हिंदी कविता (छायावाद के बाद)/सांप
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय
सांप!
तुम सभ्य तो हुए नहीं
नगर में बसना भी
तुम्हें नहीं आया।
एक बात पूछूं-
(उत्तर दोगे ?)
तब कैसे सीखा डसना-
विष कहां पाया?
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सांप!
तुम सभ्य तो हुए नहीं
नगर में बसना भी
तुम्हें नहीं आया।
एक बात पूछूं-
(उत्तर दोगे ?)
तब कैसे सीखा डसना-
विष कहां पाया?