हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन) सहायिका/दोहे/(3)देख मैं अपने हाल को राऊ, ज़ार-ओ-ज़ार।
सन्दर्भ
सम्पादनप्रस्तुत 'दोहा' खड़ी बोली के प्रवर्तक आदिकालीन कवि और अमीर खुसरो द्वारा रचित है।
प्रसंग
सम्पादनदेख मैं अपने हाल को राऊ...हम है औेगुन हार।।
इस दोहे में अमीर खुसरो ने ईश्वर को संबोधित करते हुए अपनी विरह-दशा का वर्णन किया है कि-
व्याख्या
सम्पादनदेख मैं अपने हाल को राऊ...हम है औेगुन हार।।
अमीर खुसरो कहते हैं कि हम जीवात्माएँ सभी अवगुणों से भरी हैं और आप गुणवान हैं। संसार में अपनी दुर्दशा देखकर मेरा फूट-फूटकर रोने को दिल करता है। अमीर खुसरो कहते हैं कि संसार में आकर ही, अवगुणों से, माया से घिरकर मैं बुरी तरह हार चुका हूँ। अपनी दशा बिगड़कर देख आज मुझे सत्य का आभास हुआ है।
विशेष
सम्पादन1. खड़ी बोली है। 2. दोहा छंद है। 3. प्रसाद गुण 4. लाक्षणिकता है। 5. ईश्वर के गुणों का ज्ञान हुआ है। 6. अपनी दशा पर अमीर खुसरो फूट-फूटकर रो रहे हैं। 7. विरह-भावना है। 8. भावनात्मक रहस्यवाद है। 9. आध्यात्मिकता वर्णित है। 10. उर्दू शब्दावली है। 11. 'हम हैं'-अनुप्रास अलंकार है। 12. अद्वैत-भावना है।
शब्दार्थ
सम्पादनहाल = दशा। जार-ओर-जार = फूट-फूटकर। गुनवन्ता - गुणवाना औगुन - अवगुण।