हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन) सहायिका/रामचरितमानस/(५)जामवंत कह सुनु रघुराया।
सन्दर्भ
सम्पादनप्रस्तुत पंक्तियाँ कवि तुलसीदास द्वारा रचित हैं। यह उनके महाकाव्य 'रामचरित मानस' से अवतरित है।
प्रसंग
सम्पादनकवि ने राम के द्वारा हनुमान को खुश होकर गले से लगाने का वर्णन किया है। हनुमान ने माता सीता जी के बारे में राम को बताया कि वे कैसी हैं? तब हनुमान ने सारी बातें राम को बता दी। कवि ने उसी को यहाँ कहा है-
व्याख्या
सम्पादनजामवंत कह सुनु रघुराया। जा पर नाथ करहु तुम्ह दाया॥
ताहि सदा सुभ कुसल निरंतर। सुर नर मुनि प्रसन्न ता ऊपर॥
सोइ बिजई बिनई गुन सागर। तासु सुजसु लोक उजागर॥
प्रभु की कृपा भयउ सबु काजू। जन्म हमार सुफल भा आजू॥
नाथ पवनसुत कीन्हि जो करनी। सहसहुँ मुख न जाइ सो बरनी॥
पवनतनय के चरित सुहाए। जामवंत रघुपतिहि सुनाए॥
सुनत कृपानिधि मन अति भाए। पुनि हनुमान हरि हियँ लाए॥
कहतु तात केहि भांति जानकी। रहति करति रच्छा स्वप्रान की॥
दोहा-नाम पाहरू दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहिं बाट॥
व्याख्या-जामवंत ने राम से कहा कि हे भगवान् सुनो। जिस पर तुम्हारी दया हो जाए वह अपने में बहुत भाग्यशाली है। तुम्हारी दया के बिना कुछ भी संभव नहीं है। तुम्हारी कृपा से ही सब कार्य पूर्ण होते हैं। उसके सभी कार्य निरंतर जाप से पूर्ण होते रहते हैं चाहे वह देवता हो या मनुष्य हो उसकी प्रसन्नता का कारण स्वामी आप ही हैं। जिस पर आप प्रसन्न हो जाएँ वह अवश्य ही सफल होगा। इस लिए आप गुणों के सागर हैं। बिना आपकी दया के कुछ भी संभव नहीं है। तीनों लोगों के आप उद्धार करने वाले हो। आपकी तीनों लोगों में यश की गाथा फैली हुई है। आप ही से यह संसार उजागर होता है। भगवान राम की कृपा से ही सारे मनोरथ एवं कार्य पूर्ण होते हैं। आज हमारा जीवन आपकी कृपा से ही सफ़ल है। हे स्वामी पवन-पुत्र ने जो कार्य करके दिखाया है वह निश्चय ही प्रशंसनीय है। उसको हज़ारों मुखों से भी वर्णन नहीं किया जा सकता है। वह अपने में अवर्णनीय है। पवन-पुत्र के चरित्र के बारे में जामवंत ने राम को सुनाया तो भगवान मन में अति प्रसन्न हुए तब राम ने जानकी सीता के वारे में हनुमान से पूछा कि वे कैसी हैं?
वे अपने प्राणों की रक्षा किस प्रकार से करती हैं ?
तब हनुमान ने राम को बताया कि माता सीता रात-दिन आपका ही नाम स्मरण करती हैं। वे अपने हृदय में आपका ही ध्यान करती हैं। तुम्हारा हर समय इंतज़ार करती हैं। उनकी आँखों में आपकी ही छवि बसी रहती है। आपका ही नाम-जाप करती रहती हैं। वे अपने प्राणों की रक्षा करती हैं। आपकी उन्हें आने की प्रतीक्षा है।
विशेष
सम्पादनइसमें, कवि ने हनुमान के द्वारा किए गए कार्य की जामवंत से प्रशंसा कराई है। राम को हनुमान ने सीता जी की कही गई बात सुनाई है। राम के मन में सीता जी की याद तथा सिता जी के मन में राम की स्मृति को ही इसमें उजागर किया है। अवधी भाषा है। नाद -सोन्दर्य है। भषा में चित्रात्मकता है। भावों में उत्कर्ष है। भाषा में प्रवाह है। पूरे पद में आलंकारिक भाषा का प्रयोग है। शब्दों में अर्थ गर्भत्व है।
शब्दार्थ
सम्पादनरघुराया - राम। करहु = करते हो। दाया - दया। ताहि - तब। सुभ -शुभ। सुर देवता। विजई - बजती है। बेनई - बीना। त्रिलोक - तीनों लोकों में। उजागर प्रकट होना। कीन्हि - किया। बरनी = वर्णन। सहसहुँ - हज़ारों। सुफल = अच्छा परिणाम। सफल। पवनतनय- पवन पुत्र। सुनत - सुनकर। कृपानिधि - दया के भंडारा। भाए प्रसन्न हुए। पुन-पुनः - दुबारा। हरषि = खुश हो कर। हियँ = हृदय में। कपाट - द्वार, क्षण। लोचन = आँखें। बाट = प्रतीक्षा। स्वप्नन - अपने प्राणों। रच्छा - रक्षा। जंत्रित = नाम-जाप। पद = चरणों में। निसि = दिवस रात-दिन। पाहरू = हर पल, क्षण। न जाह - जो कही न जाई।