हिंदी कविता (छायावाद के बाद) सहायिका/भवानी प्रसाद मिश्र
भवानीप्रसाद मिश्र की काव्यगत विशेषता
भवानीप्रसाद मिश्र की कविताएं भाव और शिल्प दोनों ही दृष्टि
से बहुत अधिक प्रभावशाली हैं। इन कविताओं में उन्होंने अपन
अनुभूतियों को बहुत सरल शब्दों में व्यक्त किया है। उन
कविताओं का भावपक्ष सामाजिक भाव बोध, संवेदनशीलत
आत्मीयता, सहजता आदि जिन विशिष्टताओं से युक्त है, वे इ
| से
प्रकार हैं(1) सामाजिक भाव बोध-मिश्र जी की कविता व्यक्तिवा
कविता नहीं है, यह सामाजिक भाव-बोध से संपन्न है। मिश्र जी
अपने काव्य में सामान्य जन-जीवन के विषम संघर्ष की उपे
नहीं की वरन् सामाजिक अन्याय, शोषण, अभाव आदि का वर्ण
किया है और इनके विरुद्ध आवाज उठाने की प्रेरणा दी।
अपनी कविताओं के सारे विषय जीवन और समाज से ही उठा
हैं। लेकिन उन्होंने अपनी कविताओं को जीवन से जोड़कर
रारस और सुन्दर बनाए रखा है।
(2) संवेदनशीलता भवानीप्रसाद मिश्र की कविताओं
एक अन्य विशेषता है संवेदनशीलता उनकी प्रसिद्ध कविता
जैसे- 'सतपुड़ा के जंगल' पर की पाद', 'आशा-गीत आदि उनक
गहरी संवेदनशीलता के परिचायक हैं। उनके काव्य में अनुभू
और संवेदना की प्रधानता है। चिंतन, दर्शन आदि की बोझिल
उसमें नहीं है। अगर चिंतन के तत्त्व आए भी हैं तो वे उन
संवेदनशीलता में ढलकर ही प्रकट हुए हैं।
(3) आत्मीयता मिश्र जी की कविताओं में आत्मीयता
गुण भी मिलता है। वे अक्सर अपने पाठक को सम्बोधित करते
या फिर प्रश्न पूछते हैं। सम्बोधित करते समय वे अक्सर पाठ
को आत्मीयता के साथ समझाते हैं या मन के द्वारा उ
फटकारते हैं। उनके काव्य की यह आत्मीपता पाठक को उन
साथ जोड़े रखती है।
(4) आस्तिकता और आस्था मिश्र जी आस्तिक अं
आस्थावादी कवि हैं। हालांकि ये ईश्वर पर विश्वास नहीं करते
लेकिन मानव-मूल्यों के प्रति उनकी आस्तिकता और आस
उनकी कविताओं में व्यक्त हुई है।
में
(5) यथार्थ बोध भवानीप्रसाद मिश्र ने जीवन के सहज अ
यथार्थ रूप की अभिव्यक्ति अपनी कविताओं में की है। लेकि
उनका यथार्थ बोध केवल जीवन की कटुता निराशा अ
विष्मता का चित्रण नहीं करता। वरन् उनके यथार्थ-बोध के पी
मानवता की विजय और सुखपूर्ण भविष्य की आशा छिपी हुई
और इसका कारण है उनकी गाँधीवाद में आस्था गाँधीवा
आस्था के कारण ही उनके यथार्थ बोध में निराशा का स्वर ना
मिलता।
(6) प्रकृति-चित्रण
मिश्र जी के काव्य में प्रकृति के सहा
मोहक और यथार्थ रूप का चित्रण मिलता है उनके प्रकृ चित्रण छायावादी सौंदर्य चित्रणों से भिन्न हैं। उनकी कविताओं सतपुड़ा, विन्ध्य रेवा और नर्मदा आदि के अनेक चित्र मिलते है 'सतपुड़ा के जंगल' नामक उनकी कविता में प्रकृति के प्र उनकी संवेदनशील अनुभूतियां इस प्रकार व्यक्त हुई है "सतपुड़ा के घने जंगल नींद में डूबे हुए से, उंघते अनमने जंगल।" यहां जंगल निर्जीव न रहकर राजीव सप्राण जीवन का प्रतिरू बन गया है। जंगल के विभिन्न अवयव जीवन और जगत विभिन्न स्थितियों को प्रतिबिंधित करते हैं। (7) सहजता सहजता मिश्र जी के काव्य की सबसे ब विशेषता है। उनकी कविताओं में साधारण जीवन के सहज साधारण अनुभव व्यक्त हुए हैं। उन्होंने जीवन के सहज रूप अपनी दृष्टि से देखा और अपने ढंग से उसकी सहज, अकृत्रि अभिव्यक्ति को लेकिन उनकी कविता सहज होते हुए भी पूर्ण अर्थपूर्ण है जिसके कारण उनकी काव्य पंक्तियाँ सूक्ति सूत्रवाक्य का रूप धारण कर लेती हैं। इस प्रकार की सारी काळ पंक्तियों जीवन की गम्भीर स्थितियों को व्यक्त करती हैं।