हिन्दी-संस्कृत अनुवाद/वार्तालाप
माँ सबका स्थान ले सकती है, पर माँ का स्थान कोई नही ले सकता।
सब्जी विक्रेता
सम्पादन- आपणिकः - आगच्छतु किम् आवश्यकम्।
- दुकानदार - आओ! क्या आवश्यक है?
- महिला - एतस्य कूष्माण्डस्य एककिलो परिमितस्य कतिरूप्यकाणि।
- महिला - यह कूष्माण्ड एक किलो कितने रुपये का है।
- आपणिकः - एतस्य किलोपरिमितस्य अष्टारुप्यकाणि।
- दुकानदार - यह एक किलो आठ रुपये का है।
- आपणिकः - कूष्माण्डः मास्तु वा।
- दुकानदार - कुम्हाड़ा महीं चाहिये?
- महिला - किलोद्वयमितं कूष्माण्डं एककिलोपरिमितं गृंजनकम्, अर्धकिलो महामरीचिकां च ददातु। वृत्ताकम् अपि एककिलोपरिमितम्। विण्डीनकानि नष्टानि खलु? उत्तमानि न आनीतवान् किम्?
- महिला - दो किलो कूष्माण्ड एक किलो गाजर आधा किलो मिर्चा दे दो। बैगन भी एक किलो। भिण्डिया नष्ट हो गईं। अच्छी नहीं आईं क्या?
- आपणिकः - उत्तमानि विण्डीकानि स्यूते एव सन्ति। आवश्यकम् किम्?
- दुकानदार - उत्तम भिण्डी झोले में ही है। आवश्यक है क्या?
- महिला - किलो मात्रपरिमितं ददातु। आहत्य कतिरूप्यकाणि इति वदतु। शीघ्रं गन्तत्यम्।
- महिला - किलो मात्र दे दो। जोड़कर कितने रूपये हुये बताओ। मुझे जल्दी जाना है।
- आपणिकः - आहत्य पञ्चसप्ततिरुप्यकाणि कारवेल्लं मास्तु वा?
- दुकानदार - जोड़कर पचहत्तर रूपये हुये। करेला नहीं चाहिये?
- महिला - कटु इत्यतः कारवेल्लं मम गृहे न खादन्ति। पर्याप्तम्। अस्मिन् स्यूते सर्वाणि वस्तूनि स्थापयतु। धनं स्वीकरोतु।
- महिला - कड़वा होता है अतः मेरे घर में करेला नहीं खाते हैं। पूरा हुआ। इस झोले में सभी वस्तुएँ दो। पैसे लो।
- आपणिक - परिवर्तः नास्ति किम्? अस्तु स्वीकरोतु।
- दुकानदार - अच्छा बदलना तो नहीं है? अच्छा स्वीकार करो।
संस्कृत कक्षा
सम्पादन- आचार्यः - एषः कः?
- आचार्य - यह कौन है?
- शिष्य - एषः कुम्भकारः।
- शिष्य - यह कुम्भकार है।
- आचार्यः - एषः किं करोति?
- आचार्य - यह क्या करता है?
- शिष्यः - सः घटं करोति।
- शिष्य - वह घट बनाता है।
- आचार्यः - सः कीदृशं घटं करोति?
- आचार्य - वह किस प्रकार घट बनाता है?
- शिष्यः - सः स्थूलं घटं करोति।
- शिष्य - वह मोटा घट बनाता है।
- आचार्यः - सः कया घटं करोति?
- आचार्य - वह किससे घट बनाता है?
- शिष्यः - सः मृतिकया घटं करोति।
- शिष्य - वह मिट्टी से घट बनाता है।
- आचार्यः - एतौ कौ?
- आचार्य - ये कौन?
- शिष्यः - एतौ तन्तुवाहौ।
- शिष्यः - ये दोनों जुलाहा हैं।
- आचार्यः - एतौ किं कुरूतः?
- आचार्य - ये दोनों क्या करते हैं?
- शिष्यः - एतौ वस्त्राणि वयतः।
- शिष्यः - ये दोनों वस्त्र बनाते हैं।
- आचार्यः - तौ कीदृशानि वस्त्राणि वयतः?
- आचार्य - ये दोनों किस प्रकार वस्त्र बनाते हैं?
- शिष्यः - तौ अमूल्यानि वस्त्राणि वयतः।
- शिष्य - ये अमूल्य वस्त्र बनाते हैं।
- आचार्यः - तव कानि वस्त्राणि प्रियाणि?
- आचार्य - तुम्हे कौन से वस्त्र प्रिय हैं?
- शिष्यः - कर्पासीयानि वस्त्राणि मम प्रियाणि। मम मित्रस्य और्ण वस्त्रं प्रियम्।
- शिष्य - सूती कपड़े मुझे प्रिय है। मेरे मित्र को ऊनी वस्त्र प्रिय है।
- आचार्यः - एते के?
- आचार्य - ये कौन हैं?
- शिष्यः - एते चित्रकाराः।
- शिष्य - ये चित्रकार है।
- आचार्यः - एते किं कुर्वन्ति?
- आचार्य - ये क्या करते हैं?
- शिष्यः - एते सुन्दराणि चित्राणि लिखन्ति।
- शिष्य - ये सुन्दर चित्र लिखते हैं।
- आचार्यः - ते के?
- आचार्य - वे कौन हैं?
- शिष्यः - ते हरिणाः।
- शिष्य - वे हिरण हैं।
- आचार्यः - ते किं कुर्वन्ति?
- आचार्य - वे क्या करते हैं?
