हिंदी कविता (छायावाद के बाद) सहायिका
 ← अधिनायक रामदास स्वाधीन व्यक्ति → 
रामदास


  रघुवीर सहाय द्वारा रचित रामदास कविता राजनैतिक सच्चाई को सामने रखने वाली कविता है।

रामदास काल्पनिक चरित्र है, जो आम आदमी का प्रतिनिधित्व करता है। रामदास की हत्या केवल व्यक्ति की हत्या नहीं, यह हमारी सोच, लोकतंत्र, व न्याय के प्रति आस्था की हत्या है। कानून एक है, परंतु इसे व्यक्ति के वर्ग और पहुंच के अनुसार बांट दिया जाता है। कानून का सर्वाधिक दुरूपयोग पैसे वाले लोग किया करते हैं। उनके लिए कानून एक खिलौना है, जिस कारण आज अपराध खुले में किया जाता है, छुपकर नहीं ।

कानून सबके लिए समान है, परंतु व्यक्ति को विभिन्न वर्गों में बांट दिया गया है। पूंजीवादी वर्ग रुपयों के बल पर कानूनी रीयायत पा लेता है। पर इसका शिकार होता है, गरीब आदमी। पूंजीपती लोगों के लिए यह खिलौना मात्र है। और आज समाज की सत्यता को तो हम जानतें हीं हैं‌। आज अपराध छिपकर नहीं खुले में होता है।

रामदास उदास है सभी को यह पता है, कि उसकी हत्या होगी पर उसकी सहायता करने के बजाए वे रामदास की हत्या के एक एक क्षण का लुत्फ़ उठाना चाहते हैं, ताकि वे, यह बता सकें कि देखा हत्यारे कितने बलवान हैं। ऐसे हीं व्यक्तियों और समाज से कवि हताश और निराश हैं। और यही निराशा और हताशा उन्हें रामदास कविता लिखने पर मजबूर कर देती है ।

संदर्भ सम्पादन

प्रस्तुत कविता सुप्रसिध कवि रघुवीर सहाय द्वारा रचित है।

प्रसंग सम्पादन

इस कविता के माध्यम से कवि ने यह बताया है, कि किस प्रकार शोषक वर्ग, शोषित वर्ग पर अत्याचार करता है, किस प्रकार साधारण व्यक्ति लाचार व अभावग्रस्त स्थिति में है। अपनी हत्या का पता होने पर भी वह कुछ नहीं कर पाता ना कानून कुछ कर पाता है, ना लोग।

व्याख्या सम्पादन

रामदास के द्वारा, अन्याय का विरोध करने के कारण, उसे राजनैतिक गुंडो से धमकी मिली है, कि यदि उसने अपना मुंह बंद नही किया तो उसे मौत के घाट उतार दिया जाएगा। जिस दिन वह घर से निकलेगा उसकी हत्या कर दी जाएगी। अपनी हत्या की आशंका होने के बावजूद वह घर से बाहर निकलता है। चौड़ी सड़क थी गली पतली थी। जब वह घर से निकला तब दिन का समय था। आसमान में घने बादल छाये हुए थे। रामदास घर से निकलता तो है, पर वह उदास है, भयभीत है, आज न जाने उसे ऐसा क्यों लग रहा है कि आज उसका अतिंम दिन है। आज उसकी हत्या होगी उसे बता दिया गया था। अपनी हत्या की आशंका से डरा हुआ वह सड़क पर धीरे-धीरे चल रहा था। एक बार उसके मन में यह बात आयी की वह अपनी सुरक्षा के लिए अपने साथ किसी को ले ले, पर वह यह सोच कर रुक जाता है, कि अगर वह किसी व्यक्ति को अपने साथ लेगा भी तो वह व्यक्ति भी निहत्था हीं होगा हत्यारों के सामने टिक नहीं पाएगा। सब लोगों को भी यह पता है कि आज उसे धमकी मिली है और उसकी हत्या होगी।

रामदास बीच सड़क पर दोनों हाथ पेट पर रख कर खड़ा हुआ है और बहुत सोच-सोच के कदम रख रहा है, लोग उसे आँखें गड़ाए हुए देख रहे हैं उनको पता है, कि आज उसकी हत्या होनी तय हैं।

अचानक से एक गली से निकलकर किसी ने उसका नाम पुकारा। रामदास जैसे हीं उसकी तरफ मुड़ा, उस हत्यारे ने अपने सधे हुए हाथों रामदास पर चाकू से वार किया, चाकू का वार होते हीं रामदास के शरीर से खून की धार बहनी शुरू हो गई। वह वहीं गिर पड़ा उसका शरीर खून से लथपथ हो गया। जिस व्यक्ति ने रामदास की हत्या की वह निडर होकर उस भीड़ वाली जगह से चला गया। सड़क पर लोग तमाशबीन होकर खड़े रहे, किसी में यह हिम्मत नहीं थी, कि वह हत्यारे को रोक  सके कुछ लोग उन्हें बुलाने लगे जिन्हें यह विश्वास था, कि एक न एक न एक दिन रामदास की हत्या होगी।

विशेष सम्पादन

१.जनसमान्य के निकट की भाषा।

२. वर्णनात्मक शैली।

३. शब्द बिंब का प्रयोग।

४. लाचार व अभाव ग्रस्त व्यक्ति की मानसिक स्तिथी का वर्णन।

५.समाज का मूक बना रहना।

६.'पेट पर हाथ रखना' गरीब व असहाय होने का सकेंत।

७.'लोहू' आंचलिक शब्द।                

८. यह सिर्फ एक साधारण व्यक्ति (रामदास) की हत्या ना होकर भारतिय सविंधान और लोकतंत्र की हत्या है।

९. इस कविता में समाज की नग्नता को दिखाया गया है, कि वह अपनी नंगी आँखो से सारे घटनाक्रम को देखता है। फिर भी उसकी आँखो में वह करूण की चिंगारी नहीं उठती, निकलते हैं तो केवल उनके मूंह से वो शब्द जो राजनैतिक गुंडो की तारिफ करते हैं की देखा रामदास की हत्या हो गई।    

.