हमारा पर्यावरण/हमारी बदलती पृथ्वी
उद्गम केंद्र पर कंपन सर्वप्रथम प्रारंभ तथा इसके भूसतह पर उसके निकटतम स्थान को अधिकेंद्र कहते हैं। भूकंप की संभावना का अनुमान हम इन आधारों पर लगा सकते हैं।जैसे-जानवरों के व्यवहार का अध्ययन,तालाब में मछलियों की उत्तेजना ,साँपों का धरातल पर आना। 26 जनवरी 2001 को भुज में भूकंप के झटके रिक्टर स्केल पर 6.9 की तीव्रता वाला। मैदानी क्षेत्रों में नदी के मोढ़ स्थलमंडलीय प्लेट -भू-पर्पटी में अनेक बड़ी एवं कुछ छोटी कठोर ,असमान-आकार की प्लेटें होती हैं,जिनपर महाद्वीप एवं महासागर की सतहें टिकी हैं। अंत
पृथ्वी की गतियाँ | ||
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अंतर्जनित बल | बहिर्जनिक बल | |
आकस्मिक बल | पटल विरूपण बल | अपरदन और निक्षेपण |
भूकंप | पर्वत निर्माणकारी बल | नदी/बहता जल |
ज्वालामुखी | पवन | |
भूस्खलन | समुद्री तरंग | |
हिमनद |
समुद्री तरंगों के अपरदन एवं निक्षेपण से तटीय स्थलाकृतियाँ निर्मित होती है। लगातार शैलों के टकराने से दरार विकसित होती है।समय के साथ इसके बड़े और चौड़े होने से समुद्री गुफा का तथा इन गुफाओं के बड़े होते जाने पर इनमें केवल छत ही बचती है,जिससे तटीय मेहराब बनते हैं।लगातार अपरदन छत को भी तोड़ देता है जिससे निर्मित दीवार जैसी आकृति को स्टैक कहते हैं।समुद्री जल के ऊपर लगभग ऊर्ध्वाधर उठे हुए ऊँचे शैलीय तटों को समुद्र भृगु कहते हैं।समुद्री तरंगें किनारों पर अवसाद जमा कर समुद्री पुलिन का निर्माण करती हैं।
हिमनद गहरे गर्तों का निर्माण करतै हैं।पर्वतीय क्षेत्रों में बर्फ पिघलने से उन गर्तों में जल भर जाता है और वे सुंदर झील बन जाते हैं।हिमनद द्वारा लाए गए पदार्थ,जैसे-छोटे-छोटे शैल,रेत एवं तलछट मिट्टी निक्षेपित होते हैं।ये निक्षेप हिमनद हिमोढ़ का निर्माण करते हैें।
रेगिस्तान में पवनों के अपरदन एवं निक्षेपण के फलस्वरूप छत्रक शैल का निर्माण होता है।पवन अपने साथ रेत को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाती है।जब पवन का बहाव रुकता है तो यह रेत गिरकर छोटी पहाड़ी बनाती है।इनको बालू टिब्बा कहते हैं।हल्के और महीन बालू कण वायु द्वारा उठाकर अत्यधिक दूर ले जाकर जमा करने के पश्चात लोएस का निर्माण होता है।चीन में विशाल लोएस निक्षेप पाए जाते हैं।