हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन) सहायिका/विनय पत्रिका/(१)अबलौं नसानो अब न नसैहौं।

सन्दर्भ

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प्रस्तुत पद भक्तिकालीन सगुण काव्य-धारा के राम-भक्ति कवि तुलसीदास द्वारा विरचित 'विनयपत्रिका' से अवतरित है।

प्रसंग

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इस पद में तुलसी अपने आराध्य के समक्ष अपने पूर्व-जन्म का पश्चात्ताप कर रहे हैं।

व्याख्या

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अब लौं नसनी, अब न नसैहौं ।

राम कृपा भव-निसा सिरानी, जागे पुनि न डसैहौं ।।1।।

पायो नाम चारु चिंतामनि, उर कर ते न खसैहौं ।

स्याम रूप सुचि रुचिर कसौटी, चित कंचनहि कसैहौं ।।2।।

परबस जानि हंस्यो इन इंद्रिन निज बस ह्वै न हंसैहौं ।

मन मधुकर पन कर तुलसी रघुपति पद कमल बसैहौं ।।3।।


तुलसी अपने पूर्व जीवन पर पश्चात्ताप करते हुए कहते हैं अब तक तो मैंने अपने जीवन को नष्ट किया (भगवान का भजन न करके), परंतु अब उसे नष्ट नहीं होने दूंगा। 'राम की कृपा से संसार-रूपी रात बीत गई है।' अब मैं जग गया हूँ-अत: अब पुन: बिस्तर बिछा कर नहीं सोऊँगा। भाव यह है कि अब मैं विषय-वासनाओं के बारे में समझ गया हूँ कि यह व्यक्ति को पतन की ओर ले जाती है। अत: अब मैं इनमें पुन: नहीं फँसूँगा। मैंने राम-नाम-रूपी सुंदर चिंतामाणि (मनोवांछित फल देने वाली) प्राप्त कर ली है। अब मैं उसे अपने हृदय-रूपी हाथ से कभी गिरने नहीं दूंगा। भगवान का श्याम-रूप सुंदर कसौटी के समान है उस चित्त-रूपी स्वर्ण को कसूँगा अर्थात् उसकी परीक्षा करूंगा और जानूँगा कि वह राम का चिंतन करने में खरा है अथवा नहीं।

जब मैं अपनी इन्द्रियों के वश में था, तो यह मेरे ऊपर हँसा करती थी अब यह इन्द्रियाँ मेरे वश में हो गई हैं। अब मैं इन्हें अपनी हँसी नहीं उड़ाने दूंगा। भाव यह है कि अब यह मुझे विषय-वासनाओं की ओर नहीं खींच पाएँगी। मैं तुलसीदास प्रतिज्ञा करके अपने मन-रूपी भौरे को राम के चरण-कमलों में बसा लूँगा अर्थात मन की चंचलता को दूर कर राम के ध्यान में एकाग्र कर लूँगा।

1. 'राम-कृपा-डसैहौं' सांगरूपक है। 'मन-मधुकर' रूपक बहुत सुंदर बन पड़ा है। मन चलायमान होता है-आकर्षणों की और और भ्रमर भी चलायमान वृत्ति रखता है।

2. कसौटी से राम से श्यार-रूप की उपमा बहुत सुंदर बन पड़ी है, क्योंकि श्याम काले हैं और कसौटी का रंग भी काला है।

3. यह पद अपनी मार्मिकता से अद्वितीय है।

4. ब्रज भाषा है।

5. तुलसी का यहाँ विनय भाव मुख्य है।

6. यह पद अपनी मार्मिकता में अद्वितीय है। भक्ति निश्छलता देखते ही बनती है।

7. कसौटी से राम के श्याम रूप की उपमा बहुत सुंदर बन पड़ी है।

शब्दार्थ

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नसानी = नष्ट की। सिरानी = ठण्डी हो गई, बीत गई। डसैहौं - बिस्तर बिछाऊँगा। कै = करके। बसैहौं - बसा दूँगा ।