हिंदी साहित्य का इतिहास (आधुनिक काल)/ब्रजभाषा और खड़ी बोली

मध्यकालीन तथा आधुनिक कालीन बोध में हुए परिवर्तन ने भाषा के स्तर पर भी प्रभाव दिखाया। यह प्रभाव था ब्रजभाषा के प्रभाव में निरंतर कमी का आना तथा खड़ी बोली का हिंदी की परिनिष्ठित भाषा के रूप में विकसित होना।

ब्रजभाषा का साहित्यिक रूप में विकास सम्पादन

आधुनिक काल से पूर्व ब्रजबोली या ब्रजभाषा हिंदी की साहित्यिक भाषा के रूप में स्थापित हो चुकी थी। १३ वीं सदी के लगभग ब्रज क्षेत्र की बोली ने साहित्यिक रूप में विकसित होना आरंभ कर दिया था। ब्रज क्षेत्र में मुख्यतः उत्तर प्रदेश के आगरा, हिण्डौन सिटी,धौलपुर, मथुरा, मैनपुरी, एटा और अलीगढ़ जिले शामिल हैं। अनेक प्रमुख भक्तिकालीन और रीतिकालीन कवियों ने इसमें अपनी उत्कृष्ट रचनाएं की हैं। इनमें सूरदास, रहीम, रसखान, केशव, घनानंद, बिहारी, सेनापति, पद्माकर, भारतेंदु, जगन्नाथदास रत्नाकर आदि बहुत प्रसिद्ध हुए हैं। रीतिकाल तक आते आते ब्रजभाषा व्यापक क्षेत्र में बोली और समझी जाने लगी थी।

आधुनिककाल से पूर्व खड़ी बोली सम्पादन