वायुराशि ने पृथ्वी के तापमान को रहने योग्य बनाया है।इसमें नाइट्रोजन 78 %,ऑक्सीजन 21 %,आर्गन 0.93%, कर्बन डाइऑक्साइड (CO2)0.03% तथा शेष 0.04%में हाइड्रोजन,हीलियम,निऑन, क्रिप्टन, जेनान,ओज़ोन तथा जल वाष्प होती है। पौधे सीधे वायु से नाइट्रोजन नहीं ले पाते।मृदा तथा कुछ पौधों की जड़ों में रहने वाले जीवाणु वायु से नाइट्रोजन लेकर इसका स्वरूप बदल देते हैं,ताकि पौधे इसका प्रयोग कर सकें। कर्बन डाइऑक्साइड (CO2) वायुमंडल में फैलकर पृथ्वी से विकिरित ऊष्मा को पृथ्वी पर रोककर ग्रीन हाउस गैस प्रभाव पैदा करती है।इसलिए इसे ग्रीन हाउस गैस भी कहते हैं।इसके अभाव में धरती इतनी ठंडी हो जाती कि इस पर रहना असंभव होता।परंतु जब कारखानों एवं कार के धुएँ से वायुमंडल का स्तर बढ़ता है,तब इस उष्मा के द्वारा पृथ्वी का तापमान बढ़ता है,जिसे भूमंडलीय तापन कहते हैं।

  • तापमान डिग्री सेल्सियस में मापा जाता है।इसका आविष्कार ऐंडर्स सेल्सियस ने किया।
  • चाँद पर वायु नहीं है,इसलिए वायुदाब भी नहीं है।इस लिए अंतरिक्ष यात्री चाँद पर सुरक्षित हवा से भरी अंतरिक्ष पोशाक पहनते हैं।ऐसा न करने पर शरीर द्वारी विपरीत बल लगने के कारण उनकी रक्त शिराएँ फटकर रक्तस्रावित हो सकते हैं।

वायुमण्डल की परतें सम्पादन

 
वायुमण्डल की विभिन्न परतें

वायुमण्डल का घनत्व ऊंचाई के साथ-साथ घटता जाता है। वायुमण्डल को 5 विभिन्न परतों में विभाजित किया गया है।

  • क्षोभमण्डल
  • समतापमण्डल
  • मध्यमण्डल
  • तापमण्डल
  • बाह्यमण्डल

क्षोभमण्डल सम्पादन

क्षोभमण्डल वायुमंडल की सबसे निचली परत है।मौसम संबंधी सारी घटनाएं इसी में घटित होती हैं।इसकी औसत ऊँचाई 13 किमी है।इसकी ऊँचाई ध्रुवो पर 8 से 10 कि॰मी॰ तथा विषुवत रेखा पर लगभग 18 से 20 कि॰मी॰ होती है। इस मंडल को संवहन मंडल और अधो मंडल भी कहा जाता हैं।

समतापमण्डल सम्पादन

क्षोभमण्डल के ऊपर लगभग 50 किमी की ऊचाँई तक फैला है।यह परत बादलों एवं मौसम संबंधी घटनाओं से लगभग मुक्त होती है।यहाँ की परिस्थितियाँ हवाई जहाज उड़ाने के लिए आदर्श होती हैं।इसमें ओजोन गैस की परत होती है,जो सूर्य से आनेवाली हानिकारक गैसों से हमारी रक्षा करती है। ओजोनमंडलसमतापमंडल 20 से 50 किलोमीटर तक विस्तृत है।(समतापमंडल में लगभग 30 से 60 किलोमीटर तक ओजोन गैस पाया जाता है जिसे ओजोन परत कहा जाता है।) इस मण्डल में तापमान स्थिर रहता है तथा इसके बाद ऊंचाई के साथ बढ़ता जाता है। समताप मण्डल बादल तथा मौसम संबंधी घटनाओं से मुक्त रहता है। इस मण्डल के निचले भाग में जेट वायुयान के उड़ान भरने के लिए आदर्श दशाएं हैं। इसकी ऊपरी सीमा को 'स्ट्रैटोपाज' कहते हैं। इस मण्डल के निचले भाग में ओज़ोन गैस बहुतायात में पायी जाती है। इस ओज़ोन बहुल मण्डल को ओज़ोन मण्डल कहते हैं। ओज़ोन गैस सौर्यिक विकिरण की हानिकारक पराबैंगनी किरणों को सोख लेती है और उन्हें भूतल तक नहीं पहुंचने देती है तथा पृथ्वी को अधिक गर्म होने से बचाती हैं।यहाँ से ऊपर जाने पर तापमान में बढोतरी होती है ओजोन परत टूटने की इकाई डाब्सन मे मापी जाती है।

