हिंदी कविता (छायावाद के बाद) सहायिका/पानी की प्रार्थना
प्रकृति और जीवन के उल्लास के गीतकार के रूप में कवि जीवन की शुरुआत करने वाले केदारनाथ सिंह की काव्य संवेदना अत्यंत विशिष्ट रही है । वे अपने समय के पारखी कवि हैं और उनका कलबोध ही उनके काव्य को हमेशा प्रासंगिक बनाए रखता है । गीतकार के उल्लास से लेकर नीरस जीवन एवं अस्तित्व की खोज तक की उनकी कविता में विराट स्वरूप विस्तार दिखाई देता है।
सन्दर्भ
सम्पादन"पानी की प्रार्थना " कविता प्रकृति और जीवन के उल्लास के गीतकार के रूप में काव्य संवेदना अत्यंत विशिष्ट कवि केदारनाथ सिंह द्वारा रचित है
प्रसंग
सम्पादनपानी की प्रार्थना कविता में पानी पूरी शिद्दत के साथ प्रभु(सत्ता संचालकों )के सामने एक दिन का हिसाब लेकर खड़ा होता है और उस एक दिन के हिसाब में लुप्त होने के कगार पर पहुंचे पानी ने अपने पीछे कार्य कर रहे समूचे सत्ता - पूंजीवादी तंत्र की पोल खोल देता है - "पर यहाँ पृथ्वी पर मै / यानि आपका मुँहलगा पानी / अब दुर्लभ होने के कगार तक / पहुँच चुका हूँ / पर चिंता की कोई बात नहीं / यह बाज़ारों का समय है , और वहाँ किसी रहस्यमय स्रोत से मैं हमेशा मौजूद हूँ"।
व्याख्या
सम्पादन- हे भगवान। मैं पानी हूँ। पृथ्वी का प्राचीनतम् नागरिक हूँ। मैंं बहुुत पहले से ही पृथ्वी पर स्थित हूँ। मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ अगर आपकी अनुमति हो तो। यदि कहे तो आपको पिछले एक दिन का हिसाब-किताब देना चाहता हूँ। मगर मेरी बात सुनने के लिए आपके पास समय होना चाहिए तभी आप मेरी बात सुन सकेंगे और तभी मैं अपनी बात आपसे कह सकूंंगा। अब आप देखें कि इतने दिनों के बाद मेरे पास एक चील आई थी। पहले मेरे तट पर कितनी सारी चीले आती थी मगर अब बहुत कम चीले मुझे दिखाई देती है। आपको को पता ही होगा कि चीले कहाँ गई है ?
- परन्तु जैसे भी हो कल एक चील आई और मेरे नजदीक आकर बाजू के पास बैठ गई। पहले तो हैरानी भरी नजरों से इधर-उधर देखा। फिर उसने अपनी चोंंच मेरी छाती मे गाड दी अर्थात उसने अपनी चोंंच पानी मे डालकर पानी पीना आरंभ किया उसकी चोंच लम्बी थी। हे भगवान मुझे यह अच्छा लग रहा था क्योंकि वह अपनी चोंच से मेरे जल को पी रही थी इस तरह मेरा जन्मांतर हो रहा था
विशेष
सम्पादन- बाजारवाद के बारे मे संकेत दिया है।
- वर्तमान व्यवस्था पर कटाक्ष किया है।
- दृश्य बिम्ब विदमान है।
- पानी की लगातार बढती मांग ।
- भाषा मे सरल, बोधगम्यता, व्यग्यात्मकता है।