हिंदी साहित्य का इतिहास (आदिकाल एवं मध्यकाल)/आदिकाल की परिस्थितियाँ
राजनीतिक परिस्थितियां
- वर्धन साम्राज्य को भारत का अंतिम साम्राज्य माना जाता है
- हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद साम्राज्य लड़खड़ा गया
- कासिम ने भारत पर सरल आक्रमण किया यह अरबों का प्रथम आक्रमण 712 ईस्वी में हुआ
- भारत में अरबों का आक्रमण का मुख्य उद्देश्य 'धन लूटने' व इस्लाम धर्म का प्रचार प्रसार करना था
मोहम्मद गजनी :-
- 10 वीं शताब्दी में गजनी का राज्य जब मोहम्मद गजनी के हाथ में आया तो उसने भारत पर सफल आक्रमण 1001 ईसवी में किया
- मोहम्मद गजनी ने भारत पर लगभग 17 बार आक्रमण किया
- मोहम्मद गजनी ने 1008 ईस्वी में मूर्तिवाद के विरुद्ध नगरकोट में आक्रमण किया
- मोहम्मद गजनी ने मथुरा, कन्नौज, ग्वालियर, सौराष्ट्र बनारस आदि मंदिरों को भी लूटा
- उसका सबसे चर्चित आक्रमण 1024 ईसवी में सौराष्ट्र 'सोमनाथ मंदिर' पर हुआ और नगरों को भी नष्ट कर दिया
- 11वीं और 12वीं शताब्दी में राजाओं में एकता का अभाव था अंतः गजनी ने तुर्को को समाप्त कर मोहम्मद गोरी ने भारत पर आक्रमण किया
मोहम्मद गोरी :-
- मोहम्मद गोरी एक कट्टर मुसलमान शासक था
- उसने भारत पर प्रथम आक्रमण 1175 ईस्वी में किया
- दूसरा आक्रमण 1178 ई° में गुजरात पर किया यहां का शासक भी बुरी तरह पराजित हुआ
- 1192 मैं पृथ्वीराज को भी पराजित किया और मुसलमानों का राज स्थापित किया
- इसका कारण था कि राजपूत में परस्पर फूट व पड़ोसी राज्यों के प्रति ईर्ष्या द्वेष पैदा हो गया था
- इस प्रकार संपूर्ण भारत में हिंदुओं की सत्ता समाप्त हो गई और मुसलमानों का राज्य स्थापित हो गया
- ईशा की आठवीं शताब्दी से 15वीं शताब्दी तक राजनीतिक दृष्टि से हिंदुओं की राज्यसत्ता 'शनै-शनै समाप्त हो गई' और इस्लाम सत्ता का धीरे-धीरे उदय हो गया
- विदेशियों का आक्रमण पश्चिमी उत्तर मध्य भारत पर हुआ जिसका प्रभाव यहां के साहित्य में उसका वर्णन किया जैसे हम्मीर रासो, विजयपाल रासो, विजयपाल रासो, पृथ्वीराज रासो, परमाल रासो, आदि ग्रंथ इसके प्रमाण हैं
- यह युद्ध, अशांति एवं संघर्ष का काल था
- जनता विदेशी आक्रमणकारियों के साथ-साथ देसी राजाओं के अत्याचारों से भी त्रस्त थी
- संपूर्ण भारत खंडों में बांटा हुआ था इसलिए राज्यों में संकुचित राष्ट्रीयता नहीं थी
धार्मिक परिस्थिति
- ईशा की सातवीं शताब्दी से पूर्व देश का धार्मिक वातावरण शांत और श्रद्धापूर्ण था
- छठी शताब्दी में भक्ति आंदोलन तमिल क्षेत्र से उदय होकर कर्नाटक और महाराष्ट्र में फैल गया
- एक ओर बौद्ध धर्म का पतन हो गया था तो दूसरी ओर अलवार और नयनार संतो का उदय हो गया था
- अलवार संत 12, और नयनार 63 संत ने भक्ति का विकास किया और दक्षिण भारत से उत्तर भारत में भक्ति को लेकर आए
- भक्ति आंदोलन को दक्षिण भारत से उत्तर भारत में लाने का श्रेय रामानंद को जाता है
- उत्तर भारत में भक्ति आंदोलन 13वीं शताब्दी में आया और रामानंद के निम्नलिखित शिष्य द्वारा (कवीर, रैदास, पीपा, सेना आदि) शिष्य द्वारा इसको आगे बढ़ाया गया
- रामानंद के विषय में एक पंक्ति बहुत प्रचलित है भक्ति उपजी द्रावड़ि लाए रामानंद
- एक और जैन धर्म और शैव धर्म आपस में टकराव की स्थिति में थे दोनों में प्रतिस्पर्धा का दौर चल रहा था
- राजपूत अहिंसा में विश्वास नहीं करते थे अंतः शैव धर्म को माना और जैन धर्म का हास्य हुआ , राजपूतों के कारण ब्राह्मणों का खूब बोलबाला था
