हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक) सहायिका/उठ उठ री लघु

हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक) सहायिका
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उठ उठ री लघु


संदर्भ

उठ उठ री लघु कविता छायावादी काव्याधारा के प्रमुख आधार स्तम्भ जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखित है। साहित्यिक जगत में प्रसाद जी एक सफल व श्रेष्ठ कवि, नाटककार कथाकार व निंबंध लेखक के रूप में विख्यात रहे है।


प्रसंग


लहर की पहली कविता उठ उठ री लघु प्रसाद के भाव लोक का संकेत देती है जिसमें प्रेम करुणा स्वच्छंद जीवन की आकांक्षा के लिए खास जगह है।


व्याख्या


पावन लहरें परमात्मा का शुभ आदेश है तभी जीवन रूपी सरिता में होने वाली चंचल लघु लहरियों को संबोधित करते हुए जीवन के सुख शुष्क किनारों को रससिक्त करने के लिए कह रहा है। अर्थात कवि यह कहना चाहते हैं कि यह हवा जो रस से युक्त है मैं जीवन के सूखे पड़े समय पर आकर उसे रस्युक्त कर दे। जीवन को खुशियों से भर दे। कवि लहरों को सचेत करते हैं कि कहीं तू विकसित कमरों के वन में ही विहार करती ना रह जाए बेरस व जल हीन पड़े बालू तट के किनारे को तेरी आवश्यकता है। अर्थात कवि कहते हैं कि जीवन को खुशियों के अर्थात रस की जरूरत है इसीलिए कवि जीवन रूपी तत्पर इन हवाओं को अपना रस रखने के लिए जीवन को खुशियों से भरने के लिए आग्रह करते हैं। यहां कवि का मानववाद अभिव्यक्त हुआ है इसमें कवि समूची समानता की जीवन को सरल बनाने के लिए बेचैन है कभी केवल व्यक्तिगत सुख की चाह में लिप्त नहीं है वरन अखिल मानव जीवन के दुख को लेकर चिंतित है


विशेष

1) भाषा खड़ी बोली है

2) भावपरक कविता है

3) कविता में जीवन को रसयुक्त बनाने के लिए आग्रह किया गया है।