- शिष्यः - ते हरितानि तृणानि खादन्ति।
- शिष्य - वे हरी घास खाते हैं।
- आचार्यः - त्वं कि करोषि?
- आचार्य - तुम क्या करते हो?
- शिष्यः - अहं साहित्यं पठामि।
- शिष्य - मैं साहित्य पढ़ता हूँ।
- आचार्यः - युवां किं कुरूथ?
- आचार्य - तुम दोनों क्या करते हो?
- शिष्यः - आवां गीतं गायावः।
- शिष्य - हम दोनों गीत गा रहे हैं।
- आचार्य - यूयम् अद्य पठितान् शब्दान् स्मप्त।
- आचार्य - तुम सब आज पढ़े हुये शब्द का स्मरण करो।
- शिष्याः - तथैव श्रीमन।
- शिष्यः - जैसा आप कहें।
गृहिणी का सम्भाषण-भाग-1
सम्पादन- मालती - शारदे! किं करोति भवती?
- मालती - शारदा! आप क्या कर रहे हो?
- शारदा - अहो मालति! आगच्छतु उपविशतु। कुशलिनी किम्?
- शारदा - अरे मालती! आओ बैठो। आप कुशल है?
- मालती - आम, सर्वं कुशलम्। भवती स्वकार्यं करोतु। अहं तत्रैव आगच्छामि।
- मालती - हां, सब ठीक है। आप अपना कार्य करो। मैं वहाँ आ रही हूँ।
- शारदा - मम पाकः न समाप्तः। अद्य भोजनार्थं बान्धवाः आगच्छन्ति। अतः अद्य विशेषपाकः।
- शारदा - मेरा भोजन पकाना समाप्त नहीं हुआ है। आज भोजन के लिए बन्धुजन आ रहे हैं। आज विशेष पाक है।
- मालती - तर्हि किं किं करोति?
- मालती - तो क्या-क्या करती हैं?
- शारदा - अलुकेन क्वथितं करोमि। कूष्माण्डेन तेमनं करोमि।
- शारदा - आलू से रस वाली सब्जी बनेगी। कुम्भडे से कढ़ी बनेगी।
- मालती - बहुमरीचिका सन्ति खलु? मरीचिकया किं करोति?
- मालती - मिर्चियां है क्या? मिर्चियों से क्या करोगी?
- शारदा - लघु मरीचिका कटुः महामरीचिकमा भर्जं करोमि।
- शारदा - मिर्ची तीखी है। मिर्चे (बड़ी मिर्च) से छोंक लगा रही हूँ।
- मालती - कैः व्यंजनं करोति?
- मालती - किसकी सब्जी बना रही हो?
- शारदा - विण्डीनकैः व्यंजनं करोमि। उर्वारूकेण किं करोमि। इति चिन्तयामि।
- शारदा - भिण्डी की सब्जी बनाऊँगी, ककड़ी का क्या करूँ, ऐसा सोच रही हूँ।
- मालती - उर्वारूकं गृंजनकं च योजयित्वा कोषम्भरीं करोतु भोः। बहु स्वादिष्टं भवति।
- मालती - अरे ककड़ी गाजर को मिलाकर सलाद बना लो। बहुत स्वादिष्ट होता है।
- शारदा - तथैव करोमि। पायसमपि करोमि। पर्पटान् अपि भर्जयामि मम पतिः बहु इच्छति।
- शारदा - वैसा ही करूँगी। खीर भी बनाऊँगी। पापड़ भी तलूंगी मेरे पति बहुत पंसद करते हैं।
- मालती - अहमपि किंचित् साहा ̧यं करोमि।
- मालती - मैं भी कोई सहायता करती हूँ।
- शारदा - मास्तु भो। भवती उपविशतु मया सह सम्भाषणं करोतु। अहं सर्वं करोमि।
- शारदा - रहने दो, आप बैठो मेरे साथ बात करो, मैं सबकुछ करती हूँ।
- मालती - तर्हि अहं सर्वेषां रुचिं पश्यामि। सर्वं भवती करोतु।
- मालती - तो मैं सभी की पसन्द देखती हूँ। आप सबकुछ करो।
गृहिणी का सम्भाषण-भाग-2
सम्पादन- शीला - हरिः ओम्। गीता अस्ति किं गृहे।
- शीला - हरि ओम। गीता है क्या घर में ।
- गीता - अहो शीले। किं भोः दर्शनमेव दुर्लभम्? कुत्र गतवती आसीत्।
- गीता - अरे शीला। अरे तुम्हारा तो दर्शन ही दुर्लभ हो गया कहां गयी थीं?
- शीला - कुत्रापि न गता अहम्। गृहे एव आसम्। पंचदशदिनेभ्यः बहूनि कार्याणि। भवती अपि न आगतवती खलु?
