हिन्दी भाषा और उसकी लिपि का इतिहास/देवनागरी लिपि की विशेषताएँ

हिन्दी भाषा और उसकी लिपि का इतिहास
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आदर्श लिपि के गुण सम्पादन

किसी भी साधारण लिपि में आदर्श लिपि बनने के लिए निम्नलिखित गुण होने चाहिए।-

  1. लिपि में अक्षरों के नाम और उच्चारण समान तथा अभिन्न होने चाहिए।
    उदाहरण: देवनागरी लिपि में क, ख, ग, घ आदि का नाम और उच्चारण समान है इसके विपरीत रोमन में अक्षरों के नाम और उच्चारण में अंतर होता है।
  2. एक अक्षर एक ही ध्वनि का वाहक होना चाहिए। कभी-कभी ऐसे लिपि चिह्न भी देखे जाते हैं जिनके उच्चारण का उन से प्रकट होने वाली ध्वनियों से कोई संबंध नहीं होता।
    उदाहरण: रोमन का W 'व' ध्वनि का वाहक है।
  3. आदर्श लिपि लेखन की दृष्टि से सरल होनी चाहिए प्रत्येक मौलिक उच्चारण के लिए विशिष्ट अक्षर अथवा लिपि चिह्न होना चाहिए।
  4. आदर्श लिपि सीखने में सरल व सहज होने चाहिए। अक्षर एक दूसरे से मिलते-जुलते नहीं होने चाहिए। जिससे एक अक्षर से दूसरे अक्षर में भ्रम पैदा ना हो।
  5. आदर्श लिपि में उच्चारण के लिए एक ही लिपि चिह्न होना चाहिए। देवनागरी लिपि इस दृष्टि से अधिक वैज्ञानिक है।
  6. आदर्श लिपि में कम अक्षर होने चाहिए और वह भाषा को अभिव्यक्त करने में बिल्कुल सशक्त होने चाहिए।
  7. आदर्श लिपि में अनावश्यक चिह्न नहीं होने चाहिए।
  8. एक आदर्श लिपि में सभी अक्षर समान ऊँचाई के होने चाहिए। इसके साथ-साथ उसमें शीघ्र लेखन की भी विशेषता होनी चाहिए इस दृष्टि से नागरी लिपि में शिरोरेखा सबसे बड़ी बाधा है।
  9. एक आदर्श वर्णमाला में अक्षरों का क्रम सहज और उनके आकार के अनुसार होना चाहिए।

देवनागरी लिपि की विशेषताएँ सम्पादन

देवनागरी लिपि अनेक विशेषताओं की स्वामिनी है और वास्तव में यह विश्व की समस्त वर्तमान लिपियों से श्रेष्ठ और वैज्ञानिक है। देवनागरी लिपि में एक आदर्श लिपि होने के सभी गुण विद्यमान हैं। यह लिपि अक्षरात्मक है। भारत की अनेक भाषाओं के लिए देवनागरी लिपि का प्रयोग लंबे समय से होता आ रहा है।

विनोबा भावे ने अपने एक भाषण में कहा था, "यदि हम सारे देश के लिए देवनागरी लिपि को अपना लें तो हमारा देश बहुत मजबूत हो जाएगा।" फिर तो देवनागरी लिपि ऐसी रक्षा कवच सिद्ध हो सकती है जैसे कोई भी नहीं। यह लिपि हर संदर्भ एवं स्थिति में उपयुक्त है और इतनी लचीली है कि हर ढाँचे में आसानी से ढल सकती है। देवनागरी लिपि की विभिन्न विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

