और शोधन करने के लिये है। विधेयक में भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड स्थापित करने का प्रावधान किया गया है ताकि पेशेवरों, एजेंसियों और सूचना सेवाओं के क्षेत्र में कंपनियों, संयुक्त फर्म और व्यक्तियों के दिवालिया होने से जुड़े विषयों का नियमन किया जा सके। IBC की सामान्य कार्य प्रक्रिया अगर कोई कंपनी कर्ज़ नहीं चुकाती तो IBC के तहत कर्ज़ वसूलने के लिये उस कंपनी को दिवालिया घोषित कर दिया जाता है। इसके लिये NCLT की विशेष टीम कंपनी से बात करती है और कंपनी के मैनेजमेंट के तैयार होने पर कंपनी को दिवालिया घोषित कर दिया जाता है। इसके बाद उसकी पूरी संपत्ति पर बैंक का कब्ज़ा हो जाता है और बैंक उस संपत्ति को किसी अन्य कंपनी को बेचकर अपना कर्ज़ वसूल सकता है। IBC में बाज़ार आधारित और समयसीमा के तहत इन्सॉल्वेंसी समाधान प्रक्रिया का प्रावधान है। IBC की धारा 29 में यह प्रावधान किया गया है कि कोई बाहरी व्यक्ति (थर्ड पार्टी) ही कंपनी को खरीद सकता है।
राष्ट्रीय खनिज नीति 2019
सम्पादन- इसका उद्देश्य प्रभावी,अर्थपूर्ण और कार्यान्वयन-योग्य नीति का निर्माण करना है जो बेहतर पारदर्शिता, विनियमन और प्रवर्तन, संतुलित सामाजिक व आर्थिक विकास के साथ-साथ दीर्घावधिक खनन अभ्यासों को बढ़ावा देने में सक्षम हो।
- यह 2008 में घोषित राष्ट्रीय खनिज नीति 2008(NMP 2008) का स्थान लेती है।
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कॉमन कॉज बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया और अन्य के मामले में दिये गए एक निर्देश के बाद NMP 2008 की समीक्षा करने हतू खान मंत्रालय के अपर सचिव डॉ. के. राजेश्वर राव की अध्यक्षता में 14 अगस्त, 2017 को एक समिति गठित की गई।
- खान मंत्रालय ने समिति की रिपोर्ट को स्वीकार कर पूर्व विधायी परामर्श नीति (Pre-legislative Consultation Policy-PLCP) प्रक्रिया के हिस्से के रूप में हितधारकों की टिप्पणियों/सुझावों को आमंत्रित किया।
- PLCP प्रक्रिया में प्राप्त टिप्पणियों/सुझावों और केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों की टिप्पणियों/सुझावों के आधार पर राष्ट्रीय खनिज नीति, 2019 को अंतिम रूप दिया गया।
नीति की प्रमुख विशेषताएँ[१]
- निजी क्षेत्र के लिये खनन के वित्तपोषण को बढ़ावा देने के लिये खनन गतिविधि को ‘उद्योग’ का दर्जा देने का प्रस्ताव है।
- खनिजों की निकासी और परिवहन के लिये तटीय जलमार्ग और अंतर्देशीय शिपिंग के उपयोग पर ध्यान केंद्रित करती है और खनिजों के परिवहन को सुविधाजनक बनाने के लिये समर्पित खनिज गलियारों को भी प्रोत्साहित करती है।
- नीति में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को दिये गए आरक्षित क्षेत्रों जिनका उपयोग नहीं किया गया है, को युक्तिसंगत बनाने और इन क्षेत्रों को नीलामी हेतु रखे जाने का भी उल्लेख किया गया है, जिससे निजी क्षेत्र को भागीदारी के अधिक अवसर प्राप्त होंगे।
- इस नीति में निजी क्षेत्र की सहायता करने के लिये वैश्विक मानदंड के साथ कर, प्रभार और राजस्व के बीच सामंजस्य बनाने के प्रयासों का भी उल्लेख किया गया है।
- यह निजी क्षेत्र को अन्वेषण (Exploration) हेतु प्रोत्साहित करती है।
- इसमें यह भी उल्लेख किया गया है कि खनिज के लिये दीर्घकालिक आयात नीति से निजी क्षेत्र को बेहतर योजना और व्यापार में स्थिरता लाने में मदद मिलेगी।
कंपनी अधिनियम, 2013
सम्पादनउदारीकरण
सम्पादन- औद्योगिक लाइसेंस प्रणाली आयात निर्यात नीति तकनीकी उन्नयन राजकोषीय और विदेशी निवेश नीतियों में उदारीकरण 1980 के दशक में ही आरंभ किए गए थे परंतु उन्हें में प्रारंभ की गई सुधारवादी नीतियां कहीं अधिक व्यापक थी।
- औद्योगिक क्षेत्रक का विनियमीकरण
- 1991के बाद आरंभ हुई सुधार नीतियों ने निम्नलिखित छ:उत्पादों को छोड़ शेष उत्पादों के लिए लाइसेंसिंग व्यवस्था को समाप्त कर दिया।
एल्कोहल,सिगरेट,जोखिम भरे रसायनों,औद्योगिक विस्फोटक,इलेक्ट्रोनिकी ,विमानन तथा औषधी-भेषज।
- प्रतिरक्षा उपकरण परमाणु ऊर्जा उत्पाद और रेल परिवहन सार्वजनिक क्षेत्र के लिए सुरक्षित।
लघु उद्योगों द्वारा उत्पादित अनेक वस्तुएं भी अनारक्षित श्रेणी में आ गई
- वित्तीय क्षेत्र में सुधार वित्त के क्षेत्र में व्यावसायिक और निवेश बैंक स्टॉक एक्सचेंज तथा विदेशी मुद्रा बाजार जैसी वित्तीय संस्थाएं सम्मिलित हैं।
- भारत में आरबीआई वितरक का नियंत्रक नियंत्रण करता है आर्य करता है अपने पास कितनी मुद्रा जमा रख सकता है यही ब्याज की दरों तथा विभिन्न क्षेत्रों को उधार देने की प्रकृति।
को भी तय करता है क्षेत्र सुधार नीतियों का एक प्रमुख उद्देश्य आरबीआई को क्षेत्र के नियंत्रक की भूमिका से हटाकर उसे सहायक की भूमिका तक सीमित करना था बैंकों की पूंजी में विदेशी भागीदारी की सीमा 50% कर दी गई कुछ निश्चित शर्तों को पूरा करने वाले बैंक आरबीआई की अनुमति के बिना ही नई शाखाएं खोल सकते हैं तथा पुरानी शाखाओं के जाल को अधिकतम विदेशी निवेश संस्थाओं तथा व्यापारिक बैंक म्यूच्यूअल फंड और आदि को भी अब भारतीय बाजारों में निवेश की अनुमति मिल गई है।