- शीला - कहीं नहीं गयी थी मैं। घर में ही थी। पन्द्रह दिन से बहुत कार्य थे। आप भी तो नहीं आयी।
- शीला - अहं मम भगिनी परिवारः मम पुत्री च तिरुपतिं गतवन्तः आस्म। तत्र अस्माकं गृहस्य पूजा आसीत्। तत्र तु जनानां सम्मर्दः एवं आसीत्। तत्सर्वं समाप्य ह्यः एव आगताः।
- गीता - मैं मेरी बहन का परिवार और मेरी पुत्री तिरुपति गये थे।
- शीला - मम गृहे पुरातनानि कानिचित् भग्नानि नष्टानि च वस्तूनि आसन्। तानि विक्रीय अन्यानि नूतनानि वस्तूनि आनीतवन्तः स्मः।
- शीला - मेरे घर में पुराने कुछ टूटे-फूटे सामान थे, उन्हें बेच कर अन्य नए सामान ले आये।
- गीता - तद्दिने आपणगमनसमये मार्गे भवत्याः पुत्रः मिलितवान् आसीत्। सः उक्तवान् माम् मम गृहे बहूनि कार्याणि इति।
- गीता - कुछ दिन पहले दुकान जाते समय रास्ते में आपका पुत्र मिला था। वह बोला कि मेरे घर में बहुत कार्य हैं।
- शीला - स्वीकरोतु प्रसादम्। सुशीला अपि नास्ति नगरे इति मन्ये।
- शीला - प्रसाद स्वीकार करे , ं मुझे लगता है। सुशीला भी नगर में नहीं है।
- गीता - सा तु नगरे एव अस्ति। सा मम गृहम् आगता आसीत्।
- गीता - वह नगर में ही है। कल ही मेरे घर आई थी।
- गीता - एवम्। आगच्छतु सा सम्यक् तर्जयिष्यामि ताम्।
- गीता - अच्छा। आने दो, अच्छे से उसे डाटूंगी उसको।
- गीता - अहम् आगच्छामि। अद्य मम गृहं प्रति माता आगच्छति। सा षड्दिनानि तत्रैव वासं करिष्यति। अतः सप्ताहं यावत् नागच्छामि।
- गीता - मैं आती हूँ, आज मेरे घर में माँ आ रही है। वह छह दिन तक यहीं रहेगीं। इसी लिए एक सप्ताह मैं नहीं आऊँगी।
- शीला - तिष्ठतु भोः। सर्वदा भवत्याः त्वरा। किंचित् तिष्ठतु।
- शीला - रूको, हमेशा तुम्हे जल्दी रहती है, थोड़ा रूको।
- गीता - नैव, भवती अन्यथा मा चिन्तयतु। आगच्छामि पुनः।
- गीता - नहीं आप अन्यथा चिन्ता मत करो, मैं फिर आती हूँ।
- शीला - अस्तु, तर्हि पुनर्मिलावः।
- शीला - ठीक है। फिर मिलेगें।
माता-पुत्र का संवाद
सम्पादन- माता - गोविन्द! किं करोषि त्वम्?
- माता - गोविन्द तुम क्या कर रहे हो।
- गोविन्दः - पाठं पठामि अम्ब।
- गोविन्द - पाठ पठ रहा हूँ माँ।
- माता - वत्स! आपणं गत्वा आगच्छसि किम्?
- माता - पुत्र! दुकान जाकर आओगे क्या?
- गोविन्दः - अम्ब! शीघ्रं लिखित्वा गच्छामि। ?
- गोविन्द - माँ! शीघ्र लिख कर जाता हूँ। वहाँ से क्या लाना है?
- माता - वत्स! आपणं गत्वा लवणं, शर्करां,गुध्, द च आनय।
- माता - पुत्र! दुकान जाकर नमक, शक्कर, चालव, गुड़ और दाल ले आओ।
- गोविन्दः - भगिनीं वदतु अम्ब। सा किं करोति?
- गोविन्द - बहन को बोल दो माँ। वह क्या कर रही है।
- माता - सा अवकरं क्षिप्त्वा पात्रं प्रक्षालयति। द्राणेया जलं पूरयति। भूमिं वस्त्रेण भार्जयति। पुष्पाणि आनीय मालां करोति एवं तस्याः बहूनि कार्याणि सन्ति भोः।
- माता - वह कचड़े को फेंक कर बर्तन धो रही है। बाल्टी में जल भर रही है। जमीन (फर्श) में पोंछा लगायेगी, पुष्प लाकर माला बनायेगी उसे बहुत कार्य करना है।
- गोविन्दः - ममापि पठनं बहु अस्ति।
- गोविन्द - मुझे भी बहुत पढ़ना है।
- माता - दशनिमेषानन्तरे आपणं गत्वा आगच्छ। अनन्तरं पाठान पठ।
- माता - दश मिनट के अन्दर दुकान जाकर आओ। उसके बाद पाठ पढ़ो।
- गोविन्दः - तर्हि शीघ्रं धनं स्यूतं च ददातु अम्ब।
- गोविन्द - जल्दी से पैसा और झोला दे दो माँ।
- माता - आगमनसमये द्वौ कूर्चौ, अग्निपेटिके, समार्जन्यौ च आनयं
- माता - आते समय दो ब्रश, माचिस और झाडू ले आना।
- गोविन्दः - द्वौ स्यूतौ ददातु, घनम् अधिकं ददातु, चाकलेहान् अपि आनयामि?
- गोविन्द - दो झोला दे दो, पैसा अधिक दे दो, मैं चाकलेट भी ले आऊँगा।
- माता - अतः एव त्वं शीघ्रं गन्तुम् उद्युघः। स्वीकुरू।
- माता - इसलिए तुम जाने के लिए तैयार है। इसे स्वीकार करो।
मित्रों का घर आगमन
सम्पादन- पुत्री - अम्ब! मम मित्राणि आगतानि सन्ति, परिचयं कारयानि आगच्छतु।
- पुत्री - माँ मेरे मित्र आए हैं, परिचय कराता हूँ, आओ।
- माता - सर्वेभ्यः नमस्कारः।
- माता - सभी को नमस्कार।
- पुत्री - एषः रमेशः। एतस्य पिता वित्तकोशे कर्म करोति।
- पुत्री - यह रमेश है, इसके पिता बैंक में काम करते हैं।
- माता - अत्र स्नेहा का?
- माता - यहा स्नेहा कौन?