  1. यह लिपि भाषा के अंतर्गत आने वाले अधिक से अधिक चिह्नों से संपन्न है। जिसमें परंपरागत रूप से 11 स्वर और 33 व्यंजन हैं। इसके अतिरिक्त ड़, ढ़, क़, ख़, ग़, ज़, फ़ इन ध्वनियों के लिए भी चिह्न बने हैं। क्ष, त्र, ज्ञ, श्र संयुक्त व्यंजनों के लिए अलग चिह्न है।
  2. यह लिपि समस्त प्राचीन भारतीय भाषाओं जैसे- संस्कृत, प्राकृत, पाली एवं अपभ्रंश की भी लिपि रही है।
  3. जो लिपि चिह्न जिस ध्वनि का घोतक है उसका नाम भी वही है जैसे- आ, इ, क, ख आदि। इस दृष्टि से रोमन लिपि में पर्याप्त भ्रम की स्थिति विद्यमान है। जैसे - C, H, G, W आदि।
  4. हिन्दी में ऋ - रि, श - ष, को छोड़कर शेष सभी ध्वनियों के लिए स्वतंत्र लिपि चिह्न है।
  5. नागरी लिपि में उच्चारण की दृष्टि से समान लिपि चिह्नों में आकृति में भी समानता देखने को मिलती है। रोमन लिपि में यह गुण ना के बराबर है- P, y, g, a, b आदि।
  6. रोमन लिपि में कई बार वर्ण मूक रहते हैं, उनका उच्चारण नहीं किया जाता लेकिन उन्हें लिखा जाता है। जैसे- Know, Knife, Tsunami आदि लेकिन देवनागरी लिपि में यह दोष नहीं है। नागरी लिपि में प्रत्येक वर्ण का उच्चारण किया जाता है।
  7. देवनागरी लिपि में रोमन के समान कैपिटल लेटर और स्मॉल लेटर का झंझट नहीं है। वास्तव में आदर्श लिपि वही है जिसमें एकरूपता हो।
  8. देवनागरी लिपि में सभी नासिक्य ध्वनियों के लिए अलग-अलग चिह्न है। जैसे रोमन में- ड़, ञ, ण, सभी को N से लिखा जाता है। भारतीय भाषाओं के तृष्णा, विष्णु और प्राणायाम जैसे शब्दों को रोमन में लिख पाना असंभव है।
  9. नागरी में अनुस्वार और चंद्रबिंदु की उपस्थिति इसकी ध्वनि वैज्ञानिक पूर्णता को प्रकाष्ठा पर पहुँचा देती है।
  10. नागरी लिपि में अन्य भाषाओं की ध्वनियों को ग्रहण करने की अद्भुत क्षमता है। जैसे अंग्रेज़ी से- ऑ, क़, ग़, ज़, फ़ आदि।
  11. उत्तर भारत की सभी लिपियाँ नागरी के ही रूप भेद है, यह संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिन्दी, मराठी, नेपाली आदि अनेक भाषाओं की लिपि तो है ही साथ ही अन्य भाषा की लिपि होने का सामर्थ्य भी इसमें विद्यमान है।
  12. देवनागरी लिपि सुपाठ्य एवं सुस्पष्ट है अर्थात इस लिपि का पाठ सुंदर रूप में किया जा सकता है। और यह अच्छे तरीके से स्पष्ट भी हो जाती है। देवनागरी लिपि में मुद्रण एवं टंकण के भी विशेष सुविधाएँ हैं।
  13. देवनागरी लिपि की एक अन्य विशेषता यह है कि यह उत्तरी भारत मैं हिमालय से लेकर महाराष्ट्र और हरियाणा से लेकर बिहार और झारखंड तक फैली हुई है।
  14. इस लिपि में भारत का विपुल साहित्य भंडार भी इसी लिपि में लिखित है। संस्कृत, पाली, प्राकृत और अपभ्रंश साहित्य इसी लिपि में विद्यमान है।
  15. देवनागरी लिपि में अंको को भी लेकर अनेक चमत्कार पूर्ण कविताएं लिखी गई हैं जो अन्य लिपियों के अंको में संभव नहीं है।
  16. इसका वर्तमान रूप नेत्रों के लिए अत्यंत आकर्षक है। इसके साथ साथ यह लिपि वैज्ञानिक और कंप्यूटर की दृष्टि से भी उपयुक्त है।

अतः इस प्रकार कहा जा सकता है कि नागरी लिपि में निश्चित रूप से विश्व का श्रेष्ठ ज्ञान है, और यह लिपि अनेक विशेषताओं की स्वामिनी है।

Rohit Vishwakarma Daidla se