सिविल सेवा मुख्य परीक्षा विषयवार अध्ययन/भारतीय संस्कृति में कला
रॉक आर्ट/शैल चित्र
सम्पादन- मानव द्वारा प्राकृतिक पत्थर पर निर्मित इस चित्र को तीन रूपों में विभाजित किया जाता है।
- शैलोत्कीर्ण (Petroglyphs): जो चट्टान की सतह पर खुदे हुए हैं।
- चित्रलिपि (Pictographs): जिन्हें सतह पर चित्रित किया गया है।
- अल्पना/रंगोली/अर्थ फीगर्स (Earth Figures): जो ज़मीन पर बने हुए हैं।
भारत में शैल चित्र मुख्य रूप से निम्नलिखित गुफाओं में पाए जाते हैं:
- भीमबेटका गुफाएँ (Bhimbetka caves):- होशंगाबाद तथा भोपाल के बीच स्थित।
- बाघ गुफाएँ (Bagh caves): मध्य प्रदेश के धार ज़िले में बाघनी नदी के तट पर स्थित है।[१]
- जोगीमारा गुफाएँ (Jogimara caves): यहाँ बने चित्र अजंता और बाग की गुफाओं के शैल चित्रों से भी पुराने हैं और इनका संबंध बुद्ध (Buddha) से पूर्व की गुफाओं से हैं। ये गुफाएँ छतीसगढ़ के सरगुज़ा ज़िले में नर्मदा के उद्गम स्थल के निकट अमरनाथ में स्थित हैं।
- अरमामलाई गुफाएँ (Armamalai caves):-तमिलनाडु के वेल्लोर ज़िले में स्थित अरमामलाई के गुफा चित्र, प्राचीन चित्रों, शैल उत्तकीर्णों (Petroglyphs) और शैल चित्रों के साथ एक जैन मंदिर के लिये
जानी जाती हैं। महत्त्व रॉक पेंटिंग/शैल चित्रकला, शिकार की विधि एवं स्थानीय समुदायों के जीवन जीने के तरीकों का एक ‘ऐतिहासिक रिकॉर्ड’ के रूप में विवरण प्रस्तुत करती है। स्थानीय निवासियों द्वारा रॉक कला का उपयोग अनुष्ठानिक उद्देश्य के लिये किया जाता था। आदिवासी समुदाय के लोग शैलों पर उत्कीर्ण चित्रों का अनुकरण कर अपने रीति-रिवाज़ों का पालन करते हैं।
बसोहली पेंटिंग तथा पेपर माछी हस्तकला
सम्पादनजम्मू की प्रसिद्ध बसोहली पेंटिंग और कश्मीर की पेपर माछी हस्तकला नजर आएगी नए अवतार में राज्य के प्रसिद्ध कलाकार वीर मुंशी तैयार कर रहे हैं झांकी गणतंत्र दिवस पर राजपथ समारोह के लिए। सरकार की योजना 'गांव की ओर' के तहत झांकी में ग्रामीण कलाओं और रोजगार का प्रमोशन भी किया जाएगा। बसोहली जम्मू के कठुआ जिले का कस्बा है।पेंटिंग पहाड़ी लघु चित्र कला का स्कूल माना जाता रहा है।इसकी विशेषता गहरी रेखाओं के साथ रंगों का कुशल संयोजन है। इसमें महाकाव्यों के नायकों को प्रमुख रूप से विषय वस्तु बनाया गया है।17 वीं शताब्दी में शुरू यह चित्रकला राग माला सीरीज में मिलती है, जिसमें भगवान राम की लीलाओं का चित्रण है भगवान कृष्ण की लीलाएं भी इसमें समाहित होती गई।
वही पेपर माछी कश्मीर का हस्तशिल्प है जिसे 14 वीं शताब्दी में भारत के मुस्लिम संत मीर सैय्यद अली हमदानी द्वारा लाया गया था यह मुख्य रूप से पेपर पर आधारित है। यह श्रीनगर और कश्मीर के अन्य हिस्सों में घरों व कार्यशाला में बनाए जाते हैं।
