हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक) सहायिका/दुरित दूर करो नाथ

हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक) सहायिका
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दुरित दूर करो नाथ


संदर्भ

दूरित दूर करो नाथ कविता छायावादी कवि सूर्य कांत त्रिपाठी ' निराला ' द्वारा उद्धृत है। निराला जी अपनी कविता जीवन से जुड़ी वस्तुओं का समावेशन है।


प्रसंग दूरित-दूर दूर-दूर करो नाथ कविता में कवि ने निराकार उपासक निराला कहीं-कहीं वैष्णो भक्ति के शरणागति आत्म निवेदन नाम गुणगान कीर्तन वंदना सेवा आदि तत्वों से प्रभु की उपासना करते दिखाई देते हैं शरण के बात दूरित दूर करो में अभिव्यक्ति किया है।


व्याख्या

कवि कवि ने कविता में अपने असहाय दशा व प्रभु की शक्ति पर आप पर विश्वास व्यक्त करता हुआ प्रभु से उद्धार की याचना करते हुए कहते है हे नाथ मेरे दुखों को दूर करो मैं बेघर हूं। मैं अपना जीवन रूपी युद्ध हार गया हूं। मुझे सभी ने अकेला छोड़ दिया है मैं अकेला रह गया हूं इस कष्ट पूर्ण रास्ते में मैं अकेला रह गया हूं कवि ने कविता में निराशा की दयनीय स्थिति का भास्कर आने वाली वह प्रभु की करुणा को भरने वाले शब्दों को पन्नों को गिरा ह। कवि कहते हैं मैंने प्रातः काल की सूर्य की किरणों को देखा है। इसे देखकर एक शुद्ध वातावरण मेरे अंदर प्रवेश कर गया। मेरा कोई आश्रय नहीं है मेरा केवल एक आप ही सहारा हो मेरे सभी पापों को मुझसे दूर करो। जब तक संसार में यह मोह का जाल बना रहेगा तब तक हम सभी काल के गाल में जाते रहेंगे मुझे इस जीवन से मुक्ति दे दो हे विश्वनाथ मेरे सभी पापो को दूर।


व्याख्या

1) भाषा सरल एवं सहज है

2) जीवन से मुक्ति का वर्णन है

3) परमात्मा पर अपार विश्वास का वर्णन है

4) कविता में ग्यमता आता है।