(1) शब्द निर्माण के प्रमुख युक्तियाँ
भाषा में कुछ ऐसी युक्तियाँ होती है जो शब्द न होकर भी शब्दों के निर्माण में अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ऐसी तीन युक्तियाँ प्रमुख हैं-

(क) उपसर्ग, (ख) प्रत्यय तथा परसर्ग, (ग) संधि एवं समास।

(क) उपसर्ग
ये शब्द नहीं शब्दांश है जो किसी शब्द के पूर्व में जुड़कर अर्थ परिवर्तन कर देते है, जैसे- निराकार = निर्+आकार। इसमें 'आकार' शब्द के पूर्व में 'निर्' उपसर्ग लगने से अर्थ में परिवर्तन हो गया हैं। ध्यातव्य है कि उपसर्ग स्वतः सार्थक नहीं होते है, अतः इन्हें शब्द नहीं माना जा सकता किन्तु इनका प्रभाव अर्थपूर्ण होता है।

हिंदी में उपसर्ग प्रायः तीन स्रोतों से आए हैं- संस्कृत से, फारसी से, एवं हिंदी में स्वतः विकसित उपसर्ग।

संस्कृत के उपसर्ग लगभग 22 हैं, जैसे - सम्, प्र, सत्, इत्यादि। इनके उदाहरण इस प्रकार हैं-

सम्+उचित = समुचित, सत्+संग = सत्संग, प्र+दूषण = प्रदूषण, सत्+जन = सज्जन।

फारसी के उपसर्ग भी हिंदी में बड़ी संख्या में प्रचलन में है, जैसे हम, ला, बा, बे, इत्यादि। इनके कुछ उदाहरण द्रष्टव्य है।

हम + राही = हमराही, बा + कायदा = बाकायदा, ला + जवाब = लाजवाब, बे + बाक = बेबाक।

हिंदी की परंपरा में भाषिक विकास के साथ-साथ कुछ उपसर्ग स्वतः विकसित हुए हैं। इन उपसर्गों में स, अन, पर आदि प्रमुख हैं। इनके उदाहरण इस प्रकार हैं-

स+पूत=सपूत, पर+वर्ती=परवर्ती, अन+जान=अनजान, पर+देस=परदेस।

(2) प्रत्यय या परसर्ग
ये भी शब्दांश हैं पर ये उपसर्ग के विपरीत शब्द के विपरीत शब्द के अंत में आकर अर्थ में आकर अर्थ परिवर्तन करते है, जैसे- पन>लड़कपन, बचपन इत्यादि। संस्कृत की प्रत्यय परंपरा बहुत समृद्ध है जिसे हिंदी में प्रायः स्वीकार किया गया है। संस्कृत के प्रत्ययों को दो भागों में बाँटा गया हैं-

(क) कृदंत (ख) तद्धित

(क) कृदंत
ये वे प्रत्यय है जो किसी क्रिया या धातु के अंत में लगते है, जैसे क, एरा, आक इत्यादि। इनके उदाहरण निम्नलिखित है-

क - अध्यापक, रक्षक। आक - तैराक। एरा - लुटेरा। आलू - झगड़ालू।

(ख) तद्धित
ये वे प्रत्यय जो क्रियाओं के अतिरिक्त अन्य सभी प्रकार के शब्दों जैसे संज्ञा, विशेषण आदि में जुड़ते हैं, जैसे पा, पन, आ इत्यादि। इनके कुछ उदारण इस प्रकार हैं-

पा - बुढ़ापा, आ - प्यासा, पन - बचपन।

हिंदी में अपने प्रत्यय भी काफी मात्रा में हैं। इस संदर्भ में एक विशेष बात यह भी है कि संस्कृत से हिंदी के विकास की प्रक्रिया में जिन क्षेत्रों में सर्वाधिक विकास हुआ है, उनमें से एक क्षेत्र प्रत्ययों का भी का भी है। ऐसे प्रत्ययों में आरी, आहट, अक्कड़ इत्यादि प्रमुख है। उनके कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं-

अक्कड़ - भुलक्कड़, पियक्कड़, आहट - फुसफुसाहट, आरी - होशियारी, पुजारी।

(3) संधि और समास
ये भाषा की वे युक्तियाँ हैं जिनमें अलग-अलग शब्द या शब्दांश आपस में जुड़कर एक नए शब्द का निर्माण करते हैं। समास का संयोग दो शब्दों के परस्पर जुड़ने से होते है जबकि संधि एक शब्द व दूसरे शब्दांश के बीच भी हो सकती है। अभी तक के उदाहरणों में कई बार संधिओं के उदाहरण हमने देखे हैं। जैसे निर् + आकार = निराकार तथा सत् + जन = सज्जन आदि। अब हम समास के संबंध में विशेष चर्चा करेंगे।