- पुत्री - सा नागतवती। तस्याः अम्बायाः अस्वास्थ्यम् अस्ति एषा दिव्या अस्माकं गृहस्य समीपे एक वसति।
- पुत्री - वह नहीं आई। उसकी माँ अस्वस्थ है। यह हमारे घर के पास रहती है।
- माता - एतस्या अम्बाम् अहं जानामि। सा प्रतिदिनं राघवेन्द्रमन्दिरम् आगच्छति।
- माता - इसकी माँ को मैं जानती हूँ। वह प्रतिदिन राघवेन्द्र मन्दिर आती है।
- पुत्री - एषः आनन्दः। सर्वदा सदा आनन्दयति। कक्ष्यायाम् अपि सर्वत्र प्रथमं स्थानं प्राप्नोति।
- पुत्री - यह आनन्द है। हमेशा खुश रहता है। कक्षा में भी हमेशा प्रथम स्थान प्राप्त करता है।
- माता - तं किरणं जानामि। किरण! कथं मौनेन स्थितवान् भवान्?
- माता - किरण को जानती हूँ, किरण! क्यों आप चुप बैठे हो?
- किरणः - मम किंचित् शिरोवेदना।
- किरण - मेरे सिर में थोड़ा दर्द है।
- पुत्री - एषा मंगला, एषा राधा, एषा रोहिणी, एषा कविता, सा ज्योतिः।
- पुत्री - यह मंगला है, यह राधा है, यह रोहिणी है, यह कविता है, वह ज्योति है।
- माता - सः कः भोः? अन्ते उपविष्टवान्।
- माता - वह कौन है अन्त में बैठा है?
- पुत्री - तस्य परिचयं वदामि, कुतः त्वरा? सः एव अस्माकं मुख्यशिक्षकस्य पुत्रः गोपालः, अस्माकं गणप्रमुखः। तस्य गुणकीर्तनं कर्तुम् एकं दिनं न पर्याप्तम्।
- पुत्री - उसका परिचय बताती हूँ, जल्दी क्या है? वह हमारे मुख्य शिक्षक का पुत्र गोपाल है। हमारा गणप्रमुख (कैप्टन) है, उसकी बड़ाई करने के लिए एक दिन पर्याप्त नहीं है।
- माता - अलम् अतिविस्तरेण।
- माता - बस ठीक है।
- पुत्री - अम्बा! भवती केवलं वचनेन एव मम मित्राणि प्रेषयति उत किमपि खादितुं ददाति?
- पुत्री - माँ आप केवल बोल कर ही मेरे मित्रों के भेज दोगी या कुछ खाने के लिए भी दोगी।
- माता - अस्तु भवती अस्माकं गृहं दर्शयतु, तावता अहं खाद्यं सज्जी करिष्यामि।
- माता - ठीक है, आप हमारा घर दिखाओ, तब तक मैं नाश्ता तैयार करती हूँ।
- पुत्री - मित्राणि! एषा मम माता अन्नपूर्णा। साक्षात् अन्न पूर्णेश्वरी। आगच्छन्तु, गृहं सर्व दर्शयामि। एषः मम अध्ययनप्रकोष्ठः एषा पाकशाला दूरतः एव पश्यन्तु, यतः अन्तः प्रवेशः अनुमतिं विना नास्ति। एतत् प्रार्थनामन्दिरम्। वयं सर्वे प्रातः सायं च मिलित्वां प्रार्थनां कुर्मः। एषः विशालः सभामण्डपः। अत्रैव विशेषदिनेषु कार्यक्रमः भवति। एवम् अस्माकं लघु गृहं, सुव्यवस्थितगृहम्। आगच्छतु उपाहारं स्वीकुर्म:।
- पुत्री - मित्रों यह मेरी माता साक्षात् अन्नपूर्णा है। हाँ अन्नपूर्णेश्वरी। आओ पूरा घर दिखाती हूँ, यह मेरा पढ़ाई का कमरा है। यह रसोई है दूर से ही देखो, क्योंकि अन्दर बिना अनुमति के प्रवेश नहीं है। यह पूजन कक्ष है। हम सब मिलकर सुबह शाम प्रार्थना करते है, यह विशाल सभामण्डप है। यहाँ विशेष दिनों में कार्यक्रम होता है, इस प्रकार यह हमारा छोटा सा व्यवस्थित घर है, आओ स्वल्पाहार ग्रहण करते है।
अध्यापक एवं छात्रों का संवाद
सम्पादन- प्रमोदः - नमस्ते श्रीकान्त। आगच्छतु उपविशतु।
- प्रमोद - श्रीकान्त नमस्कार। आओ बैठो।
- श्रीकान्तः - संस्कृतपाठः प्रचलति किम्? एता किं कुर्वन्ति।
- श्रीकान्त - संस्कृत पाठ चल रहा है क्या? ये क्या कर रही हैं?
- प्रमोदः - एताः चिं दृष्टवा प्रश्नान् लिखन्ति। ते अर्धकथां पूर्णां कुर्वन्ति।
- प्रमोदः - ये चित्र देखकर प्रश्न लिख रही है, वे आधी कथा को पूरा कर रही है।
- श्रीकान्तः - एतौ कौ?
- श्रीकान्त - ये दोनों कौन हैं?
