संक्षेपन/सार-लेखन

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संक्षेपण:- संक्षेपण अथवा सार-लेखन से तात्पर्य है किसी अनुच्छेद, परिच्छेद, विस्तृत टिप्पणी या प्रतिवेदन आदि को संक्षिप्त कर देना। संक्षेपण को अंग्रेजी में Précis कहा जाता है और बोलचाल की भाषा में Summary प्रचलित है। किसी विस्तार से लिखे गये विषय मामले अथवा प्रतिवेदन आदि को संक्षेप में लिखकर प्रस्तुत कर देना सार लेखन या संक्षेपण कहलाता है। सार लेखन में मूल विषय-वस्तु या कथ्य सम्बन्धित मुख्य विचारों या तथ्यों को ही प्रथामिकता एवं महत्ता दी जाती है। इसमें अनावश्यक बातें, संदर्भ, तर्क-वितर्क आदि को हटा दिया जाता है और मूल विचार, तथ्य और भावों को ही रखा जाता है। संक्षेपण अर्थात सार-लेखन भी एक कला है और अध्ययन, अनुशीलन से उसे प्राप्त किया जा सकता है। कार्यालयीन कामकाज ही नहीं अपितु दैनंदिन जीवन में भी संक्षेपण कला का अत्यधिक उपयोग है। संक्षेपण को मानसिक प्रशिक्षण भी कहा गया है जिससे लेखन में स्पष्टता, सरलता तथा प्रभावशीलता पैदा होती है। मंत्रालयों, सरकारी कार्यालयों, विभागों तथा सरकार के अधीन प्रतिष्ठानों आदि में संक्षेपण या सार-लेखन का प्रयोग यथास्थिति समयानुसार किया जाता है। मंत्री महोदय, सचिव या उसके स्तर के उच्चाधिकारी के पास समयाभाव के कारण पूरी फाइल पढ़ पाना कभी-कभार संभव नहीं हो पाता। ऐसी स्थिति में सम्बन्धित अधीनस्थ अधिकारी मामले या प्रतिवेदन अथवा अभ्यावेदन आदि का सार-संक्षेपण टिप्पणी द्दारा लिखते हैं, जिनके अनुसार उच्चाधिकारी, प्रबन्ध निदेशक, अध्यक्ष अथवा मंत्री आदि अपने आदेश देते हैं अथवा कार्रवाई करते हैं। संक्षेपण से अनेक लाभ हो सकते हैं, जैसे-

(अ) संक्षेपण से विचारों की एकाग्रता एवं दृढ़ता का विकास होता है।

(आ) इससे शब्द मितव्ययिता आदि की क्षमता बढ़ती है।

(इ) इससे मानसिक चिंतन, मनन तथा विचारों में स्पष्टता आती है।

(ई) सार-लेखन से विश्लेषण शक्ति का विकास होकर अभिव्यक्ति प्रभावशाली तथा घनिभूत बनती है।

(उ) संक्षेपण से मानसिक श्रम आदि की बचत होती है।

(ऊ) संक्षेपण लेखन से ग्रहण शक्ति तथा अभिव्यक्ति शक्ति का विकास होता है।

संक्षेपण की प्रक्रिया

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संक्षेपण करना अथवा सार-लेखन एक कला है। संक्षेपण को सुचारू रूप से तैयार करके उसे आदर्श बनाने के लिए महत्वपूर्ण बातों की ओर ध्यान दिया जाना चाहिए।

१) संक्षेपण करते समय सर्वप्रथम मूल अनुच्छेद या विषय-वस्तु को दो-तीन बार ध्यानपूर्वक पढ़ लेना चाहिए। इससे मूल अनुच्छेद का भावार्थ समझ में आ जायेगा। तब तक सार-लेखन की शुरूआत नहीं करनी चाहिए जब तक कि मूल विषय का भावार्थ समझ में न आ जाये।