- अष्टांग योग एक प्राचीन पांडुलिपि योग कोरुंता में वामन ऋषि द्वारा बताई गई योग की एक प्रणाली है। अष्टांग योग का शाब्दिक अर्थ है "आठ अंगों वाला योग," जो कि पतंजलि ऋषि ने योगसूत्र में बताया है।
पतंजलि के अनुसार, सार्वभौमिक-स्व को प्रकट करने के लिये आंतरिक शुद्धि के मार्ग में निम्नलिखित आठ आध्यात्मिक अभ्यास शामिल हैं: यम (नैतिक संहिता) नियम (आत्म-शुद्धि और अध्ययन) आसन (शारीरिक स्थिति) प्राणायाम (श्वास नियंत्रण) प्रत्याहार (इंद्रिय नियंत्रण) धारणा (एकाग्रता) ध्यान (ध्यान) समाधि (सार्वभौम सत्ता में समाहित होना)[२]
नृत्य कला
सम्पादन- भरतनाट्यम (तमिलनाडु)
भरतनाट्यम एकल स्त्री नृत्य है। इसमें नृत्य क्रम इस प्रकार होता है- आलारिपु (कली का खिलना), जातीस्वरम् (स्वर जुड़ाव), शब्दम् (शब्द और बोल), वर्णम् (शुद्ध नृत्य और अभिनय का जुड़ाव), पदम् (वंदना एवं सरल नृत्य) तथा तिल्लाना (अंतिम अंश विचित्र भंगिमा के साथ)। भरतनाट्यम नृत्य के संगीत वाद्य मंडल में एक गायक, एक बाँसुरी वादक, एक मृदंगम वादक, एक वीणा वादक और एक करताल वादक होता है। कत्थकली (केरल) कत्थकली अभिनय, नृत्य और संगीत तीनों का समन्वय है। यह एक मूकाभिनय है जिसमें हाथ के इशारों और चेहरे की भावनाओं के सहारे अभिनेता अपनी प्रस्तुति देता है। कुचीपुड़ी (आंध्र प्रदेश) आंध्र प्रदेश के कृष्णा ज़िले में कुचीपुड़ी नामक गाँव है जहाँ के द्रष्टा तेलुगू वैष्णव कवि सिद्धेन्द्र योगी ने यक्षगान के रूप में कुचीपुड़ी शैली की कल्पना की। कुचीपुड़ी में पानी भरे मटके को अपने सिर पर रखकर पीतल की थाली में नृत्य करना बेहद लोकप्रिय है। कुचीपुड़ी में स्त्री-पुरुष दोनों नर्तक भाग लेते हैं और कृष्ण-लीला प्रस्तुत करते हैं। मोहिनीअट्टम (केरल) यह एकल महिला द्वारा प्रस्तुत किया जाने वाला ऐसा नृत्य है, जिसमें भरतनाट्यम तथा कत्थकली दोनों के कुछ तत्त्व शामिल हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु ने भस्मासुर से शिव की रक्षा हेतु मोहिनी रूप धारण कर यह नृत्य किया था। मणिपुरी (मणिपुर) यह पूर्वोत्तर भारत के मणिपुर राज्य की नृत्य शैली है। इसका प्रमुख वाद्य यंत्र ढोल है। इसमें शरीर धीमी गति से चलता है। पैरों के संचालन में कोमलता एवं मृदुलता का परिचय मिलता है।
- कत्थक (उत्तर प्रदेश)
यह ब्रजभूमि की रासलीला परंपरा से जुडा हुआ है। इसमें हस्त मुद्राओं तथा पद ताल पर अधिक ध्यान दिया जाता है।
- सत्रिया नृत्य (असम)
यह संगीत,नृत्य तथा अभिनय का सम्मिश्रण है। शंकरदेव ने इसे अंकीया नाट के प्रदर्शन के लिये विकसित किया।
- ओडिशी नृत्य (ओडिशा)
महारिस नामक संप्रदाय जो शिव मंदिरों में नृत्य करता था, उसी से इस नृत्य का विकास हुआ। इस नृत्य में प्रयुक्त होने वाले छंद संस्कृत नाटक गीत गोविंदम से लिये गए हैं।