हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन)
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पद


(1)

काहे ही नलनी तूं कुकुमिलानी,तेरे ही सरोवर पानीं।।

जल में उतपति जल में बास, जल में नलिनी तोर निवास।

ना तलि तपति न ऊपरि आगि, तोर हेतु कहु कासनि लागि।।

कहे 'कबीर' जे उदकि समान, ते नहिं मुए हमारे जान।


(2)

अब का डरौ डर डरही समान, जब थै मोर तौर पहिचान।।

जब लग मोर तौर करी लिन्हा , भै भै जन्मि दुख दीन्हा।

आगम निगम एक करी जाना , ते मनवा मन माहीं सामना।

जब लग ऊंच नीच करी जाना ते पसुवा भूले भ्रम नाना।

कहीं कबीर मै मेरी खोई , तभी राम अवर नहीं कोई।।