हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक) सहायिका/महाभिनिष्क्रमण

आज्ञा लूँ या दूं मैं अकाम?
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम!

रख अब अपना यह स्वप्न-जाल,
निष्फल मेरे ऊपर न डाल।
मैं जागरुक हूं, ले संभाल-
निज राज-पाट, धन, धरणि, धाम।
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम!

रहने दे वैभव यश:शोभ,
जब हमीं नहीं, क्या कीर्तिलोभ?
तू क्षम्य, करूं क्यों हाय क्षोभ,
थम, थम अपने को आप थाम।
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम!

क्या भाग रहा हूँ भार देख?
तू मेरी और नेहार देख!
मैं त्याग चला निस्सार देख,
अटकेगा मेरा कौन काम?
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम!

रूपाश्रय तेरा तरुण गात्र,
कह, वह कब तक है प्राण-पात्र?
भीतर भीषण कंकाल मात्र,
बाहर बाहर है टीम-टाम।
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम!

प्रच्छन्न रोग हैं, प्रकट भोग
संयोग मात्र भावी वियोग!
हा लोभ-मोह में लीन लोग,
भूले हैं अपना अपरिणाम!
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम!

यह आर्द्र-शुष्क, यह उष्ण शीत,
यह वर्तमान, यह तू व्यतीत है!
तेरा भविष्य क्या मृत्यु-भीत?
पाया क्या तूने घूम-घाम?
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम!

मैं सूंघ चुका वे फुल्ल-फूल,
झड़ने को हैं सब झटित झूल।
चख देख चुका हूं मैं, समूल-
सड़ने को हैं वे अखिल आम!
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम!

सुन-सुन कर, छू-छू कर अशेष,
मैं निरख चुका हूँ निर्निमेष,
यदि राग नहीं, तो हाय! द्वेष,
चिर-निद्रा की सब झूम-झाम!
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम!

उन विषयों में परितृप्त? हाय!
करते है हम उल्टे उपाय।
खुजलाऊँ मैं क्या बैठ काय?
हो जाय और भी प्रबल पाम?
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम!

सब दे कर भी क्या आज दीन,
अपने या तेरे निकट हीन?
मैं हूँ अब अपने ही अधीन,
पर मेरा श्रम है अविश्राम।
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम!

इस मध्य निशा में ओ अभाग,
तुझको तेरे ही अर्थ त्याग,
जाता हूँ मैं यह वीतराग।
दयनीय, ठहर तू क्षीण-क्षाम।
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम!

तू दे सकता था विपुल वित्त,
पर भूलें उसमें भ्रान्त चित्त।
जाने दे चिर जीवन निमित्त,
दूं क्या मैं तुझको हाड़-चाम?
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम!

रह काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह,
लेता हूँ मैं कुछ और टोह।
कब तक देखूँ चुपचाप ओह!
आने-जाने की धूमधाम?
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम!

हे ओक, न कर तू रोक-टोक,
पथ देख रहा है आर्त्त लोक,
मेटूं मैं उसका दुख-शोक,
बस, लक्ष्य यही मेरा ललाम।
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम!

मैं त्रिविध-दु:ख-विनिवृत्ति हेतु
बाँधूं अपना पुरुषार्थ-सेतु,
सर्वत्र उड़े कल्याण-केतु,
तब है मेरा सिद्धार्थ नाम।
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम!

वह कर्म-काण्ड-तांडव-विकास,
वेदी पर हिंसा-हास-रास,
लोलुप-रसना का लोल-लास,
तुम देखो ॠग्, यजु और साम।
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम!

आ मित्र-चक्षु के दृष्टि-लाभ,
ला, हृदय-विजय-रस-वृष्टि-लाभ।
पा, हे स्वराज्य, बढ़ सृष्टि-लाभ
जा दण्ड-भेद, जा साम-दाम।
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम!

तब जन्मभूमि, तेरा महत्त्व,
जब मैं ले आऊँ अमर-तत्त्व।
यदि पा न सके तू सत्य-सत्व,
तो सत्य कहां? भ्रम और भ्राम!
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम!

हे पूज्य पिता, माता, महान्,
क्या माँगूँ तुमसे क्षमा दान?
क्रन्दन क्यों ? गायो भद्र-गान,
उत्सव हो पुर-पुर, ग्राम-ग्राम।
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम!

हे मेरे प्रतिभू, तात नन्द,
पाऊँ यदि मैं आनन्द-कन्द
तो क्यों न उसे खाऊँ अमन्द?
तू तो है मेरे ठौर-ठाम।
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम!

अयि गोपे, तेरी गोद पूर्ण,
तू हास-विलास-विनोद पूर्ण!
अब गौतम भी हो मोद पूर्ण,
क्या अपना विधि है आज वाम?
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम!

क्या तुझे जगाऊँ एक बार?
पर है अब भी अप्राप्त सार,
सो, अभी स्वप्न ही तू निहार,
हे शुभे, श्वेत के साथ श्याम।
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम!

राहुल, मेरे ॠण-मोक्ष, माप!
लाऊँ मैं जब तक अमृत आप,
माँ ही तेरी माँ और बाप,
दुल, मातृ-हृदय के मृदुल दाम!
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम!

यह घन तम, सन-सन पवन जाल,
भन-भन करता यह काल-व्याल,
मूर्च्छित विषाक्त वसुधा विशाल!
भय, कह, किस पर यह भूरिभाम?
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम!

छन्दक, उठ, ला निज वाजिराज,
तज भय-विस्मय, सज शीघ्र साज।
सुन, मृत्यु-विजय-अभियान आज!
मेरा प्रभात यह रात्रि-याम।
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम!

वह जन्म-मरण का भ्रमण-भाण,
में देख चुका हूँ अपरिमाण।
निर्वाण-हेतु मेरा प्रयाण,
क्या वात-वृष्टि, क्या शीत-घाम।
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम!

हे राम, तुम्हारा वंशजात,
सिद्धार्थ, तुम्हारी भांति, तात,
घर छोड़ चला यह आज रात,
आशीष उसे दो, लो प्रणाम।
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम!