छायावादोत्तर हिंदी कविता/बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद
अब की मैंने जी–भर देखी
पकी–सुनहली फसलों की मुस्कान
बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद
अब की मैं जी-भर सुन पाया
धान कूटती किशोरियों की कोकिल कंठी तान
बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद
अब की मैंने जी–भर सूँघे
मौलसिरी के ढेर-ढेर से ताजे–टटके फूल
बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद
अब की मैं जी–भर छू पाया
अपनी गंवई पगडंडी की चंदनवर्णी धूल
बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद
अब की मैंने जी–भर तालमखाना खाया
गन्ने चूसे जी–भर
बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद
अब की मैंने जी-भर भोगे
गंध–रूप–रस–शब्द-स्पर्श
सब साथ साथ इस भू पर
बहुत दिनों के बाद!