हिन्दी कविता (मध्यकाल और आधुनिक काल)/गोस्वामी तुलसीदास
- तुलसी ग्रंथावली (दूसरा खंड); संपा. आचार्य रामचंद्र शुक्ल (नागरी प्रचारिणी सभा, काशी)
- दोहावली- छंद संख्या- २७७, ३५५, ४०१, ४१२, ४९०
दोहा:-
एक भरोसो एक बल एक आस बिस्वास।
एक राम घन स्याम हित चातक तुलसीदास।277।
तुलसी अपनो आचरन भलो न लागत कासु।
तेहि न बसात जो खात नित लहसुनहू को बासु।355।
नीच गुड़ी ज्यों जानिबो सुनि लखि तुलसीदास।
ढीलि दिएँ गिरि परत महि खैंचत चढ़त अकास।401।
सारदूल को स्वाँग करि कूकर की करतूति ।
तुलसी तापर चाहिऐ कीरति बिजय बिभूति।412।
बहु सुत बहु रूचि बहु बचन बहु अचार ब्यवहार।
इनकेा भलो मनाइबो यह अग्यान अपार।490।