हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन) सहायिका/दोहे/(4)चकवा चकवी दो जने उन मारे न कोय।
सन्दर्भ
सम्पादनप्रस्तुत "दोहा" आदिकालीन खड़ी बोली के प्रथम कवि अमीर खुसरो द्वारा रचित है।
प्रसंग
सम्पादनइस दोहे में दो विरही (चकवा-चकवी पक्षी) जनो की पीड़ा के माध्यम से आत्मा परमात्मा के बिछुड़ने का संकेत दिया है।
व्याख्या
सम्पादनचकवा चकवी दो जने... रैन बिछोही होय॥
अमीर खुसरो चकवा-चकवी पक्षी के माध्यम से कहते है कि जिस प्रकार चकवा चकवी पक्षी दिन में तो मिल जाते हैं लेकिन रात आते ही दोनों बिछुड़ जाते हैं ठीक वैसे ही आत्मा और परमात्मा अलग-अलग हैं। बिछुड़े हुए हैं। अमीर खुसरो कहते हैं। कोई इन चकवा-चकवी पक्षी को न मारे, क्योंकि इन्हें तो पहले ही ईश्वर ने रात में बिछुड़ने की मार दे रखी है।
विशेष
सम्पादन1. खड़ी बोली है। 2. दोहा छंद है। 3. प्रसाद गुण है। 4. लाक्षणिकता है। 5. ईश्वर के गुणों का ज्ञान हुआ है। 6. अपनी दशा पर अमीर खुसरो फूट-फूटकर रो रहे हैं। 7. विरह-21भावना है। 8. भावनात्मक रहस्यवाद है। 9. आध्यात्मिकता वर्णित है। 10. उर्दू शब्दावली है। 11. 'चकवा-चकवी'-अनुप्रास अलंकार है। 12. अद्वैत-भावना है।
शब्दार्थ
सम्पादनचकवा = कवियों की कल्पना द्वारा रचित एक पक्षी विशेष । जने - व्यक्ति। ईय - ये। करतार = कर्ता अर्थात ईश्वर। रैन = रात। बिछोही - बिछुड़े हुए।