हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन) सहायिका/गोकुल लीला/(२)सोभित कर नवनीत लिये।

सन्दर्भ

सम्पादन

प्रस्तुत पद महाकवि सूरदास द्वारा रचित है। यह पद उन्हीं की विख्यात रचना 'सूरसागर' से संगृहीत है। कृष्णा को आधार बनाकर काव्य-रचना करने वल्लभ संप्रदाय का यह मूर्धन्य कवि हैं।

प्रसंग

सम्पादन

माँ अपने बच्चे के बारे में तरह-तरह की अभिलाषा करती है। सोचती है ? कि कब यह बड़ा होगा। कब चलना सीखेगा और कब स्वयं उससे बातें करेगा कुष्ण अब कुछ बड़े हो गए है और उन्होंने घुटने के बल चलकर घर में कुछ बाल सुलभ भावों से माता-पिता को हर्ष देना आरंभ कर दिया है। मां ने उन्हें मक्खन दिया है। उन्होंने कुछ तो खा लिया है और कुछ खाते हुए मुख पर लिपटा लिया है। घुटने के बल चलते हुए उनका शरीर भी धूल में अट गया है। उनके इसी सौंदर्य का कवि ने अत्यंत सुंदर भावों और शब्दों में वर्णन किया है-

व्याख्या

सम्पादन

सोभित कर नवनीत लिये......का सत कल्प जिए॥

बालक कृष्ण अपने हाथों में मक्खन लिए हुए बहुत सुंदर लग रहे हैं घुटनो के बल पर चलने के कारण उनका शरीर अर्थात् हाथ-पैर माटी से सने हैं। मुख पर असावधानी के कारण हाथ फेर लेने के करण दही का लेप हो गया है। बालक अक्सर कुछ खाते-पीते अपने मुँह पर हाथ फेर जाता है जिससे खाने वाली चीजें मुख पर लग जाती हैं। इससे बालक और भी अधिक सुंदर लगने लगता है। बालक कृष्ण के गाल अत्यंत सुंदर हैं और नेत्र चंचल हैं माथे पर गोबर का तिलक लगा है। सुंदर गालों पर बड़ी-बड़ी लटाएं बिखरी पड़ी है। वे ऐसी प्रतीत होती हैं जैसे सौंदर्य-रूपी मादक मधु पीने के कारण मंत्र भ्रमरों का समूह मंडरा रहा गले में कठुला पड़ा है जिसमें मोती और शेर का नाखून जड़ा है। कृष्ण के इस रूप-सौंदर्य को क्षण-भर देखने का सुख भी धन्य है और बिन सुख प्राप्त किए अगर सैकड़ों कल्पों तक भी जाना पडे तो कोई फायदा नहीं है।

  1. यहाँ बाल कृष्ण के बाह्य सौंदर्य और मुख चित्रण में कवि का सूक्ष्म चित्रण दर्शनीय है।
  1. कृष्णकालीन या समकालीन ग्रामीण समाज की विशेष रूप से ब्रज प्रदेश की स्थिति का चित्रण मोहक रूप में किया गया है। इस स्थिति को चित्रित करने के लिए कवि ने नवनीत गोरोचन-तिलक, कठुला नख आदि शब्दों का प्रयोग किया है।
  1. कठुला...... हिए अंश में कवि का लोक-ज्ञान का पता चलता है। भारतीय ग्रामीण समाज में नज़र उतारने या न लगने के लिए कठुला प्रयोग आज भी प्रचलित है।
  1. बाल-कृष्ण-भक्ति पुष्टिमार्गीय संप्रदाय की प्रमुख मान्यता थी।
  1. 'लट लटकनि मनु मत्त मधुपगन मादक मदहि पिए' में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
  1. इसी तरह के भाव गोस्वामी तुलसीदास ने गीतावली में अभिव्यक्त किए हैं-

अरबिंदु सा आननु रूप मरद अनंदित लोचन भृंग पिएँ।

''आंगन फिरत घुदुरुवनि धाए।''

शब्दार्थ

सम्पादन

सोभित - शोभित, शोभा दे रहे हैं। नवनीत = मक्खन। घुटुरुनि - घुटने के बल। रेनु - रेणु, धूल। मंडित = युक्त, सजे हुए। दधि - दही। चारु सुंदर। लोचन - नेत्र। गोरोचन - गोबर। मधुपगन - भ्रमर का समूह। हिए - हृदय। का- क्या।