हिंदी साहित्य का सरल इतिहास/कृष्ण भक्ति धारा/कृष्णदास( 16 वीं शती)

कृष्णदास जन्मना शुद्र होते हुए भी वर्लभाचार्य के कृपा-पात्र थे और मंदिर के प्रधान हो गए थे। इनका रचा हुआ जगमान चरित नामक ग्रंथ मिलता है। परमानं दास (16वीं शती) के 835 पद परमानंद सागर में संकलित हैं। इनकी कविताएँ सरसता के कारण प्रसिद्ध हैं। कुंभनदास परमानंद दास के समकालीन थे। अत्यंत स्वाभिमानी भक्त थे इन्होंने फतेहपुर सीकरी के राजसम्मान से खिन्न होकर कहा था-

संतन को कहा सीकरी सो काम।

इनका कोई ग्रंथ नहीं मिलता, फुटकल पद ही मिलते हैं। चतुर्भुजदास कुंभनदास के पुत्र थे। इनकी तीन कृतियाँ मिलती हैं -द्वादश यश, भक्ति प्रताप और हितजु को मंगल। छीतस्वामी सोलहवीं शती के उत्तरा्द्ध में वर्तमान थे। इनका भी कोई ग्रंथ नहीं, केवल फुटकल पद ही उपलब्ध हैं। गोविंद स्वामी का रचना काल सन् 1543 और 1568 के बीच रहा होगा। कहा जाता है कि इनका गाना सुनने के लिए कभी-कभी तानसेन भी आते थे इनका भी कोई ग्रंथ नहीं मिलता।