सिविल सेवा मुख्य परीक्षा विषयवार अध्ययन/भारतीय स्वतंत्रता संग्राम 1942 से 1952 तक

कैबिनेट मिशन योजना(1946)

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ब्रिटेन में 26 जुलाई 1945 को इटली के नेतृत्व में ब्रिटिश मंत्रिमंडल ने सप्ताह ग्रहण की नौसेना विद्रोह के 1 दिन बाद 1 फरवरी में 10046 को द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भारत सचिव पैथिक लोरेंस भारत में संवैधानिक सुधारों के लिए एक शिष्टमंडल भेजने का निर्णय किया कैबिनेट मिशन 2 अप्रैल

1946 को दिल्ली आया इसके अध्यक्ष भारत मंत्री लॉर्ड पैथिक लोरेंस थे तथा अन्य 2 सदस्य स्टेफोर्ड अध्यक्ष बोर्ड ऑफ ट्रेड तथा एबी एलेग्जेंडर नौसेना मंत्री कैबिनेट मिशन ने प्रिय सर यह शासन व्यवस्था को समझाया प्रांतों के छोटे अथवा बड़े बनाने के अधिकार की पुष्टि की तथा प्रांतों को आवा और तीन श्रेणियों में विभक्त किया।

16 मई 1946 को कैबिनेट मिशन ने अपने प्रस्तावों की घोषणा की इसके प्रमुख प्रस्ताव थे भारत एकता बनाए रखी जाए मुस्लिम लीग की पाकिस्तान की मांग ठुकरा दी गई भारत एक संग होगा जिसमें ब्रिटिश प्रांत तथा देशी रियासतें शामिल होगी संविधान निर्मात्री सभा का गठन प्रांतीय विधानसभाओं के प्रतिनिधियों द्वारा किया जाए।

कैबिनेट मिशन 1946 में वायसराय की एग्जीक्यूटिव काउंसिल का पुनर्गठन का अंतरिम सरकार के गठन का सुझाव दिया जिसमें वार्ड मेंबर सहित सभी विभाग भारतीय सदस्यों द्वारा धारण किए जाने थे कैबिनेट मिशन योजना के पक्ष में पूरी तरह से थे।

इस योजना के संदर्भ में गांधी जी ने कहा यह योजना उस समय की परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में सबसे उत्कृष्ट योजना थी जिसमें ऐसे बिजी थे जिनसे दुख की मारी भारत भूमि यात्रा से मुक्त हो सकते थे मौलाना अबुल कलाम आजाद कैबिनेट मिशन के भारत आगमन के समय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष

ब्रिटिश सरकार ने मार्च 1946 में कैबिनेट मिशन भारत भेजा, ताकि भारतीय नेताओं से भारतीयों को सत्ता सौंपने की शर्तों के बारे में बातचीत की जाए। कैबिनेट मिशन ने दो स्तरों वाली एक संघीय योजना का प्रस्ताव किया, जिससे आशा की गई कि बड़ी मात्रा में क्षेत्रीय स्वायत्तता देकर भी राष्ट्रीय एकता को बनाए रखा जा सकेगा। कैबिनेट मिशन योजना में प्रांतों और रजवाड़ों का एक संघ होता और संघीय केंद्र का केवल प्रतिरक्षा, विदेशी मामलों एवं संचार विषयों पर नियंत्रण होता। साथ ही प्रांत अपने-अपने क्षेत्रीय संगठन भी बना सकते थे।

संविधान सभा(1946)

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अंतरिम सरकार का गठन

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दिल्ली पैक्ट, 1950’ दोनों देशों, विशेष रूप से बंगाल (पूर्वी पाकिस्तान के साथ-साथ पश्चिम बंगाल) में शरणार्थियों की समस्याओं को हल करने और सांप्रदायिक शांति बहाल करने के लिये, भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने 8 अप्रैल, 1950 को एक समझौते पर हस्ताक्षर किये। अल्पसंख्यकों पर दिल्ली समझौते या लियाकत-नेहरू पैक्ट के रूप में विख्यात इस समझौते के तहत, पाकिस्तान और भारत में केंद्रीय और प्रांतीय दोनों स्तरों पर अल्पसंख्यक समुदायों से संबंधित मंत्रियों की नियुक्ति के प्रावधान थे। संधि के तहत, अल्पसंख्यक आयोगों की स्थापना के साथ ही सीमा के दोनों ओर (बंगाल में) सांप्रदायिक दंगों के पीछे के संभावित कारणों की जाँच करने और ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने संबंधी उपायों की सिफारिश करने के लिये एक जाँच आयोग की स्थापना का भी प्रावधान था। इस संधि के तहत भारत और पाकिस्तान, पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिम बंगाल के मंत्रिमंडलों में अल्पसंख्यक समुदाय के प्रतिनिधियों को शामिल करने के लिये सहमत हुए और प्रत्येक केंद्रीय सरकार में दो केंद्रीय मंत्रियों की प्रतिनियुक्ति का फैसला लिया, जो आवश्यकता पड़ने पर प्रभावित क्षेत्रों में रह सके।


गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) का गठन और स्थापना विकासशील देशों द्वारा औपनिवेशिक व्यवस्था के पतन और अफ्रीका, एशिया, लैटिन अमेरिका और दुनिया के अन्य क्षेत्रों के लोगों के स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान हुई थी। यह वह समय था जब दुनिया शीत युद्ध के प्रभाव में थी। वर्ष 1955 के बांडुंग सम्मेलन के अंतिम प्रस्ताव से गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) की नींव रखी गई थी। ज्ञानी जैल सिंह ने 1983-86 की अवधि तक NAM के महासचिव थे। वह नीलम संजीव रेड्डी के बाद NAM के महासचिव रहने वाले दूसरे भारतीय थे।