हिंदी कविता (छायावाद के बाद)/रोटी और संसद

हिंदी कविता (छायावाद के बाद)
 ← मोचीराम रोटी और संसद भवानी प्रसाद मिश्र → 
रोटी और संसद
धूमिल

एक आदमी
रोटी बेलता है
एक आदमी रोटी खाता है
एक तीसरा आदमी भी है
जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है
वह सिर्फ़ रोटी से खेलता है
मैं पूछता हूँ-
'यह तीसरा आदमी कौन है ?'
मेरे देश की संसद मौन है।