हिंदी कविता (छायावाद के बाद)/आदतों के बारे में
राजेश जोशी
आदतें अक्सर बहुत बुरी शासक होती हैं
लगभग तानाशाह
अपने गुलाम को लगभग पालतू जानवर की तरह
बांधे रखती हैं हरवक्त
अच्छी आदतों के बनिस्बत बुरी आदतें
बहुत देर तक पीछा करती है आदमी का
आदमी कुछ लतें तो इसलिए पाल लेता है
कि वह अलग दिखना चाहता है ईश्वर से
जब तेजी से व्यावसायिक होने लगती हैं चीजें
तो नयी आदतें प्रवेश करती हैं समाज में
लोग कुहनी उठाकर चलने लगते हैं अचानक
कुहनी से धकियाते हुए वे
निकल जाना चाहते हैं एक दूसरे से आगे
हिंसा धीरे-धीरे बन जाती है एक आदत
सिर्फ स्त्रियाँ और बच्चे हीं शिकार नहीं होते हैं
हिंसा के
बिना मरे हत्यारा नहीं बनता कोई
हत्या में जो चीज सबसे पहले मरती है
वह कविता की सबसे जरूरी पंक्ति हैं
अच्छी आदतें अक्सर बहुत डरपोक होती हैं
और अक्सर अपने बिल खोदकर रखती हैं
अच्छी आदतें कई बार जिद बन जाती हैं
और ऐसे लोगों को अव्यावहारिक
माना जाता है कामकाजी समाज में
इतनी आकर्षक होती है अक्सर आदतें
कि सबसे ताकतवर तर्क जुटाए जाते हैं
उनके बारे में
आदमी अक्सर सोचता है अपनी आदतों के बारे में जबकि जानवर उन्हें सिर्फ दोहराते हैं।