हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक) सहायिका/कृष्ण - कर्ण संवाद

संदर्भ

कृष्ण - कर्ण संवाद (रश्मिरथी ' : तीसरा सर्ग) कविता छायावादी कवि रामधारी सिंह ' दिनकर ' द्वारा रचित है।

प्रसंग

प्रस्तुत कविता में कवि ने महाभारत में श्री कृष्ण ओर कर्ण के संवाद को दिखाया है।

व्याख्या

कवि कहते है कृष्ण की वाक्य सुन कर कर्ण आश्चर्य चकित हो जाते है। और गंभीर हो जाते है। और बताते है आश्चर्य की बात है अपने को कहा वाह सब में आज ही सुन कर आया हूं। मै ऐसी मां का पुत्र हूं जिन्होंने जन्म के बाद मुझे छोड़ दिया। यूंही कभी सोचा करता हूं कैसी होगी वो मां जिनसे अपनी शिशु को धारा में बहने के लिए छोड़ दिया। या वह जीवित दफना रही थी? कोई भी माता अपने शिशु को 10 मह तक अपने गरभ्मे रखती है। अपने जीवन का अंश खिलाती है अंत में उसे फेक देती है वह नारी नहीं नागिन के समान है। फिर वह कृष्ण को कहते है आप कुछ मत बोलिए। मै अपनी जननी माता के बारे में नहीं सुनना चाहता जिसने मुझे जन्म के साथ ही धारा में बहा दिया। वह नागिन के समान है। उनका हृदय पत्थर का था। कर्ण अपने वर्तमान का अस्तित्व अपने साथ रखते हुए कहते है सुत पुत्र से बढ़कर समाज था। वह कहते है पुत्र की खुशियों को भुला कर मेरे कुल ओर वंश से मुझे वांछित कर दिया। और इस प्रकार दुश्मन का कार्य किया। और माताओं का नाम बदनाम करा। माता की पीड़ा भी मैने सही और माता का अभिशाप भी। माता और यश की अधिकारी बनी और मुझ पर समाज की उंगली उठी। वह इस दुख से दूर थी और मै कष्ट के निकट। मेरी कोई जात पात गोत्र ना मालूम होने पर में रजाई के समुख निच रहा। मुझे सुत पूत्र कह कर बुलाकर मेरा अनादर किया जाता था। तब भी माता का दिल नहीं रोया। मुझे सुत वंश में पाला गया। मुझे रोज अपमान जा सामना करना पड़ता था। सब देखते हुए भी माता का दिल नहीं पिघला बा कभी छुप कर मेरे बारे में पूछने आई। अपने पांच पांडवो के साथ वो खुश थी। और गर्व में चूर थी। मुझसे दूर थी तो अब को से विपदा आ गई जिस कारण उन्हें मेरी याद आई। पांच पुत्र के होते हुए भी, सुत पुत्र को छोड़ने पर या महानाश के होने से पूर्व, में घबराने पर नारी वह सबद हो जाती है। ओर बिछड़े हुए लोगों को गले लगती है? कुंती माता भयभीत थी इसीलिए मुझे खुद से दूर रखा था। मैं अभिशाप हूं। इसीलिए वह मुझसे दूर रहती है। यह केसे हुआ कि मेरे चरित्र को पुण्य माना गया। कुंती माता क्या चाहती है मेरा सुख या पांडवो की विजय। यह कैसा परिवर्तन माता में आया। जब में धनुर्योधा बना गया तब सबके काम आने लगा। पर समय सदैव ऐसा नहीं था पहले मेरे साथ निरुष्ठ व्यवहार होता था। मुझे माता का प्रेम नहीं मिला। श्री कृष्ण यह भी सुनिए और सच ओर झूठ का पर खुद करिए। मुझे किसी का प्रेम नहीं मिला। मुझे किसने सम्मान करता मेरा। मैने अपने विकास को रुकते देखा है। समाज को क्रूर होते देखा है। जब में टूट गया था तब दुर्योधन ने मेरा साथ दिया। कुंती माता ने मुझे जन्म दिया। और राधा मां ने पालन पोषण करा। असली समर्थन दुर्योधन ने दिया माता से बध के ओर बड़े भाई के समान है वो। मुझे रंक से राजा बनाया। सम्मान दिया। इस प्रकार नया जीवन दिया। मै दुर्योधन का ऋणी हूं यह सत्य सूर्य सोम ही जानते है। में उस नहीं छोड़ सकता। वह मुझ पर पूर्ण विश्वास करता है। में दुर्योधन को धाखा नहीं दे सकता उससे यश पाया है सम्मान पाया है। अब जब उसे मेरी जरूरत है तो उसे अकेला केसे छोड़ दू। लोग मुझे धिधकारेगे कहेगी कर्ण पापी है। मै पापी नहीं बनूंगा। अर्जुन को भी यह कलंक सहना होगा। वरना लोग कहेंगे विजय की प्राप्ति के लिए अर्जुन ने षट्यंत्र रचा। पूरा संसार मुझे लालची कहेगा। क्यों हो रहे हैं युद्ध के लिए तैयार। अगर दुर्योधन से कर्ण मिला ना होता तो पांडव वन नहीं जाते। वह कहते है मेरी जीवन की नैया नदी में बहना आरम्भ कर दिया है जो पता नहीं किस ओर जा रही है। अब ने मै लौटना नहीं चाहता। में पांडवो का ज्येष्ठ बनूं ओर भारत में सर्वश्रेष्ठ बनूं। में यह नहीं के सकता क्युकी में धोखा देकर यश नहीं पाना चाहता। मेरे सर पर कुलीन वर्ग का टीका था। पर अपना परिचय नहीं दे सकता था।