२) मूल अनुच्छेद को पढ़ने के बाद महत्वपूर्ण तथ्यों तथा विचारों को रेखांकित कर लिया जाना चाहिए। रेखांकन करते समय मूल विषय से सम्बन्धित कोई भी महत्वपूर्ण अंश नहीं छूटना चाहिए।

३) इसके बाद मूल में व्यक्त किये गये विचारों, भावों तथा तथ्यों को क्रमबध्द कर लेना चाहिए।

४) मूल अनुच्छेद का एक-तिहाई में संक्षेपण करना चाहिए। इसमें संक्षेपक को अपनी ओर से कोई भी तर्क-वितर्क करने तथा किसी अतिरिक्त अंश को जोड़ने की अनुमति या छूट नहीं होती।

५) संक्षेपण को अंतिम रूप दिये जाने से पूर्व उसका पहले कच्चा रूप तैयार कर लिया जाना चाहिए और अच्छी तरह देख लिया जाना चाहिए कि सभी महत्वपूर्ण बातों का अंतर्भाव उसमें हो चुका है।

६) संक्षेपण तैयार करते समय मूल अनुच्छेद में वर्णित या उल्लिखित कहावतें, मुहावरें, वाक-प्रचार तथा अलंकार आदि को हटा देना चाहिए।

७) सामान्यत: संक्षेपण मूल अनुच्छेद का एक-तिहाई होना चाहिए।

८) संक्षेपण तैयार करने के बाद उसके लिए सुयोग्य शीर्षक का चयन किया जाना चाहिए। संक्षेपण का शीर्षक अत्यन्त सार्थक, संक्षिप्त, आकर्षक तथा विषयवस्तु से सुसंगत होना चाहिए।

संक्षेपण की विशेषताएँ

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१) विषय-वस्तु के मूल भाव की संक्षिप्त, सरल अभिव्यक्ति संक्षेपण या सार लेखन की मुख्य विशेषता होती है। सार-लेखन में मूल भावों, विचारों, बातों तथा कथ्यों का रक्षण आवश्यक होता है।

२) मूल अनुच्छेद में व्यक्त या निरूपित मुख्य विचारों एवं भावों की क्रमबध्द स्थापना संक्षेपण की दूसरी महत्वपूर्ण विशेषता है। विचारों और भावों की विश्रृंखलता से संक्षेपण में भद्दापन आ जाता है। असंगत तथ्यों तथा बातों का संक्षेपण में कोई स्थान नहीं होता ।

३) सार-लेखन की तीसरी महत्वपूर्ण विशेषता है उसकी स्पष्टता। मूल विचारों तथा भावों को बिना उलझाये स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया जाना चाहिए, यही संक्षेपण की स्पष्टता की विशेषता है।

४) संक्षेपण की भाषा सरल होनी चाहिए। अत: इसके लेखन में कठिन शब्दों, अस्पष्ट वाक्यांशो तथा क्लिष्ट पदावली का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।

इस प्रकार आदर्श संक्षेपण वह कहा जा सकता है जो अल्प समय में, अल्प श्रम से, सहजता से मूल विषय-वस्तु को संक्षेप में प्रस्तुत कर सके। कार्यालयीन कामकाज में आदर्श सार-लेखन तभी संभव हो सकता है जब सार-लेखक कर्मचारी अधिकारी का कार्यालयीन ज्ञान परिपूर्ण हो, उसका अध्ययन गम्भीर हो, भाषा का शब्द-भण्डार समृध्द हो, विशेष चिंतन-मनन की शक्ति हो तथा शैली पर अधिकार होकर आत्मविश्वास हो। अत: सम्बन्धित अधिकारी-कर्मचारियों को चाहिए कि वे इन बातों की ओर विशेष ध्यान देकर संक्षेपण करने का सतत अभ्यास रखें।

संर्दभ

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१. प्रयोजनमूलक हिन्दी: सिध्दान्त और प्रयोग -- --- दंगल झाल्टे, पृष्ठ-- २०५-२०७