हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन)/साँच कौ अंग

हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन)
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साँच कौ अंग


(1)

कबीर लेखा देणा सोहरा, के दिल `साचा' होई।

उस `चंगे' दीवान मैं, पला न पकड़े कोई।।


(2)

कबीर जिनी जिनी जानिया, करता केवल सार।

सो प्रनिकाहे चले , झूठे जग की लार।।