हिंदी में प्रमुख रूप से चार प्रकार के समास स्वीकार किए गये हैं- अव्ययीभाव, तत्पुरुष, द्वंद्व तथा बहुब्रीहि समास। इनकी संक्षिप्त व्याख्या इस प्रकार है-

अव्ययीभाव समास
यह वह समास है जिसमें पूर्व पद प्रधान हो व उत्तर पद गौण हो, जैसे प्रतिदिन।
तत्पुरुष समास
यह वह समास है जिसमें उत्तर पद प्रधान हो और पूर्व पद गौण हो जैसे घुड़सवार, हस्तलिखित इत्यादि।

बहुब्रीहि समास के दो उपभेद माने गए हैं- कर्मधाराय समास तथा द्विगु समास। ध्यातव्य है कि तत्पुरुष समास ऐसे भी हो सकते हैं जो इन दोनों में शामिल न होते हों। इन दोनों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है-

कर्मधाराय
वह समास जिसमें पूर्व पद विशेषण तथा उत्तर पद विशेष्य हो, जैसे- नीलगाय।
द्विगु
वह समास जिसमें पूर्व पद कोई संख्या हो तथा वह उत्तर पद की व्याख्या करती हो, जैसे चतुर्भुज, चौराहा, सतसई इत्यादि।
द्वंद्व समास
यह वह समास है जिसमें दोनों पूर्व पद तथा उत्तर पद बराबर महत्व के हों, जैसे दाल-रोटी, माता-पिता, ज्वार-भाटा इत्यादि।
बहुब्रीहि समास
यह वह समास है जिसमें दोनों शब्द मिलकर किसी तीसरे अर्थ की व्यंजना करें। योगरूढ़ शब्द ही एक प्रकार से बहुब्रीहि समास कहलाते है। उदाहरण के तौर पर 'दशानन' शब्द दो शब्दों दश+आनन से मिलकर बना है पर इसका अर्थ 'रावण' इन दोनों से भिन्न एक अन्य अर्थ है। ऐसे ही नीलांबर, चक्रपाणि इत्यादि भी इसी समास के उदाहरण हैं।
(4) पद संरचना
आमतौर पर शब्द व पद को पर्यायवची माना जाता है पर इनमें एक अंतर है। शब्द स्वयं में स्वतंत्र भी हो सकते है किन्तु वही शब्द व्याकरण सम्मत नियमों के आधार पर किसी वाक्य में निश्चित स्थान ग्रहण कर लेता है तो पद बन जाता है जैसे- 'राम', 'ने', 'रावण', 'को', 'मारा' ये सभी शब्द है किन्तु 'राम ने रावण को मारा' वाक्य में ये पांचों पद बन गये हैं। जब तक ये शब्द थे, हम इनका स्थान परिवर्तन कर सकते थे पर अब स्थान परिवर्तन करने से अर्थ के परिवर्तित होने की संभावना हो जाएगी।

हिंदी में पदों का वर्गीकरण दो भागों में किया गया है-


(1) विकारी पद , (2) अविकारी पद या अव्यय पद

(1) विकारी पद
ये पद है जो लिंग, वचन या काल आदि के परिवर्तन से बदल जाते हैं। हिंदी में चार प्रकार के विकारी पद मिलते हैं। उन्हें तथा उनके परिवर्तनशील रूप को हम निम्नलिखित उदाहरणों से देख सकते हैं-
अ) संज्ञा
लड़का, लड़के, लड़कियाँ इत्यादि।
आ) विशेषण
काला, काले, काली इत्यादि।
इ) सर्वनाम
वह, वे, वही इत्यादि।
ई) क्रिया
जाता है, जाते हैं, जाती है इत्यादि।
(2) अविकारी पद
ये वे पद हैं जो किसी भी स्थिति में परिवर्तित नहीं होते हैं। प्रत्येक लिंग, वचन तथा काल में इनकी एक सी संरचना बनी रहती है। अविकारी पद निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किए गए हैं।
अ) क्रियाविशेषण
ये वे विशेषण है जो संज्ञा के नहीं, क्रिया की विशेषता बताते है, जैसे 'धीरे चलना', में 'धीरे' शब्द 'चलना' क्रिया का विशेषण है।
आ) योजना या समुच्चयबोधक पद
ये वे पद है जो वाक्यों या उपवाक्यों या पदों को जोड़ते है, जैसे - और, तथा, या, किन्तु इत्यादि।
इ) सम्बन्धबोधक पद
ये वे पद है जो वस्तुओं या व्यक्तियों के आपसी सम्बन्धों को व्यक्त करता हैं, जैसे- 'के लिए', 'के बिना' इत्यादि।
ई) विस्मयादिबोधक पद
ये वे पद है जो विस्मय को प्रकट करने के लिए प्रयुक्त होते हैं, जैसे- अरे, ओफ, वाह इत्यादि।