हिंदी 'ग':वाणिज्य स्नातक कार्यक्रम/बिहारी
मेरी भव बाधा हरौ,राधा नागरि सोइ।
जा तन की झांई परै, स्यामु हरित-दुति होइ।।
कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय।
इहि खाए बौराय नर, इहि पाए बौराय।।
थोड़े ही गुण रीझते बिसराई वह बानि।
तुमहूँ कान्ह मनौ भए आज-काल्हि के दानि॥
कहत,नटत, रीझत,खीझत, मिलत, खिलत, लजियात।
भरे भौन में करत है,नैननु ही सब बात।