हिंदी साहित्य का सरल इतिहास/कृष्ण भक्ति काव्य की विशेषताएं
कृष्ण-भक्ति साहित्य प्रधानत: भगवान के लोकरंजक रूप को उजागर करता है। यह ऐकांतिक भाव का साहित्य है। यह ध्यान देने की बात है कि यद्यपि कृष्ण के चरित्र में सामाजिकता और लोकमंगल की भावना के समावेश का पूरा अवकाश है, किंतु हिंदी के कृष्ण-भक्त कवियों का ध्यान उधर नहीं गया। सूरदास की कविता में लोक की रक्षा का पक्ष न सही, किंतु रंजन पक्ष विद्यमान है। परवर्ती कवियों की विषयवस्तु सीमित होती गई इसी कारण इस धारा के कवियों ने अधिकांशत: मुक्तकों में ही रचना की अष्टछाप के कवियों में तत्कालीन पर्व, उत्सव, रीति-रिवाज, आभूषण, वस्त्रादि का वर्णन मिलता है। कृष्ण-भक्ति काव्य की मधुरता ने मुसलमान कवियों को भी पर्याप्त संख्या में अपनी ओर आकृष्ट किया। कृष्ण-भक्ति काव्य की भाषा ब्रजभाषा ही रही। भक्ति प्रचार के साथ-साथ ब्रजभाषा का इतना व्यापक प्रचार हुआ कि वह शताब्दियों तक हिंदी क्षेत्र की तो प्रमुख काव्य-भाषा बनी ही रही, हिंदी क्षेत्र के बाहर सुदूरवर्ती क्षेत्रों में भी काव्य-रचना के लिए व्यवहृत हुई। कृष्ण-भक्ति काव्य में रामचरितमानस जैसा कोई विशद महाकाव्य तो नहीं रचा गया, लेकिन इसने सामान्य गृहस्थों के दैनंदिन जीवन को कृष्णचरित के उल्लास और व्यथा से भर दिया। श्रृंगार के क्षेत्र में तो कृष्ण-भक्त काव्य का ही वर्चस्व रहा, राम-काव्य का नहीं