- अपनी शक्ति क्षीण होता देख बौद्ध धर्म रूप बदलकर सामने आया | बौद्ध धर्म महायान शाखा के रूप में आया जिसमें तंत्र मंत्र, जादू टोने, ध्यान धारण, आदि का महत्व था
- लोग इससे प्रभावित होकर जादू टोने के चक्कर में पड़ गए
- जनता को कोई सही रहा नहीं दिखा पा रहा था भ्रमित जनता को नई दिशा प्रदान करने के लिए शंकराचार्य और रामानुजाचार्य आदि सामने आए
सामाजिक परिस्थिति
- जनता की स्थिति अत्यंत दयनीय थी
- जनता शासक और धर्म दोनों से स्वयं को निराश्रित पा रही थी वास्तविकता यह थी कि दोनों ही जनता को शोषण कर रहे थे
- समाज छोटी छोटी जातियों उप जातियों में विभाजित था | समाज में अनेक रूढ़ियां पनप रही थी | समाज में नारी की दशा अत्यंत सोचनीय अथवा दयनीय थी | वह मात्र भोग विलास की वस्तु रह गई थी उसका क्रय विक्रय किया जा रहा था|
- सामान्य जन वंचित था| निर्धनता बढ़ती जा रही थी | सती प्रथा का भयंकर अभिशाप था| राजपूतों में आत्मसम्मान का स्वाभिमान था|
- नारी के कारण युद्ध भी हुआ करते थे
- राजाओं में बहु-विवाह की प्रथा का प्रचलन था अर्थात वह एक से ज्यादा रानियों को रखा करते थे
- इस समय राजा को ही ईश्वर का रूप दे दिया गया था| राजा की ही पूजा की पूजा की जाती थी और राजा को ही सर्वश्रेष्ठ माना जाता था
- स्त्रियों को केवल भोग विलास की वस्तु समझा जाता था
- समाज में क्षत्रियों की प्रधानता थी
सांस्कृतिक परिस्थिति
- हर्षवर्धन के समय तक भारतीय संस्कृति अपने चरमोत्कर्ष पर थी उस समय तक स्वाधीनता तथा देशभक्ति के भाव जनता के हृदय में रहते थे
- परंपारीक संगीत, मूर्ति, चित्र, स्थापत्य आदि कलाओ ने खूब प्रगति की
- उस समय मंदिरों का निर्माण भी भव्य रुप में हुआ जैसे सोमनाथ, पूरी, कांची, तंजौर, खजराहो आदि इन सभी मंदिरों का निर्माण उसी समय हुआ था
- प्राय सभी कलाओं में धार्मिक भावनाओं की छाप थी ‘अलबरूनी’ ने हिंदुओं के मंदिर शैली की बड़ी प्रशंसा की थी
- किंतु मुसलमानों ने इस कला पर कुठाराघात किया और मंदिरों को नष्ट करते गए
- यवनो के आक्रमण से भारतीय संस्कृति का विघटन होने लगा | हमारे त्यौहार, मेलो, खान-पान, वेशभूषा, विवाह आदि पर इस्लाम का गहरा प्रभाव पड़ा
- कला के क्षेत्र में भी भारतीय परंपरा लुप्त हो गई
- गायन, वादन, नृत्य आदि पर भी इस विदेशी संस्कृति का प्रभाव पड़ा
- हिंदू राजाओं ने भी विदेशी कलाओं को आश्रय प्रदान किया जिसके कारण धीरे-धीरे भारतीय संस्कृति लुप्त हो गई
- मुसलमान मूर्ति विरोधी थे अंतः मूर्तिकला का भी विकास समाप्त हो गया
- सम्राट हर्षवर्धन के समय भारत सांस्कृतिक दृष्टि से अपने शिखर पर थी
साहित्यिक परिस्थिति
- इस काल में साहित्यिक परिस्थिति का विशेष महत्व था
- अशांत वातावरण में भी भारतीय साहित्य ने निरंतर विकास किया
- इस काल में ज्योतिषी दर्शन स्मृति आदि विषयों के अलावा हर्ष का नेषध चरित आदि कवियों की रचना हुई
- संस्कृत में भी खूब रचनाएं हुई संस्कृत के अलावा प्राकृत एवं अपभ्रंश में भी प्रचुर मात्रा में श्रेष्ठ साहित्य रचा गया
- जैन, सिद्धों का साहित्य इसका प्रमाण है
- देश भाषा में भी साहित्य की रचना हुई साहित्य जनता की भावनाओं को मानसिक स्थितियों में व्यक्त करने का माध्यम बन गया था
- संस्कृत के कवि रचनात्मक प्रतिभा के उद्घाटन के कवि धर्म प्रचार में लीन थे
- केवल हिंदी ही एक ऐसी भाषा है साहित्य के माध्यम से तत्कालीन परिस्थितियों को किसी रूप में उद्घाटित कर रही थी