हिन्दी भाषा और उसकी लिपि का इतिहास/हिन्दी का अखिल भारतीय स्वरूप

हिन्दी भाषा और उसकी लिपि का इतिहास
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हिंदी का अखिल भारतीय स्वरूप

हिंदी का प्रयोग हिंदी क्षेत्र के बाहर भी होता है। यह भारत की राष्ट्रभाषा, रज्यभाषा और संपर्क भाषा भी है। सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं हिंदीतर क्षेत्रों में इसके प्रचार में जुटे हैं। हिंदी के प्रचार में सर्वाधिक योगदान हिंदीतर भाषा भाषियों का रहा है। आंध्रप्रदेश, गुजरात, जम्मू कश्मीर, मणिपुर, पंजाब, बंगाल, अंडमान व निकोबार द्वीपसमूह और मिज़ोरम में हिंदी भाषियों की संख्या दूसरे स्थान पर है। महाराष्ट्र, उड़ीसा आदि में हिंदी भाषी तीसरे स्थान पर हैं।

इस प्रकार यह भाषा उत्तर में जम्मू कश्मीर, पंजाब, महाराष्ट्र और दक्षिण में अंडमान निकोबार तथा पूर्व में पश्चिम बंगाल तक फैली है। आंध्रप्रदेश के बीजापुर, गोलकुंडा और अहमदनगर में हिंदी की दक्किनी शैली का प्रयोग होता है। डॉ. भोलानाथ तिवारी इसे प्राचीन खड़ी बोली मानते हैं।

हिंदी के प्रचार-प्रसार में साहित्य, संस्कृति, धर्म, व्यापार, सामाजिक परिवेश और हिंदी सिनेमा का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। हिंदी को बढ़ावा देने के लिए प्रत्येक वर्ष हिंदी दिवस और विश्व हिंदी सम्मेलनों का आयोजन किया जाता है। परंतु सैंकड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी इसकी दशा और दिशा दोनों दयनीय है।

आज हिंदी अपनों से भी उपेक्षित है, अधिकांश हिंदी वादियों के बच्चे अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, इस दृष्टि से जो संघर्ष हिंदी कर रही है या जो विरोध हिंदी को सहन करना पड़ा वह अंग्रेजी को नहीं। अंग्रेजी वर्तमान समय की आवश्यकता हो सकती है लेकिन केवल भविष्य का आधार नहीं बन सकती। गांधी जी ने कहा भी है, कि राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा होता है यदि भारत को एक राष्ट्र बनाना है तो हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाना पड़ेगा।

हिंदी का अखिल भारतीय स्वरूप इसके उदभव के समय से हीं प्रारंभ हो गया था। शंकराचार्य और रामानंद ने जिस हिंदी का प्रचार-प्रसार किया वह आज देश के चारो कोनों की भाषा बन गई है। अरुणाचल प्रदेश से अंडमान निकोबार और गुजरात से लेकर रामेश्वर तथा कन्याकुमारी तक उसका प्रयोग होता है।

ध्वनि और शब्द आदि के स्तर पर भी हिंदी अखिल भारतीय स्तर पर अपनी पहचान रखती है। ध्वनियों के दृष्टि से भी भारत की समस्त आधुनिक भाषाओं में स्वरों की संख्या लगभग समान है। शब्द के स्तर पर भी हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में पर्याप्त समानता देखी जाती है- उदाहरण- कलश को तमिल में कलशम लिखा जाता है। इसी प्रकार मुहावरों में भी पर्याप्त समानता देखी जा सकती है- हिंदी- उंट के मुंह में जीरा। पंजाबी- उंट दे मुंह विच जीरा बन जाता है।

राष्ट्रीय परिवेश में हिंदी कई भूमिकाएं एक साथ निभा रही है। यह राष्ट्रभाषा होने के साथ-साथ राजकीय काम काज की भाषा भी है। और पूरे देश में स्वीकार्य संपर्क भाषा भी है। यह राष्ट्र एकता और आत्मीयता का भी प्रतीक है। यह जन-जन की भाषा है। यह भारतीय सभ्यता, संस्कृति तथा साहित्य से प्रेम करने वाले प्रत्येक व्यक्ति के दिल की धड़कन है। और राष्ट्रीय एकीकरण का सबसे शक्तिशाली माध्यम है।