सिविल सेवा मुख्य परीक्षा विषयवार अध्ययन/किसान,जनजाति और श्रमिक संघों का आंदोलन

किसान आंदोलन और किसान सभा में होमरूल लीग आंदोलन के कार्यकर्ता काफी सक्रिय थे उन्होंने किसानों को संगठित करना शुरू किया संगठन को नाम दिया गया विधानसभा प्रभारी 1918 में इंद्रनारायण द्विवेदी गौरी शंकर मिश्र और मदन मोहन मालवीय के प्रयासों से यूपी किसान सभा की स्थापना हुई इस संगठन ने किसानों को बड़े पैमाने पर संगठित किया।

किसान सभा ने किसानों को किस हद तक जागरूक बनाया इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि दिसंबर 1918 में दिल्ली में कांग्रेस अधिवेशन में बड़ी संख्या में उत्तर प्रदेश के किसानों ने भाग लिया वर्ष के अंतिम दिनों में किसानों का संगठित विद्रोह खुलकर सामने आया अवध के प्रतापगढ़ जिले की एक जागीर में नाई धोबी बंद सामाजिक बहिष्कार एवं संगठित कार्रवाई घटना थी और दुर्ग पाल ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

लेकिन जल्दी ही आंदोलन में एक नया चेहरा उभरा बाबा रामचंद्र जिन्होंने आंदोलन की बागडोर ही नहीं संभाली अपितु उसे और मजबूत एवं जुझारू बनाया बाबा रामचंद्र महाराष्ट्र के ब्राह्मण परिवार के थे वर्ष के मध्य में एक किसान नेता के रूप में उभरे तथा उन्होंने किसानों को संगठित करना शुरू किया उनमें संगठन की अद्भुत क्षमता थी उनके प्रयासों से प्रतापगढ़ में किसान सभा का गठन हुआ सरस्वती बिहार प्रांतीय किसान सभा के संस्थापक कृषि सुधार कार्यक्रम का

वास्तविक लक्ष्य जमीदारी प्रथा का उन्मूलन तथा कृषकों को मालिकाना अधिकार दिलाना था किसानों के प्रति इनकी समर्पित सेवाओं के कारण इन्हें किसान प्राण कहा जाता था वर्ष 1936 में लखनऊ में अखिल भारतीय किसान कांग्रेस की स्थापना हुई जिसका नाम बाद में बदल कर अखिल भारतीय किसान सभा कर दिया गया इसका अध्यक्ष जी को तथा महासचिव एनजी रंगा को बनाया गया है कांग्रेस के साथ अखिल भारतीय किसान कांग्रेस का भी दूसरा आंदोलन का नेतृत्व पिछड़ी जाति के मदारी पासी ने किया था इस आंदोलन में जिसकी गतिविधि के मुख्य केंद्र हरदोई बाराबंकी बहराइच तथा सीतापुर थे किसानों की मुख्य शिकायतें लगान में बढ़ोतरी और उपज के रूप में वसूल करने की प्रथा को लेकर थी किसानों से 50% से अधिक लगान वसूल किया जा रहा था इस आंदोलन में सरकार को लगा देना बंद नहीं दिया गया बल्कि आंदोलनकारियों की प्रमुख मांग थी कि महंगाई के कारण

लगान का नकद में रूपांतरण किया जाए वह इसमें सूरत जिले के बारदोली तालुके में गांधीवादी आंदोलन और सत्याग्रह को पर्याप्त सफलता मिली यहां मेहता बंधु सरीखे गांधीजी के अनुयायियों में अनुयायियों ने वर्ष 1922 से ही निरंतर अभियान चला रखा था।

वर्ष 1928 में यहां कृषक आंदोलन का नेतृत्व बल्लभ भाई पटेल ने किया था जो बारदोली सत्याग्रह के नाम से प्रसिद्ध हुआ इसी आंदोलन में सफलता के कारण पटेल को बारदोली की महिलाओं ने सरदार की उपाधि प्रदान की

सितंबर 1946 में बंगाल की प्रांतीय किसान सभा द्वारा आंदोलन प्रारंभ किया गया इस आंदोलन में वर्गद्दारों बटाईदार उनकी मांग थी कि जमींदारों का फसल में हिस्सा आधे भाग से कम कर के एक तिहाई किया जाए तथा शेष दो तिहाई हिस्सा वर्ग दारु का हो इस आंदोलन से उत्तरी बंगाल के जिले विशेष रूप से प्रभावित हुए आचार्य विनोबा भावे सर्वोदय सम्मेलन के सिलसिले में 18 अप्रैल को आंध्र प्रदेश के गोंडा जिले में पहुंचे उस समय साम्यवादी गतिविधियों का प्रमुख केंद्र था इसी जिले के गांव में ठहरे हुए थे प्रवास के दौरान गांव के 40 परिवारों के लिए भूमि की समस्या का समाधान तलाशते समय इसी गांव के जमींदार राम चंद्र भूमि देने का प्रस्ताव किया

यह सता स्फूर्ति प्रस्ताव ही भूदान आंदोलन की उत्पत्ति का स्रोत बना अक्टूबर 1957 तक विनोबा जी ने पूरे भारत में 50 मिलियन एकड़ भूमि भूमिहीनों के लिए प्राप्त करने के उद्देश्य से भूदान आंदोलन का नेतृत्व किया।

श्रमिक संघों का आंदोलन

सम्पादन

1929 का व्यापार विवाद अधिनियम (ट्रेड डिस्प्यूट्स एक्ट) निम्नलिखित में से किसका उपबंध करता है? (I.A.S-2017):-अधिकरणों (ट्रिब्यूनल्स) की प्रणाली तथा हड़तालों पर रोक