- प्रमोदः - एतौ मम साहय्यं कुरूतः। एते बालिके सुन्दरतया लिखतः।
- प्रमोद - ये दोनों मेरी सहायता कर रही हैं, ये दोनों अच्छा लिखती है।
- श्रीकान्तः - भो बालकाः, सुन्दरं लिखन्तु। त्वरा मास्तु।
- श्रीकान्त - बच्चों अच्छा लिखो, जल्दी नहीं है।
- प्रमोदः - ते चित्रं दृष्टवा सम्भाषणं लिखतः। तौ एकां कथां लिखतः। ताः बालिकाः पद बन्धान् रचयन्ति। एते बालकाः प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखन्ति।
- प्रमोद - वे दोनों चित्र को देखकर सम्भाषण लिख रही है। वे दोनों एक कहानी लिख रहे हैं, वे बालिकाएँ निबन्ध लिख रही है, ये बालक प्रश्नों के उत्तर लिख रहे हैं।
- श्रीकान्तः - अन्ते उपविष्टवन्तौ तौ किं कुरूतः? युवां कि कुरूथः?
- श्रीकान्त - अन्तिम में बैठे हुए वे दोनों क्या कर रहे हैं, तुम दोनों क्या कर रहे हो?
- छात्रौ - आवां चित्रे वर्णं योजयावः।
- छात्र - हम दोनों चित्रों में रंग भर रहे हैं।
- प्रमोद - भोः छायाः। यूयं शीघ्रं समापयथ। इदानीं क्रीडा अस्ति।
- प्रमोद - बच्चों तुम जल्दी कार्य समाप्त करो। इस समय खेल होने वाला है।
- छात्रा - वयं शीघ्रं शीघ्रं लिखामः आचार्यसे?
- छात्र - आचार्यजी, हम शीघ्र लिख रहे हैं।
परिवारजनों का संवाद
सम्पादन- माता - राधे! पुनीत! शीघ्रम् उत्तिष्ठताम्।
- माता - राधा! पुनीत! जल्दी उठो।
- राधा - अम्ब! किमर्थं शीघ्रम्? अद्य रविवासरः खलु?
- राधा - माँ जल्दी क्या है? आज तो रविवार है।
- माता - शीघ्रं दन्तधावनं कुरुताम्। स्नानमपि समापयताम्। अद्य जनकस्य जन्मदिनम्।
- माता - जल्दी मंजन करो, स्नान भी करो, आज पिता का जन्मदिन है।
- पुनीतः - अम्ब! कः उपाहारः?
- पुनीत - माँ क्या नाश्ता है?
- माता - अद्य उपाहारः अनन्तरम् प्रथमं सर्वे देवालयं गच्छामः।
- माता - स्वल्पाहार बाद में, पहले सभी हम मन्दिर जाएंगे।
- पुनीतः - अम्ब उष्णं जलं सज्जीकरोतु। अहं स्नानं करोमि।
- पुनीत - माँ गरम पानी तैयार करो, मैं नहाती हूँ।
- पिता - नलिनि! क्षीरार्क्षं पात्रम् आनयतु। शीघ्रं काफीं करोतु।
- पिता - नलिनी, दूध के लिए बर्तन ले आओ, जल्दी काफी बनाओ।
- माता - भो! वार्तापत्रिकाम् अनन्तरं पठतु। शीघ्रं सिद्धः भवतु।
- माता - अरे समाचार पेपर बाद में पढ़ना, जल्दी तैयार हो।
- राधा - अम्ब! महती बुभुक्षा। क्षीरं ददातु।
- राधा - माँ, बहुत भूख लगी है, दूध दो।
- माता - वत्से! क्षीरं स्वीकुरु। तदनन्तरं नूतनवस्त्रं धारय।
- माता - बेटी! दूध लो, बाद में नए कपड़े पहनो।
- पुनीतः - अम्ब! ममापि नूतनवस्त्रं ददातु।
- पुनीत - माँ, मेरे भी नए कपड़े दो।
- पिता - नालिनि! पूजार्थं सर्वं स्वीकरोतु। गच्छामः वा?
- पिता - नलिनी! पूजा के लिए तैयारी करो, हम चलते हैं।
- माता - पुनीत! राधे! द्वौ अपि देवं नमस्कुरुताम्। भोः! आगच्छतु! आवां तत्र गच्छाव।
- माता - पुनीत! राधा! दोनों भी देवता को प्रणाम करो। आओ हम दोनों वहाँ चले।
- राधा - तात! घण्टा उपरि अस्ति। अहं कथं वादयामि?
- राधा - पिताजी! घण्टा ऊपर है, मैं कैसे बजाऊँ।
- पुनीतः - किंचित् कूर्दनं कुरु।
- पुनीत - थोड़ा कूदो।
- माता - पुनीत! त्वं चेष्टां मा कुरु। सा रोदिति।
- माता - पुनीतः! तुम चेष्टा मत करो।
- पिता - भोः अर्चक! एकाम् अर्चनां करोतु।
- पिता - पुजारी जी! पूजा कीजिए हमारे लिए।
- माता - भवान् एव प्रसादं स्वीकरोतु।
- माता - आप ही प्रसाद स्वीकार करें।
- पिता - पूजा समाप्ता। आगच्छन्तु, गच्छामः।
- पिता - पूजा समाप्त हो गई आओ जाते हैं।
फोन से मित्र का संवाद
सम्पादन- गिरीशः - हरिः ओम्।
- गिरीश - हरि ओम् (हैलो)
- अनन्तः - हरि ओम्। कः वदति?
- अनन्त - हरि ओम्। कौन बोल रहा है?
- गिरीशः - अहं गिरीशः वदामि। मित्र! गृहे कोऽपि नास्ति किम्?
- गिरीश - मैं गिरीश बोल रहा हूँ, मित्र घर में कोई नहीं है क्या?
