हिंदी साहित्य का सरल इतिहास/भक्तिकाल/मीराबाई (1498-1546)
हिंदी की श्रेष्ठ कवयित्री मीरा का जन्म 1516 में हुआ था। इनके व्यक्तित्व के इर्द-गिर्द अनेक किंवदंतियाँ गढ़ ली गई हैं। ये बाबर से मोर्चा लेने वाले महाराणा और महाराणा कुमार भोजराज की पत्नी थीं। कहा जाता है कि साँगा की पुत्रवधू विवाह के कुछ वर्षों के बाद जब इनके पति का देहांत हो गया तो ये साधु-संतों के बीच भजन-कीर्तन करने लगीं। इस पर इनके परिवार के लोग, विशेषकर देवर राणा विक्रमादित्य बहुत रुष्ट हुए। उन्होंने इन्हें नाना प्रकार की यातनाएँ दीं। उन्होंने इन्हें विष तक दिया जिससे खिन्न होकर इन्होंने राजकुल छोड़ दिया। इनकी मृत्यु 1546 में द्वारिका में हुई।
प्राय: भक्त कवियों में यह बात पाई जाती है कि वे अपने इष्ट के पास अपने जीवन के अभावों को लेकर उनकी पृूर्ति के लिए जाते हैं। मीरा भक्त थीं। भक्त होना कोई बुरी बात नहीं, फिर राणा मीरा से क्यों रुष्ट थे? मीरा सवर्ण समाज की थीं और फिर राणा कुल की पुत्रवधू। इसलिए उनका सामान्य लोगों के बीच उठना-बैठना उस सामाजिक व्यवस्था को असह्य था जिसमें नारी पति के मरने पर या तो सती हो सकती थी या घर की चारदीवारी के भीतर वैधव्य झेलने के लिए अभिशप्त थी। मीरा को भक्त होने के लिए लोक-लाज छोड़नी पड़ी और यही बात राणा को खलती थी लोक-लाज तजने की बात मीरा की कविताओं में बार-बार आती है। मीरा ने अपने इष्ट देव गिरधर का जो रूप निर्मित किया है, वह अत्यंत मोहक है। मीरा के रूप-चित्रण की यह भी विशेषता है कि वह प्राय: गत्वर होता है। गिरधर नागर को प्रायः सचेष्ट अंकित किया जाता है, तो वे मुरली बजाते हैं या मंद-मंद मुस्काते हैं या मीरा की गली में प्रवेश करते हैं। मीरा नारी सुलभ लज्जा के कारण उनसे सीधे मुँह बात बहुत कम करती हैं। उनके सामने न रहने पर यानी वियोगावस्था में वे उनसे वार्तालाप करती हैं, अनुनय-विनय करती हैं। विरह मीरा के जीवन का भी सबसे बड़ा यथार्थ है और उनके काव्य का भी। मीरा के विरह की सचाई का लक्षण यह है कि वे विरह की पीड़ा के ताप से मुक्त होना चाहती हैं वेदना की सचाई का एक लक्षण यह है कि व्यक्ति उससे मुक्ति के लिए छटपटाए। मुक्ति संभव न हो तो भी मनुष्य मुक्तावस्था का स्वप्न देखता है। मीरा के यहाँ विरह-वेदना उनका यथार्थ है. तो कृष्ण से मिलन उनका स्वप्न। मीरा के जीवन के यथार्थ की प्रतिनिधि पंक्ति है-
अँसुवन जल सींचि-सीचि, प्रेम-बेलि बोई।
और उनके स्वप्न की प्रतिनिधि पंक्ति है।
सावन माँ उमग्यो म्हारो हियरा, भणक सुण्या हरि आवण री)
मीरा के काव्य में मध्यकालीन नारी का जीवन बिंबित है। मीरा भक्त कवि हैं। उनकी व्याकुलता एवं वेदना उनकी कविता में निश्छल अभिव्यक्ति पाती है। मीरा की कविता में रूप, रस और ध्वनि के प्रभावशाली बिंब हैं। वे अपनी कविता में निहित वेदना को श्रोताओं और पाठकों के अनुभव के माध्यम से संप्रेषित करती हैं- घायल की गति घायल जाने और न जानै कोई यही अभिप्राय है।
मीरा के काव्य पर निर्गुण-सगुण, दोनों साधनाओं का प्रभाव है। उन पर नाथ मत का भी प्रभाव दिखाई पड़ता है। उनके इष्ट देव तो कृष्ण ही हैं, किंतु रामकथा से संबंधित गेयपद भी उन्होंने लिखे हैं। मीरा की कविताएँ शिष्ट समाज के साथ-साथ राजस्थान के भीलों में भी बहुत लोकप्रिय हैं।