सिविल सेवा मुख्य परीक्षा विषयवार अध्ययन/कमजोर वर्गों के प्रति सहानुभूति

आदिवासी समाज में विभाजन झारखंड का आदिवासी समूह सरना और ईसाई धार्मिक समूहों में बांटा है।राज्य के विभिन्न ईसाई मिशनरी सेवा की आड़ में लंबे समय से राज्य के आदिवासियों के धर्मांतरण में लिप्त हैं। सरना आदिवासियों और उनके नेताओं की ओर से यह मांग उठने लगी है कि जो आदिवासी ईसाई बन गए हैं उन्हें अनुसूचित जनजाति के दायरे से बाहर किया जाए।इनका तर्क है कि कोई अल्पसंख्यक और अनुसूचित जनजाति का फायदा एक साथ नहीं ले सकता।धर्मांतरण विरोधी नेताओं के भी यह धारणा है कि चर्च उनके खिलाफ साजिश रच रहा है और उनके धर्म और संस्कृति को नुकसान पहुंचा रहा है ताकि उनकी मौलिकता और पहचान खत्म कर उन्हें ईसाई खेमे में लाया जा सके।

ईसाई धर्म अपनाने वाले आदिवासी चर्च जाने लगते हैं और परंपरागत पूजा स्थलों जैसे मांझी थान एवं जाहेर थान से उनका नाता टूट जाता है।अपने सामाजिक संस्कारों और पर्व त्योहारों से भी उनका दुराव होने लगता है।वे अपने सजातीय सरना परिवार की बेटियों को स्वीकार नहीं करते अथवा इसके लिए उन पर ईसाई धर्म को स्वीकार करने की शर्त रखते हैं इन सब कारकों की वजह से सरना और ईसाई आदिवासियों के बीच दूरी बढ़ रही है। हालांकि राज्य सरकार ने झारखंड धार्मिक स्वतंत्रता बिल 2017 पास किया है जो लोभ या लालच के आधार पर धर्मांतरण पर प्रतिबंध लगाता है।इस कार्य को दंडनीय अपराध बनाया गया है।कानून बनने के पश्चात आदिवासी बहुल जिलों में धर्म परिवर्तन के लिए उपायुक्तों के पास आने वाले आवेदन पत्रों की संख्या में उल्लेखनीय कमी दर्ज की गई है।