रहीम के दोहे
अब्दुर्रहीम खानखानाँ

चयनित दोहे सम्पादन

दोहे

(1)

काज परै कछु और है,काज सरै कछु और।

रहिमन भॅंवरी के भयै नदी सिरावत मौर।।

(2)

खैर,ख़ून,खाॅंसी,खुसी,बैर,प्रीति,मदपान।

रहिमन दाबै न दबै जानत सकल जहान।

(3)

जो रहीम दीपक दसा,तिय राखत पट ओट।

समय परे ते होत है,याही पट की चोट।।

(4)

पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन।

अब दादुर वक्त भए, हमको पूछे कौन।।

(5)

प्रेम-पंथ ऐसो कठिन, सब काउ निबहत नाहि

रहिमन’ मैन-तुरंग चह़ि, चलिबो पावक माहि

(6)

यह ‘रहीम’ निज संग लै, जनमत जगत् न कोय ।

बैर, प्रीति, अभ्यास, जस होत होत ही होय ॥


(7)

यह ‘रहीम’ माने नहीं , दिल से नवा न होय ।

चीता, चोर, कमान के, नवे ते अवगुन होय ॥

(8)

रहिमन अति न कीजिए, गहि रहिए निज कानि।

सैंजन अति फूलै तऊ, डार पात की हानि॥

(9)

रहिमन अंसुवा नयन ढरि, जिय दुःख प्रगट करेइ,

जाहि निकारौ गेह ते, कस न भेद कहि देइ

(10)

‘रहिमन’ प्रीति न कीजिए , जस खीरा ने कीन ।

ऊपर से तो दिल मिला, भीतर फांकें तीन ॥

(11)

रहिमन पैंडा प्रेम को निपट सिलसिली गैल।

बिछलत पाॅव पिपीलिका लोग लदावत बैल।।

(12)

रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाये।

टूटे से फिर ना जुटे जुटे गाॅठ परि जाये।।

लेखक परिचय सम्पादन