मध्यमण्डल सम्पादन

यह वायुमंडल की तीसरी परत है जो समताप सीमा के ठीक ऊपर स्थित है। इसकी ऊंचाई लगभग 80 किलोमीटर तक है। अंतरिक्ष से आने वाले उल्का पिंड इसी परत में जलते है।

बाह्य वायुमंडल सम्पादन

इसमें बढ़ती ऊँचाई के साथ तापमान अत्यधिक तीव्रता से बढ़ता है।आयनमंडल इसी परत का एक भाग है।यह 80से 400किमी तक फैला है।इसका उपयोग रेडियो संचार के लिए होता है। तापमण्डलइस मण्डल में ऊंचाई के साथ ताप में तेजी से वृद्धि होती है। तापमण्डल को पुनः दो उपमण्डलों 'आयन मण्डल' तथा 'आयतन मण्डल' में विभाजित किया गया है। आयन मण्डल, तापमण्डल का निचला भाग है जिसमें विद्युत आवेशित कण होते हैं जिन्हें आयन कहते हैं। ये कण रेडियो तरंगों को भूपृष्ठ पर परावर्तित करते हैं और बेतार संचार को संभव बनाते हैं। तापमण्डल के ऊपरी भाग आयतन मण्डल की कोई सुस्पष्ट ऊपरी सीमा नहीं है। इसके बाद अन्तरिक्ष का विस्तार है। यह बहुत ही महत्वपूर्ण परत है।

बहिर्मंडल सम्पादन

वायुमंडल की सबसे ऊपरी परत।यहां वायु की पतली परत होती है।हीलियम एवं हाइड्रोजन यहीं से अंतरिक्ष में तैरती रहती हैं।

वायुमंडल की विशेषताएँ सम्पादन

  • मौसम एवं जलवायुमौसम नाटकीय रूप से दिन-प्रतिदिन बदलता है।किंतु दीर्घ काल में किसी स्थान का औसत मौसम,उस स्थान की जलवायु बताता है।
  • तापमान-वायु में मौजूद ताप एवं शीतलता का परिमाण।
  • आतपन (सूर्यातप)तापमान के वितरण को प्रभावित करता है।यह सूर्य से आनेवाली वह ऊर्जा है जिसे पृथ्वी रोकती है।इसकी मात्रा भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर घटती है।
  • वायुदाब हमारे ऊपर सभी दिशाओं से लगता है,और हमारा शरीर विपरीत बल लगाता है।वायुमंडल में ऊपर की ओर जाने पर दाब तेजी से गिरने लगता है।समुद्र स्तर पर वायुदब का क्षैदिज वितरण किसी स्थान पर उपस्थित वायु के ताप द्वारा प्रभावित होता है।नम्न दाब,बादलयुक्त आकाश एवं नम मौसम के साथ जुड़ा होता है।
  • पवन- गति उच्च दाब से निम्न दाब क्षेत्र की ओर।
  1. स्थायी पवनें:-व्यापारिक पश्चिमी एवं पूर्वी पवनें।ये वर्षभर लगातार निश्चित दिशा में चलती रहती हैं।
  2. मौसमी पवनें:ये विभिन्न ऋतुओं में अपनी दिशा बदलती रहती हैं।
  3. स्थानीय पवनें:ये किसी छोटे क्षेत्र में वर्ष हा दिन के किसी विशेष समय में चलती

हैं।उदाहरण-स्थल एवं समुद्री समीर,लू इत्यादि।

आर्द्रता-वायु में किसी भी समय जलवाष्प की मात्रा।वायु में जलवाष्प की मात्रा अत्यधिक होती है तो उसे आर्द्र दिन कहते हैं।जैसे-जैसे वायु गर्म होती जाती है,इसकी जलवाष्प धारण करने की क्षमता बढ़ती जाती है और इसप्रकार यह औेर आर्द्र हो जाती है।आर्द्र दिन में कपड़े तथा पसीने सूखने में काफी समय लगता है।जब जलवाष्प ऊपर उठता है,तो यह संघनित होकर ठंडा होकर जल की बूँद बनाते हैं। बादल इन्हीं जल बूँदों का एक समूह होता है।जब जल की ये बूँदे इतनी भारी हे जात ीहैं कि वायु मे तैर न सके,तब ये वर्षण के रूप में नीचे आ जाती हैं। आकाश में उड़ते हुए जेट हवाई जहाज अपने पीछे सफेद पथ चिन्ह छोड़ते हैं।इसका कारण इनके इंजनों से निकली नमी संघनित नमी कुछ देर तक पर के रूप में दिखाी देती है। पृथ्वी पर जल के रूप मे गिरने वाला वर्षण वर्षा कहलाता है।यह तीन प्रकार का होता है।

  1. संवहनी वर्षा
  2. पर्वतीय वर्षा
  3. चक्रवातीय वर्षा