हिन्दी/इतिहास
हिन्दी का विकास मुख्य रूप से विदेशी आक्रमणों के मध्य हुआ है। वर्ष 1947 से पहले तक हिन्दी भाषा का विकास केवल बोली के रूप में ही हुआ। कुछ हिन्दी समाचार पत्र ही इससे पहले तक चलते थे।
मुगल काल
सम्पादनहिन्दी भाषा का सबसे अधिक विकास मुगल काल के दौरान ही हुआ। लेकिन इससे पहले मुगलों ने फारसी भाषा का ही प्रचार करते थे। बाद में फारसी भाषा के प्रचार करने के बाद भी कोई लाभ नहीं हुआ और फारसी भाषा जानने वालों को हिन्दी भाषा आने लगी। इस दौरान फारसी के कई शब्द हिन्दी भाषा में आ गए और इसके बाद हिन्दी भाषा का मुगल काल में विकास शुरू हुआ।
अंग्रेज़ों के समय
सम्पादनअंग्रेजों ने भी हिन्दी भाषा और देवनागरी लिपि को समाप्त करने के भरपूर प्रयास किए। आजादी से पहले तक अंग्रेज़ो ने कभी हिन्दी भाषा को बढ़ने नहीं दिया। उन लोगों को यह डर था, कि कहीं इस भाषा के विस्तार और प्रसार लोगों में एकता न बढ़ जाये। क्योंकि हिन्दी भाषा बहुत बड़े क्षेत्र के लोगों द्वारा बोली जाती है और कई अन्य भाषाओं के लोग भी इसे आसानी से समझ सकते हैं। इस कारण कई इस एकता को तोड़ने के लिए अंग्रेज़ो ने कई तरह के कहानी भी बनाई जैसे आर्य द्रविड़ आदि। इसके अलावा यह कई तरह से हिन्दी भाषा के प्रसार और विकास को रोकने के लिए फूट डालो और राज करो की नीति के साथ साथ भाषा की राजनीति भी करने लगे थे।
आज़ादी के बाद
सम्पादनआज़ादी के बाद भी हिन्दी का सही रूप से विकास नहीं हो पाया। जब आजादी के बाद राजभाषा चयन का समय आया तो लोगों ने हिन्दी को इसके लिए चुना, क्योंकि हिन्दी सबसे अधिक लोगों द्वारा बोली और समझी जाती थी। लेकिन कुछ लोगों ने हिन्दी भाषा का राजभाषा के रूप में चुने जाने का विरोध किया १४ सितंबर १९४९ को संविधान द्वारा हिन्दी को राजभाषा के रूप में मान्यता तो दी गई, पर पूर्णरूपेण नहीं; एक बैसाखी के साथ, कि सरकारी व ग़ैरसरकारी कार्यालयों का कामकाज सुचारु ढंग से चलाने के लिए सह-राजभाषा के तौर पर अंग्रेज़ी १५ वर्षों तक हिंदी के साथ चलेगी। संविधान के अनुच्छेद ३४३(१) के अंतर्गत अनुसूची एक में संघ की भाषा हिन्दी निर्धारित की,अनुच्छेद ३४३(३) में यह सुविधा दी गई कि १५ वर्षों की अवधि के बाद भी अंग्रेज़ी का प्रयोग आवश्यकतानुसार जारी रखा जा सकता है। और संविधान के अनुच्छेद ३४५-३४६ में राज्यों की प्रांतीय भाषाओं को विकसित व लागू करने की पूरी छूट दी गई। संविधान की आठवीं अनुसूची में हिंदी सहित १४ प्रादेशिक भाषाओं को मान्यता दी गई थी, ये थी:-असमिया, बांग्ला, गुजराती, हिन्दी, कन्नड़, कश्मीरी, मराठी, मलयालम, ओड़िआ, पंजाबी, संस्कृत, तमिल, तेलगु उर्दू।
इस कारण अंग्रेज़ी भाषा को भी सह-राजभाषा का दर्जा देना पड़ा। लेकिन उस समय मुख्य रूप से हिन्दी भाषा ही सबसे अधिक लोगों द्वारा बोला जाता था। जबकि अंग्रेज़ी कुछ लोग ही समझते थे। अंग्रेज़ी के सह-राजभाषा बनने के बाद उसका और अधिक प्रसार हुआ। सभी सरकारी कार्यालय में अंग्रेज़ी में काम होने के कारण लोग अंग्रेज़ी को जानने में अधिक समय व्यर्थ करने लगे और जिन लोगों को हिन्दी का ज्ञान था। वे भी हिन्दी को छोड़ अंग्रेज़ी भाषा सीखने के प्रति रुचि दिखाने लगे। क्योंकि हिन्दी भाषा में सरकारी कार्यालयों में कोई काम ही नहीं होता था। इस कारण उन्हें मजबूरी में अपने जीवन यापन के लिए अंग्रेज़ी सीखना पड़ता था।
अंग्रेज़ी को सह-राजभाषा बनाने का विरोध भी हुआ था। लेकिन समय के साथ वह विरोध धीमा हो गया। हिन्दी को अपना स्थान दिलाने के लिए हिन्दी दिवस मनाने की योजना बनाई गई। इसका उद्देश्य हिन्दी भाषा जानने वालों को अपने भाषा के प्रति सचेत होने और उसके विकास के बारे में सोचें आदि है। क्योंकि राजभाषा के नाम पर हिन्दी केवल नाम मात्र के लिए यह स्थान मिला है। जबकि अंग्रेज़ी को पहले वैकल्पिक रूप से सह-राजभाषा के रूप में स्थान दिया गया और बाद में उसे अनिवार्य कर दिया गया व हिन्दी का कोई जिक्र भी नहीं किया गया। तब से अब तक हिन्दी केवल नाम मात्र के लिए भारत की राजभाषा है।