- अनन्तः - सर्वे सन्ति। पिता जपति। अम्बा पूजयति। अनुजः खादति। अग्रजा मालां करोति। पितामहः दूरदर्शनं पश्यति। पितामही स्नानं करोति।
- अनन्त - सभी है पिता जप कर रहे है, माँ पूजा कर रही है, छोटा भाई खा रहा है, बड़ी बहन माला बना रही है, पितामह (दादाजी) टी.वी. देख रहे हैं, दादी स्नान कर रही हैं।
- गिरीशः - त्वं किं करोषि? क्रीडसि वा?
- गिरीश - तुम क्या कर रहे हो? खेल रहे हो क्या?
- अनन्तः - अहं पठामि। उत्तरं लिखामि। तव अनुजौ किं कुरुतः?
- अनन्त - मैं पढ़ रहा हूँ, उत्तर लिख रहा हूँ, तुम्हारे दोनों भाई क्या कर रहे हैं?
- गिरीशः - मम अनुजौ शालां गच्छतः। अहं पिता च विद्यालयं गच्छावः।
- गिरीश - मेरे दोनों भाई स्कूल जा रहे है। मैं और पिताजी विद्यालय जा रहे हैं।
- अनन्तः - अद्य त्वमपि विद्यालयं न गच्छ? अहमपि न गच्छामि। वयं सर्वे अद्य मैसूरुनगरं गच्छामः। मम बान्धवाः। अपि आगच्दन्ति।
- अनन्त - आज तुम भी विद्यालय न जाओ मैं भी नहीं जा रहा हूँ, हम सब आज मैसूर जा रहे है। मेरे परिवार के लोग भी आ रहे हैं।
- गिरीशः - भवतः पिता कार्यालयः न गच्छति किम्?
- गिरीश - आपके पिता कार्यालय नहीं जाते क्या?
- अनन्तः - अद्य मम पिता विरामं स्वीकरोति।
- अनन्त - आज मेरे पिता अवकाश ले लिया है।
- गिरीशः - अनन्तः नहि भोः अहम् आगन्तुं न शक्नोमि। भवान् गच्छतु।
- गिरीश - अनन्त! मैं नहीं आ सकता, आप जाओ।
- अनन्तः - पुनः मिलामः, धन्यवादः।
- अनन्त - फिर मिलते है, धन्यवाद।
अधिकारी का संवाद
सम्पादन- अधिकारी - सुधाकर! शीघ्रं लिपिकारम् आववयतु।
- अधिकारी - सुधाकर! शीर्घ लिपिक को बुलाओ।
- सुधाकरः - अद्य लिपिकारः नागतवान्। ‘सः हरिद्वारं गतवान्’ इति।
- सुधाकर - आज लिपिक नहीं आया। वह हरिद्वार गया है।
- अधिकारी - ह्य: वित्तकोषतः धनम् आनीतवान् किम?
- अधिकारी - कल बैंक से पैसा लाया क्या?
- सुधाकरः - आम्। ह्य: अहं रमेशः च चित्तकोषं गतवन्तौ। धनम् आनीतावन्तौ अपि।
- सुधाकर - हां! कल मैं और रमेश बैंक गये थे। धन ले आये।
- अधिकारी - वयः सर्वे किं किं कार्यं कृववन्तः?
- अधिकारी - कल सभी ने क्या-क्या काम किया?
- सुधाकरः - वयः रामगोपालः गणनां समापितवान् ‘गीता पत्राणि लिखितवती’ गौरीशः कार्याणि परिशीलितवान्। वयः प्रीतिः नागतवती। मुकुन्दः स्वच्छीकृतवान्।
- सुधाकर - कल रामगोपाल अकाउंट पूरा किया। गीता ने पत्र लिखा। गौरीश काम को देखा। कल प्रीति नहीं आई। मुकुन्द ने सफाई की।
- अधिकारी - प्रीतिः कुत्र गतवती इति किं कोऽपि जानाति?
- अधिकारी - प्रीति कहां गई, कोई जानता है?
- सुधाकरः - प्रीतिः तीव्रम् अस्वस्था इति शृणुम्ः।
- सुधाकर - प्रीति अस्वस्थ है ऐसा सुना है।
- अधिकारी - सा औषधं स्वीकृतवती स्यात् खलु?
- अधिकारी - उसने दवाई ली क्या?
- सुधाकरः - वैद्यः सूच्यौषधं दत्तवान् इति श्रुतम्। वयः निवेदिता-विद्यालयस्य शिक्षिकाः आगतवत्यः। भवान् न आसीत्। अतः एकं पत्रं दत्तवत्यः।
- सुधाकर - वैद्य ने इजेक्शन और दवाई दी है ऐसा सुना है। कल निवेदिता-विद्यालय की शिक्षिकाएँ आई थीं। आप नहीं थे इसलिए उन लोगों ने एक पत्र दिया।
- अधिकारी - प्राचार्यः मुख्याध्यापिका च किम् आगतवत्यौ?
- अधिकारी - क्या प्राचार्य और मुख्याध्यापिका आए थे?
- सुधाकरः - नैव, केवलं प्राचार्यः आगतवान्। ‘भवान् दूरवाणीं करोतु’ इति उक्तवती।
- सुधाकर - नहीं, केवल प्राचार्य आए थे। आप दूरवाणी करेेंगे, ऐसा कहे थे।
- अधिकारी - भवतु, भवान् गच्छतु।
- अधिकारी - अच्छा, ठीक है आप जाओ।
पिता-पुत्र का संवाद
सम्पादन- पिता - आगच्छतु। यात्रा कथम् आसीत्?
- पिता - आओ। यात्रा कैसी थी?
- शिवरामः - सम्यक् आसीत् तात।
- शिवराम - ठीक थी पिताजी।
- पिता - त्वं कदा मुम्बईं प्राप्तवान्?
