सिविल सेवा मुख्य परीक्षा विषयवार अध्ययन/बौद्ध धर्म &जैन धर्म

प्रारंभिक बौद्ध और जैन साहित्य महाजनपदों की सूची प्रस्तुत करता है जिनके विभिन्न ग्रंथों के नामों में अंतर भी देखने को मिलता है। अंगुत्तर निकाय के अनुसार, 16 निम्नलिखित महाजनपद थे: अंग, अश्मक, अवंती, चेदि, गांधार, काशी, कंबोज, कोसल, कुरु, मगध, मल्ल, मत्स्य, पांचाल, शूरसेन, वज्जि और वत्स। दीघ निकाय में उपरोक्त सूची में से केवल बारह महाजनपदों का उल्लेख किया गया है। इसमें अश्मक, अवंती, गांधार और कंबोज का उल्लेख नहीं मिलता है। बौद्ध निकायों में भारत के पाँच भागों यानी उत्तरापथ (पश्चिमोत्तर भाग) मध्यदेश (केंद्रीय भाग), प्राची (पूर्वी भाग), दक्षिणापथ (दक्षिणी भाग) और अपरांत (पश्चिमी भाग) का उल्लेख मिलता है। इससे इस बात की पुष्टि होती है कि भारत की भौगोलिक एकता ईसा पूर्व छठी शताब्दी से पहले परिकल्पित की जा चुकी थी। जैन ग्रंथ भगवती सूत्र और सूत्रकृतांग तथा महान वैयाकरण पाणिनी की अष्टाध्यायी (ई.पू. छठी शताब्दी), बौधायन धर्मसूत्र (ई.पू. सातवीं शताब्दी) में भी जनपदों की सूचियाँ मिलती हैं।

पालि ग्रंथों में गाँव के तीन भेद किये गए हैं।

प्रथम कोटि में सामान्य गाँव है जिनमें विविध वर्णों और जातियों का निवास होता था।द्वितीय कोटि में उपनगरीय गाँव थे जिन्हें शिल्पी-ग्राम कह सकते हैं, उल्लेखनीय है कि तृतीय कोटि में सीमांत ग्राम आते हैं, जो जंगल से संलग्न देहातों की सीमा पर बसे होते थे।


राजा किसानों की उपज का छठा हिस्सा कर के रूप में लेता था। इसका निर्धारण और वसूली गाँव के मुखिया की सहायता से राजा के कर्मचारी करते थे। गणतंत्र में राजस्व पाने का अधिकार गण या गोत्र का प्रत्येक प्रधान का होता था जो राजन् कहलाता था। राजतंत्र में एकमात्र राजा राजस्व पाने का अधिकारी होता था।

भारतीय विधि और न्याय-व्यवस्था का उद्भव इसी काल में हुआ। पहले कबायली कानून चलते थे, जिसमें वर्ण-भेद को कोई स्थान नहीं था। धर्मसूत्रों में हर वर्ण के लिये अपने-अपने कर्त्तव्य तय कर दिये गए और वर्णभेद के आधार पर ही व्यवहार-विधि (सिविल लॉ) और दंडविधि (क्रिमिनल लॉ) तय हुई।

पालि ग्रंथों में गाँव के तीन भेद किये गए हैं। प्रथम कोटि में सामान्य गाँव है जिनमें विविध वर्णों और जातियों का निवास होता था।द्वितीय कोटि में उपनगरीय गाँव थे जिन्हें शिल्पी-ग्राम कह सकते हैं। तृतीय कोटि में सीमांत ग्राम आते हैं,जो जंगल से संलग्न देहातों की सीमा पर बसे होते थे।

गौतम बुद्ध ब्राह्मणों,क्षत्रियों और गृहपतियों की सभा में गए, परंतु शूद्रों की सभा में उनके जाने का कोई उल्लेख नहीं मिलता है।

दीघनिकाय प्राचीन बौद्ध पालिग्रंथ है।


विकल्प में दिये गए पद नाम एवं उनकी समाज में स्थिति का सुमेलन निम्नानुसार हैं:

सूची-I (पद) सूची-II (समाज में स्थिति) A. भोजक 1. गाँव का मुखिया B. गहपति 2. धनी किसान C. महामात्र 3. उच्च कोटि के अधिकारी D. भांडागारिक 4. भंडारगृह का अध्यक्ष गहपति’ एक पालि शब्द है जो धनी किसान के लिये प्रयोग होता था। ये लोग वैश्यों की श्रेणी में आते थे।

