टेलीविजन का स्वरुप सम्पादन

'टेलीविजन' शब्द का अर्थ है 'दूर पर देखना'। इस दृष्टि से इसका हिंदी पर्याय 'दूरदर्शन' बहुत सटीक है जीसका अर्थ 'दूर से देखना' है। आधुनिक जनसंचार माध्यमों में 'टेलीविजन' अथवा 'दूरदर्शन' का आगमन एक युगांतरकारी घटना है। यह माध्यम दुनिया में कही भी घटित हो रही किसी भी घटना को प्रत्यक्ष दिखाकर उसकी संपूर्ण जानकारी प्रदान करता है। पत्रकारिता, मनोरंजन, समाजिक तथा राजनीति परिवर्तन आदि सभी क्षेत्रों में टेलीविजन ने महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है। उसने पत्रकारिता के क्षेत्र में समाचार-पत्रों और रेडियो को पीछे छोड़ दिया है। आदमी को मनोरंजन, गीत-संगीत और कथा-कहानी तथा फिल्म आदि सब कुछ घर बैठे परोस देने वाले इस माध्यम ने सिनेमाघरों के अस्तित्व को ही संकट में डाल दिया है। चित्रों को प्रभावशाली ढंग से प्रसारित करने वाला पहला उपकरण १९२५ ई. में जॉन लॉगी बेयर्ड ने बनाया था। १९२७ ई. में सी. एफ. जेकिंस ने पहली बार प्रसारित चित्र दिखाए । ये उपकरण यांत्रिक थे। धीरे-धीरे उन्हें इलेक्ट्रॉनिक आधार दिया गया और तस्वीरों को वाणी भी दी जाने लगी। इस प्रकार का ध्वनि युक्त पहला टेलीविजन प्रसारण १९३० ई. में इंग्लैंड में हुआ। दूसरे महायुद्ध के दौरान टेलीविजन की प्रगति थोड़ी रूक-सी गई, लेकिन उसके बाद इसका विकास बहुत तेजी से हुआ। श्वेत-श्याम टी.बी. का स्थान रंगीन टी.वी. ने ले लिया और आज यह माध्यम सेटेलाइट से जुड़कर विश्वव्यापी बन गया है। आज हर जगह से चीज का जीवंत (Live) प्रसारण टेलीविजन पर उपलब्ध होता है।

भारत में टेलीविजन का आगमन सम्पादन

भारत में टेलीविजन का आगमन १९५९ ई. में हुआ। यूनेस्को को एक परियोजना के अन्तर्गत नए संचार माध्यम के रूप में स्कूलों के बच्चों और आम आदमी को उपयोगी समुदायिक विकास के कार्यक्रम दिखाने के लिए 'टेलीविजन' की स्थापना हुई। १९६५ ई. में शिक्षा तथा सामुदायिक कायक्रमों के साथ सूचना तथा मनोरंजन संबंधी कायक्रमों का भी प्रसारण होने लगा। तथा १९७६ में 'आकाशवाणी' से अलग 'दूरदर्शन' केंद्र की स्थापना हुई और आज देश में टी.वी. चैनलों का जाल बिछा हुआ है। 'उपग्रह' प्रणाली ने टेलीविजन को नया आयाम दिया है, जिसे केबल टी.वी. कहा जाता है। इस तकनिक से 'डिश एंटीना' की सहायता से हम देश-विदेश के सभी चैनल देख सकते हैं।

संदर्भ सम्पादन

१. प्रयोजनमूलक हिन्दी (कामकाजी हिन्दी)- डां. रमेश तरूण, अशोक प्रकाशन २६१५, नई सड़क, दिल्ली-६, पृष्ठ- २०३-२०४