- पिता - तुम कब मुम्बई पहुँचे?
- शिवरामः - अहं सोमवासरे प्रातः 7 वादने एव प्राप्तवान्
- शिवराम - मैं सोमवार सुबह 7 बजे ही पहुँचा।
- पिता - अनन्तरं त्वं किं किं कृतवान्?
- पिता - फिर तुमने क्याक्याdha-क्या किया?
- शिवरामः - ततः मित्रस्य गृहं गतवान्। तत्रैव स्नानमपि कृतवान्। उपाहारं खादितवान्। ततः मुम्बादेवीमन्दिरं गतवान्।
- शिवराम - वहाँ से मित्र के घर गया। वहीं स्नान किया। स्वल्पाहार किया। फिर मुम्बादेवी के मन्दिर गया।
- पिता - किं त्वं एकः एव गतवान्?
- पिता - क्या तुम अकेले ही गये?
- शिवरामः - नैव, मम मित्रम् अहं च गतवन्तौ। कार्यक्रमः न आरब्धः आसीत्। समये आवां प्राप्तवन्तौ।
- शिवराम - नहीं, मेरा मित्र और मैं दोनों गये। कार्यक्रम शुरू नहीं हुआ था। सही समय में हम दोनों पहुँचे।
- पिता - तदनन्तरम् ...?
- पिता - फिर .....?
- शिवरामः - कार्यक्रमः दशवादने आरब्धः। श्यामला प्रार्थनां गीतवती। स्वागतान्तरं मम भाषणम् आसीत्। अहं भाषणं कृतवान्। अध्यक्षः मां श्लाघितवान्। जनाः उच्चैः हर्षोद्गारं कृतवन्तः। करताडनमपि कृतवन्तः। अधिकारी आगामिवर्ष अपि सम्मेलनं प्रति आगमनाय प्रार्थितवान्। 11.30 वादने कार्यक्रमः समाप्तः। अन्ते महिलाः ‘वन्दे मातरं’ गीतवत्यः।
- शिवराम - कार्यक्रम 10 बजे से शुरू हुआ। श्यामला प्रार्थना की। स्वागत के बाद मेरा भाषण हुआ। मैंने भाषण दिया। अध्यक्ष ने मेरी प्रशंसा की। लोगों ने जोर से हर्ष व्यक्त किया। तालियाँ बजी। अधिकारी ने आगामी वर्ष के सम्मेलन में 125आगमन के लिए प्रार्थना की। 11.30 बजे कार्यक्रम समाप्त हुआ। अन्त में महिलाओं ने ‘वन्दे मातरम्’ गीत प्रस्तुत किया।
- पिता - पुनः मित्रस्य गृहं किं न त्वं गतवान्?
- पिता - पुनः मित्र के घर नहीं गये।
- शिवरामः - मुम्बादेवीमन्दिरतः तस्य गृहं बहु दूरे अस्ति। अतः अहं साक्षात् याननिस्थानकं गतवान्। तत्र मम वयस्यौ मिलितवन्तौ। बहुकालं वयं सम्भाषणं कृतवन्तः ततः मध्यावने 3 वादने अहं प्रस्थितवान्।
- शिवराम - मुम्बा देवी के मन्दिर से उसका घर दूर है। इसलिए मैं सीधे बस-स्टेंड चला गया। वहाँ मेरे दो मित्र मिले। बहुत देर तक हम सब बात करते रहे। फिर दोपहर तीन बजे मैं निकल गया।
- पिता - अस्तु! स्नानं करु! भोजनं करोतु! कंचित्कालं विश्रामं स्वीकरोतु।
- पिता - अच्छा! अब स्नान करो। भोजन करो और थोड़ी देर विश्राम करो।
- शिवरामः - अस्तु! तात।
- शिवराम - ठीक है पिताजी।
कक्षा में छात्रों का संवाद
सम्पादन- प्रदीपः - अरुण! भवतः गणितपुस्तकं ददाति किम्?
- प्रदीप - अरुण! तुम्हारी गणित की पुस्तक मिलेगी क्या?
- अरुणः - भवान् किमर्थं विद्यालयं नागतवान्?
- अरुण - आप विद्यालय क्यों नहीं आये?
- प्रदीपः - मम अतीव शिरोव दे ना आसीत्। अतः शयनं कृतवान्।
- प्रदीप - मेरे सिर में दर्द था। इसलिए सोता रहा।
- अरुणः - इतिहासपुस्तकं भवान् इतोऽपि न दत्तवान्। इदानीं गणितपुस्तकमपि नयति। कदा प्रतिददाति?
- अरुण - इतिहास की पुस्तक आपने अभी तक नहीं दी। इस समय आप गणित की पुस्तक भी ले जा रहे हो।
- प्रदीपः - श्वः सायंकाले भवतः पुस्तकं दास्यामि।
- प्रदीप - कल शाम को आपकी पुस्तक दूंगा।
- ज्योतिः - प्रदीप! भवान् असत्यं वदति किम्? श्वः भवान् बन्धुगृहं गमिष्यति। परश्वः आगमिष्यति। कदा गणितपुस्तकं दास्यति?
- ज्योति - आप असत्य बोल रहे हैं क्या? कल आप भाई के यहाँ जाएंगे , परसों आएंगे, तो कब गणित की पुस्तक देगें?
