।कबीर के दोहे।

गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागू पाय।
बलिहारी गुरु आपने , गोविन्द दियो बताय||

निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।

कबिरा संगत साधु की , ज्यों गन्धी की बास ।
जो कुछ गन्धी दे नहीं , तो भी बास सुबास ।।

 माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,
 कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।
पाहन पूजे हरि मिले, मैं तो पूजूं पहार।
याते चाकी भली जो पीस खाय संसार।।

वृच्छ कबहुँ नहिं फल भखै, नदी न संचै नीर।
परमारथ के कारने, साधुन धरा सरीर।।