हिंदी कविता (छायावाद के बाद) सहायिका/देश है हम राजधानी नहीं

सन्दर्भ सम्पादन

"देश है हम राजधानी नही" कविता शंभुनाथ द्वारा रचित है।

प्रसंग सम्पादन

इसमें कवि ने देश को एकरूप में देखना चाहा है। उसने देश को बिखरते और टूटते नहीं देखना चाहा है। देश आज विभिन्न रूपों एवं नामों में बंट गया है। देश का इतिहास जमीन पर ही लिखा गया आकाश के नीचे बैठकर लिखा है।

व्याख्या सम्पादन

कवि कहता है देश, जो हम देख रहे हैं, यह हमारा है। यह हमारा देश है। हमने इसे एक विशाल देश के रूप में देखा है। आज यह देश केवल एक राजधानी के रूप में ही रह गया। जबकि यह देश राजधानी नही है। हमारा यह देश कभी नगर के रूप में विखयात था। आज यह टुकड़ों तथा अवशेषों में बँट गया है। यह टूटे-फूटे रूप में हमारे सामने आया है यह जिला में विखर गया है। गांव के रूप में यह देश जाना जाता है। गाँव ही हमारे घर बन गए हैं। हमने देश का इतिहास इसी जमीन पर बैठकर और आकाश के नीचे लिखा है। भारत का इतिहास अपने में विशाल है। इसका अपना एक अनोखा एवं जीवित इतिहास है। यह भी आज तक अमिट वह कोई कहानी नहीं हैं।

हमारा अपना गौवरमयी इतिहास है। कोई कहानी नहीं है। हमारे देश का अपना गौरव है। हम कभी भी बदले नहीं हैं। हमारे सिद्धांत, हमारे मूल्य और हमारे विचार कभी बदले नहीं हैं। हम जो थे वही हैं कहने का तात्पर्य यह है कि हमने अपने में बदलाव किए मगर हम नहीं बदले। हमारी सभ्यता-संस्कृति और ढांचे में अवश्य परिवर्तन हुए हैं, परन्तु हम वही है। न ही हम कभी लड़खड़ाए हैं। अगर हम लड़खड़ाए भी है तो संभले भी हैं हम हजारों वर्षों से जीते आ रहे हैं। आज भी जी रहे हैं। हम जीएँगे भी हमारी अपनी परम्परा है। हमारे अपने हो तौर तरीके हैं। हमारी जिन्दगी में नयापन भी आया है और पुरानापन भी है। हम नए और पुराने दोनों को समन्वित रूप में जी रहे हैं यही हमारी सबसे बड़ी विशेषता है कि हम परंपरा और आधुनिकता को एक साथ लेकर चलते हैं।

हमने कमी मुर्दा नि और परम्पराओं को कभी नहीं अपनाया है। हम हमेशा स्वतंत्रता में रहे हैं हमने वही अपनाया है जो हमें अच्छा लगा है। इमें बंधन पसन नहीं रहा है। यह हमारी परम्परा, सभ्यता और संस्कृति को देखकर अपने आप ही स्पष्ट हो है। हमने जीवन एवं व्यवहार में नएपन को ही महत्त्व दिया है। हमारी सोच में परिवर्तन ही देखने को मिलता है। हमने जड़ चीजों को कभी बर्दाश्त नहीं किया है। हमने किसकी दासता भी पसन्द नहीं की है। हमारी नसों में लाल रंग का पवित्र खून बह रहा है। वह अभी लाल ही है। वह पानी नहीं है। हममे अभी जोश एवं साहस है। हमारी नसों में गर्मी है, धधक है प्रवहमान है।

हमारा देश किसी भी दिशा और दृष्टि को मोड़ दे सकता है, परन्तु वह किसी भी तोड़-फोड़ और तोड़ने में योगदान नहीं देता है। वह जोड़ने में विश्वास करता है। वह हरेक को सही रास्ता दिखाता है। कभी किसी को दिग्भ्रमित नहीं करता है। वह हरेक को साथ में लेकर चलता है। चाहे वह बीसवीं सदी हो या इक्कीसवीं सदी हो। वह एक सही राह पर चलता है। वह निर्माण को महत्त्व देता है, तोड़ने को नहीं। वह हमेशा दूसरों की मदद करता है। हमें ये सदियाँ हमेशा सही राह दिखाती हैं। हमें हमारा आध्यात्मिक ज्ञान नई और निर्माणात्मक ज्ञान की दिशा की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा प्रदान करता है। चाहे वह हमारे देश का दूरदर्शन हो या आकाशवाणी। दोनों ही सही सूचना और ज्ञान प्रदान करते हैं। अर्थात् मीडिया में अदभाव है।

विशेष सम्पादन

1. इसमें कवि ने देश को एकरूप मे देखा है।

2. कवि को देश की एकता एंव गौरव वांछनीय है।

3. हमारे देश मे नये-पन और पुराने-पन का समन्वय है।

4. देश मे बदलाव आया है ,परन्तु उसने अपनी परम्पराओं और मूल्यो को नही छोडा।