- प्रदीपः - अहं विस्मृतवान्। परश्वः निश्चयेन पुस्तकं दास्यामि।
- प्रदीप - मैं भूल गया। परसो निश्चित पुस्तक दे दूगां।
- कृष्ण - ज्योति! अद्य मम गृहम् आगच्छतु। सम्यक् पठिष्यावः।
- कृष्ण - ज्योति! मेरे घर आओ। अच्छे से पढ़ेंगे ।
- अरुणः - भवान् ‘पठिष्यति, लेखिष्यति’ इति वदति केवलम्।
- अरुण - आप 'पढ़ेगे , लिखेंगे’ केवल इतना बोलते हैं।
- कृष्णा - माला-शिक्षिका श्वः संस्कृतपाठं लेखिष्यति। द्वितीयपाठस्य प्रश्नान् प्रक्ष्यति। रिक्तस्थानानि पूरयन्तु इति दास्यति। अतः बहु पठिष्यामि।
- कृष्णा - माला-शिक्षिका कल संस्कृत का पाठ लिखाएंगी। द्वितीय पाठ का प्रश्न पूछेंगी। खाली स्थान पूरा करो ऐसा प्रश्न देगीं। इसलिए बहुत पढूंगा।
- अरुणः - भवन्तः मम गृहम् आगच्छन्तु। सर्वे मिलित्वा पठिष्यामः।
- अरुण - आप सभी मेरे घर आओ। हम मिलकर पढ़ेंगे।
- ज्योतिः - भवन्तौ द्वौ अपि मिलतः चेत् न पठिष्यतः, युद्धं करिष्यतः अतः स्वगृहे एव पठन्तु।
- ज्योति - आप दोनों मिल गये तो नहीं पढ़ोगे, लड़ोगे। इसीलिए अपने घर में ही पढ़ो।
वार्षिकोत्सव
सम्पादन- पुत्री - अम्ब! महती बुभुक्षा अस्ति।
- माता - सुधे! किमर्थं त्वरा?
- पुत्री - मम विद्यालये वार्षिकोत्सवः अस्ति। तत्र नाटकं, गीतं, नृत्यं, भाषणम् इत्यादि कार्यक्रमाः सन्ति।
- माता - त्वं वार्षिकोत्सवे किं करोषि?
- पुत्री - वृन्दगाने अहम् अस्मि। मम सखी नृत्ये अस्ति। बालकाः केवलं नाटके सन्ति। वयं बालिकाः पुनः रज्जुक्रीडायाम् अपि स्मः। द्वौ बालकौ विनोदनाटके स्तः।
- माता - निपुणा खलु मम पुत्री।
- सखी - सुधे! कुत्र असि?
- पुत्री - अत्र अस्मि। किम् वदतु?
- सखी - त्वं अद्य कदा विद्यालयं गच्छसि?
- पुत्री - किमर्थम्? त्वम् अपि आगच्छसि वा?
- माता - युवां मिलित्वा कस्मिन्नपि कार्यक्रमे न स्थः वा?
- पुत्री - आवां द्वे अपि वृन्दगाने रज्जुक्रीडायाम् च स्वः।
- पिता - पुत्रि! किं करोषि मिलित्वा?
- माता - अद्य पुत्र्याः विद्यालये वार्षिकोत्सवः अस्ति। वयं शीघ्रं गत्वा पुरतः उपविशामः।
मित्र का संवाद
सम्पादन- शिशिरः - अखिल! कोऽपि नास्ति किं गृहे?
- शिशिर - अखिल! घर में कोई नहीं है क्या?
- अखिलः - अहम् एकः एव अस्मि। पिता अम्बया सह संगीतकार्यक्रमं गतवान्। अग्रजा अरुणया सह चित्रमन्दिरं गतवती। अनुजः बालैः सह क्रीडति।
- अखिल - मैं अकेला ही हूँ। पिता जी माँ के साथ संगीत कार्यक्रम में गए हैं। बड़ी बहन अरुणा के साथ टॉकीज गई है। छोटा भाई बच्चों के साथ खेल रहा है।
- शिशिरः - भवन्तं विना सर्वेऽपि गतवन्तः भवान् मया सह आगच्छतु। मम माता आपणं गत्वा पुष्पाणि आनयतु इति उक्तवती। अहं स्यूतेन विना एव आगतवान्।
- शिशिर - तुम्हारे बिना सभी गए है, आप मेरे साथ आओ। मेरी माता बोली है कि बाजार जाकर पुष्प ले आओ। मैं झोले बिना ही आ गया हूँ।
- अखिलः - चिन्ता मास्तु। अहं स्यूतं ददामि। धनेन विना आगतम् वा इति पश्यतु।
- अखिल - चिन्ता की बात नहीं है। मैं झोला देता हूँ। पैसे के बिना तो नहीं आए? देखो।
- शिशिरः - तिष्ठतु। प्रथमं धनमस्ति वा इति पश्यामि। किंचित् जलं ददातु भोः।
- शिशिर - ठहरो, पहले पैसा है कि नहीं देखता हूँ, थोड़ा पानी दो मित्र।
- अखिलः - स्वीकरोतु, तिष्ठतु काफीं करोमि। भवान् शर्करया विना काफीं पिबति उत शर्करया सह?
- अखिल - ये लो पानी। रूको कॉफी बनाता हूँ। आप शक्कर के बिना कॉफी पीते हो या शक्कर के साथ?
- शिशिरः - अहं शर्करया सह एव पिबामि। किन्तु मास्तु, इदानीं भवतः किमर्थं क्लेशः?
- शिशिर - मैं शक्कर के साथ ही पीता हूँ। कोई बात नहीं इस समय आपको परेशानी होगी?
- अखिलः - क्लेश नास्ति। ममापि काफीसमयः एषः तिष्ठतु, मया सह काफीं पिबतु।
- अखिल - परेशानी नहीं होगी, मेरा भी यह कॉफी का समय है, रूको मेरे साथ कॉफी पियो।