हिंदी 'ग':वाणिज्य स्नातक कार्यक्रम/हिंदी साहित्य का इतिहास:आधुनिक प्रवृत्तियाँ
हिन्दी साहित्य का आधुनिक काल तत्कालीन राजनैतिक गतिविधियों से प्रभावित हुआ है। इसको हिंदी साहित्य का सर्वश्रेष्ठ युग माना जा सकता है, जिसमें पद्य के साथ-साथ गद्य, समालोचना, कहानी, नाटक व पत्रकारिता का भी विकास हुआ। लगभग 1800 के आसपास कई यूरोपीय व्यापार के लिए भारत आए |इस काल में राष्ट्रीय भावना का भी विकास हुआ। इसके लिए शृंगारी ब्रजभाषा की अपेक्षा खड़ी बोली उपयुक्त समझी गई। समय की प्रगति के साथ गद्य और पद्य दोनों रूपों में खड़ी बोली का पर्याप्त विकास हुआ। भारतेंदु हरिश्चंद्र तथा बाबू अयोध्या प्रसाद खत्री ने खड़ी बोली के दोनों रूपों को सुधारने में महान प्रयत्न किया। उन्होंने अपनी सर्वतोन्मुखी प्रतिभा द्वारा हिंदी साहित्य की सम्यक संवर्धना की। आधुनिक हिन्दी गद्य का विकास केवल हिन्दी भाषी क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं रह गया था। पूरे देश में और हर प्रदेश में हिन्दी की लोकप्रियता व्याप्त होने लगी थी और अनेक अन्य भाषी लेखकों ने भी हिन्दी में साहित्य की रचना करके इसके विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान किया। हिन्दी गद्य के विकास को निम्नलिखित चरणों में विभाजित किया जा सकता है- भारतेन्दु पूर्व युग - (1800 ई. से 1850 ई. तक) भारतेन्दु युग - (1850 ई. से 1900 ई. तक) द्विवेदी युग - (1900 ई. से 1920 ई. तक) रामचन्द्र शुक्ल तथा प्रेमचन्द युग - (1920 ई. से 1936 ई. तक) अद्यतन युग - (1936 ई. से आज तक) हिन्दी में गद्य का विकास 19वीं शताब्दी के आसपास हुआ। इस विकास में कलकत्ता (आधुनिक कोलकाता) के 'फ़ोर्ट विलियम कॉलेज' की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही थी।इसी समय सदासुखलाल ने 'सुखसागर' तथा मुंशी इंशा अल्ला ख़ाँ ने 'रानी केतकी की कहानी' की रचना की। आधुनिक खड़ी बोली के गद्य के विकास में विभिन्न धर्मों की परिचयात्मक पुस्तकों का खूब सहयोग रहा, जिसमें ईसाई धर्म का भी महत्त्वपूर्ण योगदान रहा था। बंगाल के राजा राममोहन राय ने 1815 ई. में 'वेदांतसूत्र' का हिन्दी अनुवाद प्रकाशित करवाया। इसके बाद उन्होंने 1829 में 'बंगदूत' नामक पत्र हिन्दी में निकाला। इसके पहले ही 1826 में कानपुर के पं. जुगल किशोर ने हिन्दी का पहला समाचार पत्र 'उदंत मार्तंड' कलकत्ता से निकाला था। इसी समय गुजराती भाषी 'आर्य समाज' के संस्थापक स्वामी दयानंद ने अपना प्रसिद्ध ग्रंथ 'सत्यार्थ प्रकाश' हिन्दी में लिखा। भारतेन्दु युग मुख्य लेख : भारतेन्दु युग भारतेन्दु हरिश्चंद्र (1855-1885) को हिन्दी साहित्य के आधुनिक युग का प्रतिनिधि माना जाता है। उन्होंने 'कविवचन सुधा', 'हरिश्चन्द्र मैगज़ीन' और 'हरिश्चंद्र पत्रिका' भी निकाली थीं। इसके साथ ही अनेक नाटकों आदि की रचना भी की। द्विवेदी युग आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम पर ही इस युग का नाम 'द्विवेदी युग' रखा गया था। सन 1903 में द्विवेदी जी ने 'सरस्वती' नामक पत्रिका के संपादन का भार संभाला। इस काल में निबंध, उपन्यास, कहानी, नाटक एवं समालोचना का अच्छा विकास हुआ | रामचन्द्र शुक्ल एवं प्रेमचंद युग गद्य के विकास में इस युग का विशेष महत्त्व है। रामचंद्र शुक्ल ने निबंध, हिन्दी साहित्य के इतिहास और समालोचना के क्षेत्र में गंभीर लेखन किया | अद्यतन काल इस काल में गद्य का चहुँमुखी विकास हुआ। हजारी प्रसाद द्विवेदी, जैनेन्द्र, अज्ञेय, यशपाल, नंददुलारे वाजपेयी, नगेंद्र, रामवृक्ष बेनीपुरी तथा रामविलास शर्मा आदि ने विचारात्मक निबंधों की रचना की है।