सिविल सेवा मुख्य परीक्षा विषयवार अध्ययन/जम्मू और काश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त
अनुच्छेद 370 भारत के संविधान में 17 अक्तूबर, 1949 को शामिल किया गया था। यह अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर को भारत के संविधान से अलग करता है और राज्य को अपना संविधान खुद तैयार करने का अधिकार देता है। इस मामले में अपवाद केवल आर्टिकल अनुच्छेद 370(1) को रखा गया है। अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर के मामले में संसद को संसदीय शक्तियों का इस्तेमाल करने से रोकता है।
नवंबर 1956 में जम्मू-कश्मीर में अलग संविधान का काम पूरा हुआ और 26 जनवरी, 1957 को राज्य में विशेष संविधान लागू कर दिया गया। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370 दरअसल केंद्र से जम्मू-कश्मीर के संबंधों की रूपरेखा निर्धारित करता है। अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर को विशेष अधिकार देता है। इसके तहत भारतीय संसद जम्मू-कश्मीर के मामले में सिर्फ तीन क्षेत्रों- रक्षा, विदेश मामले और संचार के लिये कानून बना सकती है। इसके अलावा किसी कानून को लागू करवाने के लिये केंद्र सरकार को राज्य सरकार की मंज़ूरी की आवश्यकता होती है।[१]
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में भारतीय दंड संहिता का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता था। राज्य में केवल रणबीर दंड संहिता का प्रयोग होता था, जो ब्रिटिश काल से इस राज्य में लागू थी। भारत के आज़ाद होने से पहले जम्मू-कश्मीर एक स्वतंत्र रियासत था और उस समय वहाँ डोगरा राजवंश का शासन था। महाराजा रणबीर सिंह जम्मू-कश्मीर के शासक थे; इसलिये 1932 में उन्हीं के नाम पर रणबीर दंड संहिता लागू की गई थी।
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने संविधान (जम्मू और कश्मीर में लागू) संशोधन आदेश, 2019 [Constitution (Application to Jammu & Kashmir) Amendment Order, 2019] को मंज़ूरी दे दी है। राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 370 की धारा (1) के अंतर्गत संविधान (जम्मू और कश्मीर में लागू) संशोधन आदेश, 2019 जारी किये जाने के बाद संविधान (77वाँ संशोधन) अधिनियम, 1995 तथा संविधान (103वाँ संशोधन) अधिनियम, 2019 के माध्यम से भारतीय संविधान के संशोधित तथा प्रासंगिक प्रावधान लागू होंगे।
अनुच्छेद 370
- 17 अक्तूबर, 1949 को संविधान में शामिल, अनुच्छेद 370 भारतीय संविधान से जम्मू-कश्मीर को छूट देता है (केवल अनुच्छेद 1 और अनुच्छेद 370 को छोड़कर) और राज्य को अपने संविधान का मसौदा तैयार करने की अनुमति देता है।
- यह तब तक के लिये एक अंतरिम व्यवस्था मानी गई थी जब तक कि सभी हितधारकों को शामिल करके कश्मीर मुद्दे का अंतिम समाधान हासिल नहीं कर लिया जाता।
- यह राज्य को स्वायत्तता प्रदान करता है और इसे अपने स्थायी निवासियों को कुछ विशेषाधिकार देने की अनुमति देता है।
- राज्य की सहमति के बिना आंतरिक अशांति के आधार पर राज्य में आपातकालीन प्रावधान पर लागू नहीं होते हैं|
- राज्य का नाम और सीमाओं को इसकी विधायिका की सहमति के बिना बदला नहीं जा सकता है।
- राज्य का अपना अलग संविधान, एक अलग ध्वज और एक अलग दंड संहिता (रणबीर दंड संहिता) है।
- राज्य विधानसभा की अवधि छह साल है, जबकि अन्य राज्यों में यह अवधि पाँच साल है।
- भारतीय संसद केवल रक्षा, विदेश और संचार के मामलों में जम्मू-कश्मीर के संबंध में कानून पारित कर सकती है। संघ द्वारा बनाया गया कोई अन्य कानून केवल राष्ट्रपति के आदेश से जम्मू-कश्मीर में तभी लागू होगा जब राज्य विधानसभा की सहमति हो।
- राष्ट्रपति, लोक अधिसूचना द्वारा घोषणा कर सकते हैं कि इस अनुच्छेद को तब तक कार्यान्वित नहीं किया जा सकेगा जब तक कि राज्य विधानसभा इसकी सिफारिश नहीं कर देती है|
अनुच्छेद 35A
- अनुच्छेद 35A, जो कि अनुच्छेद 370 का विस्तार है, राज्य के स्थायी निवासियों को परिभाषित करने के लिये जम्मू-कश्मीर राज्य की विधायिका को शक्ति प्रदान करता है और उन स्थायी निवासियों को विशेषाधिकार प्रदान करता है तथा राज्य में अन्य राज्यों के निवासियों को कार्य करने या संपत्ति के स्वामित्व की अनुमति नहीं देता है।
- इस अनुच्छेद का उद्देश्य जम्मू-कश्मीर की जनसांख्यिकीय संरचना की रक्षा करना था।
- अनुच्छेद 35A की संवैधानिकता पर इस आधार पर बहस की जाती है कि इसे संशोधन प्रक्रिया के माध्यम से नहीं जोड़ा गया था। हालाँकि, इसी तरह के प्रावधानों का इस्तेमाल अन्य राज्यों के विशेष अधिकारों को बढ़ाने के लिये भी किया जाता रहा है।
अनुच्छेद 35A, जो कि अनुच्छेद 370 का विस्तार है, राज्य के स्थायी निवासियों को परिभाषित करने के लिये जम्मू-कश्मीर राज्य की विधायिका को शक्ति प्रदान करता है और वहाँ के स्थायी निवासियों को विशेषाधिकार प्रदान करता है तथा राज्य में अन्य राज्यों के निवासियों को कार्य करने या संपत्ति के स्वामित्व की अनुमति नहीं देता। इस अनुच्छेद का उद्देश्य जम्मू-कश्मीर की जनसांख्यिकीय संरचना की रक्षा करना था।
दरअसल, जम्मू-कश्मीर के भारत में शामिल होने के बाद शेख अब्दुल्ला वहाँ के अंतरिम प्रधानमंत्री बने। वर्ष 1952 में जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला और भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के बीच एक समझौता हुआ, जिसे दिल्ली समझौता कहा जाता है। इसके तहत संविधान की धारा 370(1)(D) के तहत भारत के राष्ट्रपति को जम्मू-कश्मीर के ‘राज्य विषयों’ के लिये संविधान में ‘अपवाद और संशोधन’ करने का अधिकार मिला हुआ था। इसका इस्तेमाल करते हुए राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 14 मई, 1954 को एक आदेश के ज़रिये धारा 35A को लागू किया था।
अनुच्छेद 35A की संवैधानिकता को लेकर इस आधार पर बहस की जाती रही है कि इसे संशोधन प्रक्रिया के माध्यम से नहीं जोड़ा गया था। हालाँकि इसी तरह के प्रावधानों का इस्तेमाल अन्य राज्यों के विशेष अधिकारों को बढ़ाने के लिये भी किया जाता रहा है।