हिंदी भाषा और साहित्य का इतिहास (आधुनिक काल)/गद्य की अन्य विधाएँ

संस्मरण

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संस्मरण हिन्दी गद्य की एक नवीन किन्तु महत्त्वपूर्ण विधा है। संस्मरण का मूल अर्थ है, 'सम्यक् स्मृति' एक ऐसी स्मृति जो वर्तमान को अधिक सार्थक, समृद्ध और संवेदनशील बनाती है। हिन्दी साहित्य कोश में संस्मरण को परिभाषित करते हुए लिखा गया है कि स्मृति के आधार पर किसी विषय या व्यक्ति के संबंध में लिखित लेख या ग्रंथ को संस्मरण कह सकते हैं। व्यापक रूप से संस्मरण आत्मचरित के अंतर्गत आ जाता है, परंतु इन दोनों में मूलभूत अंतर है। आत्मचरित के लेखक का मुख्य उद्देश्य अपनी जीवन-कथा का वर्णन करना रहता है और इसका प्रमुख पात्र स्वयं लेखक होता है एवं अन्य इतिहास की घटनाओं तथा परिस्थितियों का केवल वही रूप उसमें आता है जो उसके जीवन चक्र को प्रभावित और संचालित करता है, अथवा जो उससे प्रभावित होता है। इसके विपरीत संस्मरण का दृष्टिकोण अलग है। इसमें लेखक अपने समय के इतिहास को लिखना चाहता है वह जो स्वयं देखता है, जिसका वह स्वयं अनुभव करता है, उसी का वर्णन करता है, उसके वर्णन में उसकी अनुभूतियाँ एवं संवेदनाएं भी रहती है। अतः लेखक स्मृतियों से प्रसंग को उभारने का काम करता है, तो वह स्मृतियाँ संस्मरण कहलएगी। संस्मरण से हमारा बोध जुड़ा होता है।[] डॉक्टर रामचन्द्र तिवारी के शब्दों में, “संस्मरण किसी स्मर्यमाण की स्मृति का शब्दांकन है। स्मर्यमाण के जीवन के वे पहलू, वे संदर्भ और वे चारित्रिक वैशिष्ट्य जो स्मरणकरता को स्मृत रह जाते हैं, उन्हें वह शब्दांकित करता है। संस्मरण वही रह जाता जो महत्, विशिष्ट, विचित्र और प्रिय हो। स्मर्यमाण को अंकित कराते हुए लेखक स्वयं भी अंकित होता चलता है।"[उद्धरण आवश्यक]

हिन्दी में संस्मरण साहित्य का प्रचलन आधुनिक काल में पश्चिमी प्रभात और उसके वातावरण में हुआ। हिन्दी में संस्मरण लिखने का प्रारम्भ पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से ही हुआ। जो द्विवेदी युग की देन रही। हिन्दी के प्रारम्भिक संस्मरण लेखकों में पद्मसिंह शर्मा और बाल मुकुन्द गुप्त प्रमुख है। पद्मसिंह शर्मा ने संस्मरण को एक साहित्यिक विधा के रूप में प्रतिष्ठित करने के साथ उसे एक स्वतंत्र पहचान भी दी।

1907 में बाल मुकुन्द गुप्त द्वारा प्रताप नारायण मिश्र

 
प्रताप नारायण मिश्र के सम्मान में जारी डाक टिकट

और हरिऔध जी पर संस्मरण लिखा गया। 1929 में पद्मसिंह शर्मा कृत ‘पद्म पराग' नामक संस्मरण का प्रकाशन हुआ जिसमें सत्यनारायण कविरत्न, भीमसेन शर्मा आदि पर मार्मिक संस्मरण हैं। इन्हीं दो नामों के बीच आज तक प्रथम संस्मरणकार के नाम को लेकर हिन्दी साहित्य में मतभेद है। कुछ विद्वान ‘पद्म पराग' को रेखाचित्र मानते हैं। कारण स्वरूप बनारसी दास चतुर्वेदी की निम्न उक्ति द्रष्टव्य है--संस्मरण, रेखाचित्र और आत्मचरित्र इन तीनों का एक-दूसरे से इतना घाईष्ठ संबंध है कि एक की सीमा दूसरे से कहाँ मिलती है और कहाँ अलग हो जाती है, इसका निर्णय करना कठिन है।"

1928 में रामदास गौढ़ ने श्रीधर पाठक और रायदेवी प्रसाद 'पूर्ण' जैसे साहित्यकारों का संस्मरण लिखा। ईलाचंद्र जोशी ने 'क्षुद्र' पत्रिका में 'मेरे प्रारम्भिक जीवन की स्मृतियाँ' शीर्षक से अपने बचपन की स्मृतियों को लिखा। 1932 ई० में विशाल भारत पत्रिका में बनारसी दास चतुर्वेदी ने श्रीधर पाठक का संस्मरण लिखा। इनके बाद हिन्दी के कई प्रसिद्ध लेखकों ने संस्मरण लिखे।

