हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन)/नासिका वर्णन
नांक सरूप न बरने पारो। तिनिऊ भुवन हेरी कै हारो।
कीर ठोर औे खरग कै धारा। तिलक फूल मै बरनी न पारा।
उदयागिरी जौ कहौ तौ नाही। ससी सुरुज दुई बाद कराही।
निकट न कोउअ संचरै पारा। निसी दिन जिये सो बास अधारा।
केही दे जोर पटतरो नासा। ससि सूरज जेही करह बतासा।
नाक , सरुप सोहगिनी केहि ले लावाै भाऊ
जा कस ससि सुरुज निसि बासर ओसारी बाऊ।