छठी सदी ईसा-पूर्व अधिकारी वर्ग इस काल में ‘महामात्र’ उच्च कोटि के अधिकारी कहलाते थे। वे कई तरह के कार्य करते थे, जैसे-मंत्री, सेनानायक, न्यायाधिकारी आदि। शौल्किक या शुल्काध्यक्ष चुंगी वसूल करने वाला अधिकारी होता था वह व्यापारियों से उनके माल पर चुंगी वसूल करता था, बलिसाधक वे अधिकारी होते थे जो किसानों से फसल का अनिवार्य रूप से देय हिस्सा वसूलते थे।

‘आगम’:-महावीर की शिक्षाओं को संग्रहित करने वाले ग्रंथ। महावीर 24वें तीर्थंकर थे, जिन्हें 23 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ का उत्तराधिकारी बनाया गया। जैन धर्म के तीन रत्नों या त्रिरत्न में सम्यक दर्शन (सही विश्वास), सम्यक ज्ञान (सही ज्ञान) और सम्यक चरित्र (सही आचरण) शामिल हैं।

06 अप्रैल 2020 को महावीर जयंती (Mahavir Jayanti)मनाया गया। वर्धमान महावीर जैन धर्म के 24वें एवं अंतिम तीर्थंकर थे जो 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ (Parshvanatha) के उत्तराधिकारी थे। जैन ग्रंथों के अनुसार,भगवान महावीर का जन्म चैत्र महीने में अर्द्धचंद्र के 13वें दिन हुआ था। यह त्योहार जैन समुदाय द्वारा जैन धर्म के अंतिम आध्यात्मिक शिक्षक की स्मृति में व्यापक रूप से मनाया जाता है। इस उत्सव पर भगवान महावीर की मूर्ति के साथ निकलने वाले जुलूस को ‘रथ यात्रा’ (Rath Yatra) कहा जाता है। स्तवन या जैन प्रार्थनाओं को याद करते हुए भगवान महावीर की प्रतिमाओं को एक औपचारिक स्नान कराया जाता है जिसे अभिषेक (Abhisheka) कहा जाता है।

भगवान महावीर का जन्म 540 ईसा पूर्व कुंडग्राम (वैशाली) में हुआ था। इनके पिता सिद्धार्थ ज्ञात्रिक कुल के सरदार एवं माता त्रिशला जो वज्जि संघ में लिच्छवी राजकुमारी तथा लिच्छवि राजा चेटक की बहन थी। वज्जि संघ आधुनिक बिहार में वैशाली क्षेत्र के अंतर्गत आता है।

भगवान महावीर का संबंध इक्ष्वाकु वंश (Ikshvaku Dynasty) से माना जाता है। इनके बचपन का नाम वर्धमान था जिसका अर्थ है ‘जो बढ़ता है’। उन्होंने 30 वर्ष की आयु में सांसारिक जीवन को त्याग दिया और 42 वर्ष की आयु में ज्रम्भिक के समीप ऋजुपालिका नदी के तट पर साल के वृक्ष के नीचे कैवल्य (Kaivalya) अर्थात् संपूर्ण ज्ञान को प्राप्त किया। महावीर ने अपने शिष्यों को पंच महाव्रतों अहिंसा,सत्य,अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य (शुद्धता) एवं अपरिग्रह (गैर लगाव) की शिक्षा दी और उनकी शिक्षाओं को जैन आगम (Jain Agamas) कहा गया। 72 वर्ष की आयु में महावीर की मृत्यु (निर्वाण) 468 ईसा पूर्व में बिहार राज्य के पावापुरी (राजगीर) में हुई। मल्लराजा सृस्तिपाल के राज प्रसाद में भगवान महावीर को निर्वाण प्राप्त हुआ था। जैन धर्म में ईश्वर की मान्यता नहीं है जबकि आत्मा की मान्यता है। महावीर पुनर्जन्म एवं कर्मवाद में विश्वास करते थे। जैन धर्म के त्रिरत्न सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान एवं सम्यक आचरण है। जैन धर्म को मानने वाले प्रमुख राजा उदयिन, चंद्रगुप्त मौर्य, कलिंग नरेश खारवेल, राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष, चंदेल शासक थे। मौर्योत्तर युग में मथुरा जैन धर्म का प्रसिद्ध केंद्र था। मथुरा कला का संबंध जैन धर्म से है। खजुराहो के जैन मंदिरों का निर्माण चंदेल शासकों द्वारा किया गया।