हिंदी कविता (छायावाद के बाद)/यह दीप अकेला

हिंदी कविता (छायावाद के बाद)
यह दीप अकेला कलगी बाजरे की → 
यह दीप अकेला
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय

यह दीप अकेला स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता, पर इसको भी पंक्ति को दे दो।
यह जन है - गाता गीत जिन्हें फिर और कौन गायेगा?
पनडुब्बा - ये मोती सच्चे फिर कौन कृति लायेगा?
यह समिधा - ऐसी आग हठीला बिरला सुलगायेगा
यह अद्वितीय-यह मेरा - यह मैं स्वयं विसर्जित
इसको भी पंक्ति को दे दो।
यह दीप अकेला स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता पर इसको भी पंक्ति को दे दो।

यह मधु है - स्वयं काल की मौना का युगसंचय
यह गोरस - जीवन-कामधेनु का अमृत-पूत पय,
यह अंकुर - फोड़ धरा को रवि को तकता निर्भय,
यह प्रकृत, स्वयम्भू, ब्रह्म, अयुत:
इसको भी शक्ति को दे दो।
यह दीप अकेला स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता पर
इसको भी पंक्ति को दे दो।

यह वह विश्वास, नहीं जो अपनी लघुता में भी काँपा,
वह पीड़ा, जिसकी गहराई को स्वयं उसी ने नापा,
कुत्सा, अपमान, अवज्ञा के धुँधुआते कड़वे तम में
यह सदा-द्रवित, चिर-जागरूक, अनुरक्त-नेत्र,
उल्लम्ब-बाहु, यह चिर-अखंड अपनापा।
जिज्ञासु, प्रबुद्ध, सदा श्रद्धामय
इस को भक्ति को दे दो-
यह दीप अकेला स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता, पर
इसको भी पंक्ति को दे दो।

नई दिल्ली ('आल्प्स' कहवाघर में), 18 अक्टूबर, 1953