 
महादेवी वर्मा
 
फणीश्वर नाथ रेणु जी के याद में जारी डाक टिकट

महादेवी वर्मा के 'अतीत के चलचित्र' तथा 'स्मृति की रेखाएँ', रामवृक्ष बेनीपुरी की 'माटी की मूरतें ' , हरिवंश राय 'बच्चन' की कवियों में सौम्य संत है, डॉ रामकुमार वर्मा की 'संस्मरणों के सुमन', विष्णु प्रभाकर की 'मेरे अग्रज', 'मेरे गीत', फणीश्वर नाथ रेणु की 'वन तुलसी की गंध' आदि उल्लेखनीय संस्मरणात्मक ग्रंथियां है। देवेन्द्र सत्यार्थी, बेचन शर्मा उग्र, उपेन्द्रनाथ अश्क, मैथिलीशरण गुप्त, जगदीश चंद्र माथूर आदि संस्मरणकारों की पंक्ति के अन्य प्रमुख नाम हैं।

रेखाचित्र

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रेखाचित्र किसी व्यक्ति, वस्तु, घटना या भाव का कम से कम शब्दों में मर्मस्पर्शी, भावपूर्ण और सजीव चित्रण है। इसमें शब्द-चित्रों के माध्यम से लेखक किसी घटना, व्यक्ति आदि को प्रतिबिंबित करता है। रेखाचित्र पूर्ण चित्र नहीं होता, उसमें विवरण कम किंतु संवेदना अधिक होती है। रेखाचित्र में संकेत कर सकने की क्षमता बहुत आवश्यक है। इसमें लेखक शब्दों, वाक्यों से परे भी बहुत कुछ कहने की क्षमता रखता है। यही कारण है कि प्रायः जिन लेखकों ने संस्मरण लिखे हैं उन्होंने रेखाचित्र भी लिखे। रेखाचित्र लिखते समय लेखक तटस्थ रहने का प्रयास करता है।[] हालाँकि रेखाचित्र और संस्मरण में सामान्यतः भेद करना मुश्किल है फिर भी दोनों में कुछ बिंदुओं पर भेद किया जा सकता है।

संस्मरण और रेखाचित्र में अंतर

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  1. संस्मरण लेखक व्यक्ति के रूपाकार, वेशभूषा, भाव-भंगिमा आदि को भी संस्मरण में लेता है। हालांकि उसका उद्देश्य उस व्यक्ति की महत्ता को उजागर करना होता है। रेखाचित्र में रेखाचित्रकार का उद्देश्य बाहरी रूपरेखा का शब्दांकन मात्र होता है किंतु उस रूपांकन से ही चित्रित व्यक्ति अथवा वस्तु की आंतरिक झलक प्रस्तुत कर देता है।
  2. संस्मरण लेखक के लिए वर्णित व्यक्ति या घटना के साथ तादाम्य होना ज़रूरी है जबकि रेखा चित्रकार के लिए यह आवश्यक नहीं है।
  3. संस्मरण लेखक जहाँ व्यक्ति के चरित्र के किसी पहलू को अंकित करता है। वहाँ रेखाचित्रकार व्यक्ति के समग्र जीवन की झांकी प्रस्तुत करने का प्रयत्न करता है।
  4. संस्मरण लेखक जहाँ भावुकता में बहकर संस्मरण को अंकित करता है वहाँ रेखाचित्रकार गिने-चुने शब्दों और वाक्यों से ही अपना काम चला देता है।

हिंदी में रेखाचित्र लेखन के क्षेत्र में कुछ महत्वपूर्ण नाम और उनकी रचनाएँ इस प्रकार हैं - बनारसीदास चतुर्वेदी (रेखाचित्र), महादेवी वर्मा ('अतीत के चलचित्र' व 'स्मृति की रेखाएँ'), रामवृक्ष बेनीपुरी ('माटी की मूरतें' तथा 'गेहूँ और गुलाब'), प्रकाशचंद्र गुप्त ('पुरानी स्मृतियाँ और नये स्केच', 'विशाख' तथा 'रेखाचित्र') तथा कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' (भूले हुए चेहरे) आदि।[] इनके अतिरिक्त विनय मोहन शर्मा (रेखाएँ और रंग), कृष्णा सोबती (हम हशमत) तथा भीमसेन त्यागी (आदमी से आदमी तक) का भी इस क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान माना जाता है।

फ़ुटनोट

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  1. हिन्दी साहित्य कोश भाग 1 2015, p. 714.
  2. २.० २.१ हिन्दी साहित्य कोश भाग 1 2015, p. 575.
  • हिन्दी साहित्य कोश भाग - 1 'पारिभाषिक शब्दावली', प्रधान संपादक - डॉ॰ धीरेंद्र वर्मा, ज्ञानमंडल लिमिटेड, वाराणसी, 2015 (संस्करण)।