हिन्दी कविता (मध्यकाल और आधुनिक काल) सहायिका/गोस्वामी तुलसीदास के दोहों की विशेषताएं
गोस्वामी तुलसीदास भक्तिकाल की सगुण भक्ति धारा की रामभक्ति शाखा के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। तुलसी बहुमुखी प्रतिभा के धनी कवि थे। पूर्व मध्यकाल में मुख्य रूप से काव्य रचना की दो शैलियाँ प्रचलित थीं – प्रबंध और मुक्तक। तुलसी ने दोनों काव्य रूपों में रचना की। तुलसी ने मानस की रचना प्रबंध –शैली में की है और विनयपत्रिका ,गीतावली ,कृष्णगीतावली और कवितावली आदि की रचना मुक्तक – शैली में की है। गोस्वामी तुलसीदास के बारह ग्रन्थ प्रसिद्ध माने जाते हैं -रामचरितमानस, दोहावली, कवितावली, गीतावली, बिनय पत्रिका, रामलला नहछू, पार्ववती मंगल, जनकी मंगल, बरवैरामायण, वैराग्य संदीपिनी, कृष्णगीतावली और रामाज्ञा प्रश्नावली आदि।
गोस्वामी तुलसदास के दोहो की विशेताएं
कवि के पास भाषा एक ऐसा माध्यम होती है जिसके द्वारा कवि अपने प्रतिपाद्य को शब्दायित करके पाठकों से तादात्म्य स्थापित करने में समर्थ हो पाता है। काव्य में शब्द और अर्थ का समन्वय। शब्द-शक्ति को उभारता है। जिससे कवि कर्म प्रभावी होकर पाठक समूह तक पहुचता है। शब्द संतुलन ही तुलसी के काव्य की विशेषता है। इसी विशेषता के कारण तुलसी के काव्य के अंतर बाह्य पक्ष अर्थात अलंकार, चित्रात्मकता, गुण – व्रति इत्यादि विशेषताओं को मुखर बनाता है। तुलसी के समय लोक की भाषा में काव्य रचना का सम्मान उस समय के पंडित वर्ग में नहीं था। तुलसी ने पंडित वर्ग को साधते हुए। लोक भाषा को अपने काव्य का आधार बनाया। यद्यपि संस्कृत की उपेक्षा उन्होंने नहीं की। इसीलिए मानस , विनयपत्रिका आदि में अनेक श्लोक संस्कृत में हैं। सामर्थ्य होते हुए भी तुलसी ने काव्य भाषा के लिए लोकव्यवहार की भाषा को ही चुना। तुलसी पर जन दवाव भी हो सकता है। क्योकि संस्कृत भाषा का लोक में महत्त्व नगण्य था। हाँ पुरोहित वर्ग में जरूर था। यही कारण है कि मध्यकाल में जनभाषा में रचना करने वाला कवि जितना सफल हुआ उतना संस्कृत में रचना करने वाला नहीं। क्योकि संस्कृत को जनसमर्थन नहीं मिला था। इसिलिय तुलसी ने ‘गिरा ग्राम्य’ भाषा को ज्यादा महत्त्व दिया। तुलसी का लक्ष्य लोक संग्रह था। मध्यकाल में तुलसी के समय तक काव्य भाषा के रूप में अवधी और ब्रजभाषा का प्रचलन था। तुलसी ने दोनों में काव्य रचना की। तुलसी की काव्य भाषा के सम्बन्ध में शुक्ल जी ने अपना मत इस प्रकार व्यक्त किया है –“सबसे बड़ी विशेषता गोस्वामी जी की है भाषा की सफाई और वाक्य रचना की निर्दोषता जो हिंदी के और किसी कवि में नहीं पाई जाती। गठी हुई भाषा और किसी की नहीं है। सारी रचनाएँ इस बात का उदहारण हैं।”१ तुलसी ने मानस में रामकथा अवधी में कही है। कवितावली, गीतावली और विनयपत्रिका की रचना ब्रजभाषा में की।यदि कहीं सादृश्य योजना का उद्देश्य बोध कराना मात्र है तो वह काव्यालंकार नहीं है।”२ शुक्ल जी के अनुसार तुलसी के यहाँ अलंकारो का प्रयोग निम्न उद्देश्यों की पूर्ती के लिए हुआ है – “भावों की उत्कर्ष व्यंजना में सहायक , वस्तुओं के रूप सौन्दर्य , भीषणत्व आदि का अनुभव तीव्र करने में सहायक। गुण का अनुभव तीव्र करने में सहायक। क्रिया का अनुभव तीव्र करने में सहायक।”३ कवितावली में प्रयुक्त अलंकारों का विवेचन इन्ही बातों को ध्यान में रखकर किया जायेगा। कवितावली में तुलसी ने भावों की रमणीय अभिव्यक्ति अनुप्रास अलंकार के माध्यम से दिखाने का प्रयास किया है
कवितावली की भाषा में तुलसी ने लोक में प्रचलित मुहावरों, लोकोक्तियों और देशज शब्दों का प्रयोग किया है। लोक में प्रचलित ब्रजभाषा का प्रयोग मिलता है। कवितावली में तत्सम , तद्भव और देशज शब्दों का अद्भुत समन्वय दिखाई देता है। कविता वाली में डिंगल भाषा का भी प्रयोग मिलता है-।
एक भरोसो एक बल एक आस बिस्वास।
एक राम घन स्याम हित चातक तुलसीदास।।
जैसे चातक की नजर एक ही जगह पर होती है, ऐसे ही हे प्रभ ! हमारी दृष्टि तुम पर रख दो। भगवान पर भरोसा करोगे तो क्या शरीर बीमार नहीं होगा, बूढा नहीं होगा, मरेगा नहीं ? अरे भाई ! जब शरीर पर, परिस्थितियों पर भरोसा करोगे तो जल्दी बूढ़ा होगा, जल्दी अशांत होगा, अकाल भी मर सकता है। भगवान पर भरोसा करोगे तब भी बूढ़ा होगा, मरेगा लेकिन भरोसा जिसका है देर-सवेर उससे मिलकर मुक्त हो जाओगे और भरोसा नश्वर पर है तो बार-बार नाश होते जाओगे। ईश्वर की आशा है तो उसे पाओगे व और कोई आशा है तो वहाँ भटकोगे। पतंगे का आस-विश्वास-भरोसा दीपज्योति के मजे पर है तो उसे क्या मिलता है ? परिणाम क्या आता है ? जल मरता है ।
एक भरोसो एक बल, एक आस बिस्वास।
संत तुलसीदास जी कहते हैं कि एक भगवान का ही भरोसा, भगवान को पाने की ही आस और परम मंगलमय भगवान ही हमारे हितकारी हैं, ऐसा विश्वास हमें निर्दुःख, निश्चिंत, निर्भीक बना देता है। जगत का भरोसा, जगत की आस, जगत का विश्वास हमें जगत में उलझा देता है। भरोसा, आस और विश्वास मिटता नहीं, यह तो रहता है लेकिन जो इसे नश्वर से हटाकर शाश्वत में ला देता है वह धनभागी हो जाता है।