हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन)/आली री म्हारे
आली री म्हारे णेणाँ बाण पड़ी
चित चढ़ी म्हारे माधुरी मूरत, हिवड़ा अणी गड़ी।
कब री ठाड़ी पंथ निहारो, अपने भवण खड़ी।
भटक्या प्राण साँवरों घ्यारों, जीवन मूर जड़ी।
मीरा गिरधर हाथ विकाणी, लोग कहाँ बिगड़ी।